संघ का मुसलमानों - ईसाइयों के प्रति दृष्टिकोण

NewsBharati    20-Oct-2020 11:59:29 AM   
Total Views |
 Mohan Bhagwat_1 &nbs
 
 
भले ही भारत के मुसलमानों या ईसाइयाें ने इस्लाम या ईसाइयत की विचारधारा को कबूल कर लिया हाे, लेकिन उनकी नसों में हजारों साल पुरानी भारतीय संस्कृति भी प्रवाहित होती है। दोनों का सम्मिश्रण उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाता है। लेकिन उन्हें यह समझाए कौन। क्योंकि जिस तरह से अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों -ईसाइयों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति योजनाबद्ध तरीके से नफरत फैलाई जा रही है, उसे सद्भाव में बदलने के लिए लंबी लाइन खींचनी होगी।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मुसलमानों को लेकर खुलकर कुछ बाते कहीं हैं। संघ के मुसलमानों के प्रति रुख को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं। संघ प्रमुख का मुसलमानों को लेकर यह कहना कि दुनिया में सबसे ज्यादा सन्तुष्ट भारत के मुसलमान हैं, वास्तव में भारत की उस सच्चाई का ही दर्पण है जो इसकी हजारों साल पुरानी संस्कृति का मूलाधार है।
 
यह मूलाधार वसुधैव कुटुम्बकम से अभिप्रेरित है। यह निर्रथक नहीं है कि भारत के संविधान में इसी प्राचीन सभ्यता के प्रतीकों को अंकित किया गया और दुनिया के सामने स्पष्ट किया गया कि भारत की मिट्टी में सह अस्तित्व का भाव बौद्ध धर्म के उदय से पहले से ही रमा हुआ है जिसके तार जाकर जैन संस्कृति से मिलते हैं परन्तु भगवान बुद्ध के अवतरण के बाद यह राजधर्म में निहित हो गया।
 
भारत में हिन्दू-मुसलमान का प्रश्न भी मूलतः राज्याधिकारों से जाकर तब जुड़ा इस देश के एश्वर्य व वैभव से लालायित होकर इस पर विदेशी आक्रमण होने शुरू हुए और तब शासकों ने अपने धर्म को अपनी विजय का चिन्ह बनाने का प्रयास किया। भारत के मध्य काल का इतिहास हमें यही बताता है कि उस दौर के इस अलिखित नियम के चलते ही साम्राज्य बनते बिगड़ते रहे। परन्तु इससे भारत के लोगों की निष्ठा अपनी मातृभूमि के लिए प्रभावित नहीं हुई। भागवत ने ये सारी बातें महाराष्ट्र से निकलने वाली विवेक नाम की एक मैगजीन को दिए गए इंटरव्यू में कही।
 
संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर मुसलमान, वामपंथी, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ग्रुप इसे संघ का हिंदू राष्ट्र का एजेंडा बता रहे हैं। दरअसल संघ जब यह कहता है कि हिंदुस्तान में जो भी पैदा हुआ, वह हिंदू है। भारत के मुसलमान -ईसाई भी हिंदुत्व के दायरे से बाहर नहीं हैं। तब यह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ग्रुप इसे हिंदू राष्ट्र का एजेंडा बता अलपसंख्यकाें को भ्रमित करते है।
 
संघ प्रमुख का यह कहना कि धर्म जोड़ने वाला, उत्थान करने वाला और सभी को एक सूत्र में पिरोने वाला होना चाहिए, जब भी भारत और इसकी संस्कृति के लिए समर्पण जाग्रत होता है और पूर्वजों के प्रति गौरव की भावना पैदा होती है तो सभी धर्मों के बीच भेद समाप्त हो जाता है और सभी धर्मों के लोग एक साथ खड़े होते हैं। 
 
भारत के मुसलमान कौन हैं? क्या ये अरब हैं, मंगोल, तुर्क, मुगल, उइगर हैं? हजार-पांच सौ साल पहले ये विदेशी अल्पसंख्यक भारत जरूर आए थे लेकिन अब इतने घुल-मिल गए हैं कि उनका घराना-ठिकाना खोजना मुश्किल है। इन मुट्ठीभर विदेशियों के कारण क्या हमारे करोड़ों मुसलमानों को हम विदेशी मूल का कह सकते हैं? अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘भारत के मुसलमानों का खून, हमारा खून है और उनकी हड्डियां, हमारी हड्डियां हैं।’
 
भले ही भारत के मुसलमानों या ईसाइयाें ने इस्लाम या ईसाइयत की विचारधारा को कबूल कर लिया हाे, लेकिन उनकी नसों में हजारों साल पुरानी भारतीय संस्कृति भी प्रवाहित होती है। दोनों का सम्मिश्रण उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाता है। लेकिन उन्हें यह समझाए कौन। क्योंकि जिस तरह से अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों -ईसाइयों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति योजनाबद्ध तरीके से नफरत फैलाई जा रही है, उसे सद्भाव में बदलने के लिए लंबी लाइन खींचनी होगी।

R L Francis

R.L. Francis, a Catholic Dalit, lead the Poor Christian Liberation Movement (PCLM), which wants Indian churches to serve Dalits rather than pass the buck to the government. The PCLM shares with Hindu nationalists concerns about conversion of the poor to Christianity. Francis has been writing on various social and contemporary issues.