उत्तर प्रदेश में विगत दिनों घटित घटनाओं पर क्रमशः नजर दौडाने और उन पर गहराई से विचार-मंथन करने की जरूरत है। पहली घटना हाथरस जिले के बुलगढ़ी की है, जिसमें एक दलित लड़की के साथ 14 सितम्बर को कुछ हादसा होता है। उसमें एक सप्ताह बाद 21 सितम्बर को बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है। जबकि .सुविग सूत्रों का कहना है कि पीड़ित लड़की जब तक होश में थी, तब तक वह शरीर मे पहुचाई गई चोटों की मात्र बात कर रही थी। रेप तो दूर छेड़छाड़ की भी बात नहीं कर रही थी, यद्यपि अस्पताल में कथन करते हुए उसने आरोपी संदीप सिंह पर गला दबाने और जबरदस्ती करने की बाते कहीं। पर दो-दो मेडिकल रिपोर्ट में भी बलात्कार की पुष्टि नही हुई। 30 सितम्बर को रात्रि में जब पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार किया, तो उसका परिवार उसमें शामिल था। पिता और भाई चिता में लकडियां डालते हुए दिखे थे, लेकिन इस देश को सेकुलर कहे जाने वालो को तो विवाद भडकाना था, अपनी राजनीति साधनी थी। इसलिए इस मामले को उन्होंने गैंगरेप प्रचारित करना शुरू किया। कांग्रेस पार्टी को तो मानो घर बैठ ही मुँहमांगी मुराद मिल गई हो। सदैव हिन्दुत्व को तिरस्कृत और अपमानित करने वाले हिन्दुत्व की दुहाई देने लगे कि योगी सरकार ने रात्रि को शव कैसे जलवा दिया ? यह तो हिन्दुओं की परम्परा को घोर अपमान है। जबकि कानून और व्यवस्था को देखते हुए मृतका के परिवार की सहमति से ही उसका शव रात्रि में जलाया गया था। मामले को जातीय रंग देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई। दलित बनाम ठाकुर का प्रसंग निर्मित किया जाने लगा। (चूँकि आरोपी भले मजदूरी करता रहा हो, पर था तो ठाकुर जाति का) जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सारे विवाद का पटाक्षेप करने के लिए सी.बी.आई. जांच की घोषणा कर दी, जिससे “दूध का दूध और पानी का पानी” हो जाता तो इसका भी विरोध यह कहकर किया जाने लगा की सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज से जांच होनी चाहिए।
जब आरोपियों और पीड़ितों के परिवार के नारको टेस्ट की बाते होने लगी तो पीडिता का परिवार इससे इंकार करने लगा। पूरे मामले में एक नकली भाभी भी तलाश ली गई जो परिवार को भड़काने के साथ प्रेस वालों के साथ उल्टी-सीधी बाते करने लगी। इलेक्ट्रानिक मीडिया के आजतक जैसे चैनल भी पीड़िता के परिवार को भड़काते पाए गए। वैसे तो सच्चाई सी.बी.आई. जांच के बाद ही निर्णयक रूप से पता चलेगी। परन्तु संभावना यहीं है कि एक विशेष प्रयोजन से यह सब नकली प्रकरण खड़ा किया गया। चूंकि कांग्रेस समेत इन सेकूलरों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि मोदी और योगी को सत्ता से कैसे हटाया जाए ? कोई दूर-दूर तक मुद्दा न मिलते देख इस घटना के बहाने बड़े स्तर पर जातीय एवं साम्प्रदायिक दंगे भड़काने की कोशिश ठीक दिल्ली की तर्ज पर की गई। इसके लिए 100 करोड़ की फडिंग की गई। दंगे भड़काने के लिए अफवाहों और फर्जी सूचना का सहारा लिया गया। साजिश मे पीएफआई, एसएफआई और सरकार के निशाने पर रहे माफियाओं के मिलीमगत के स्पष्ट सबूत मिले। निराधार ढंग से लड़की की जीम काटे जाने, अंग-भंग करने और गैंगरेप की तमाम अपवाहे उड़ाई गई। एक कांग्रेसी नेता श्योराज जीवन की दंगे भड़काने के प्रयास में अहम भूमिका रही। इसी के चलते राहुल और प्रियंका दो बार उस जगह का दौरा किए ताकि मामले को तूल दिया जा सके। यह बात अलग है कि पूरा मामला खुल जाने से यह साजिश सफल नहीं हो सकी। इसी घटना को लेकर जब सिर में आसमान उठाया जा रहा था, तो राजस्थान में कई रेप की घटनाएं सामने आई पर उस पर तो कांग्रेस पार्टी दूर तथाकथित किसी भी सेकूलर ने औपचारिक आपत्ति तक दर्ज नहीं कराई। राजस्थान की बात छोडिए। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में इसी अवधि मं एक दलित महिला के साथ गैंगरेप और नृशंस हत्या की वारदात हुई, जो उत्तरप्रदेश का ही हिस्सा है, पर वहां न राहुल, न अखिलेश न और किसी ने जाने की जरूरत समझी, मुद्दा बनाना तो दूर की बात है। वजह सिर्फ यह कि आरोपितो के नाम शाहिद और साहिल है। जबकि बलरामपुर वाले मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर पर 10 घाव के निशान थे, पर मुख्यधारा की मीडिया भी वहां से नदारद रही।
15 अक्टूबर को बलिया जिले के दुर्जनपुर गांव में एक दुकान की बोली के दौरान धीरेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति द्वारा जयप्रकाश पाल नामक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। यहां भी कुछ ऐसा विमर्श खड़ा करने की कोशिश की जाती है कि चूंकि योगी आदित्यनाथ जाति से मूलतः ठाकुर है, इसीलिए ऐसी घटनाएं हो रही है और हत्यारे को किसी-न-किसी रूप में सरकार का संरक्षण प्राप्त है। यद्यपि हत्यारे को तीन दिनके अन्दर ही गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं घटना स्थल पर मौजूद एस.डी.ओ. और सी.ओ. को योगी सरकार द्वारा निलम्बित भी कर दिया गया। इस संबंध में एक घटना का उल्लेख करना और जरूरी है जिसमें एक हफ्ते पूर्व गोंडा में राम जानकी मंदिर के पुजारी पर गोली चलाने की वारदात सामने आई। पर पुलिस जांच में यह पता चला कि पुजारी और उसके महंत ने मिलकर साजिश कर स्वतः प्रोफेशनल शूटर द्वारा गोली चलवाई गई थी, ताकि मंदिर से संबंधित जमीन हड़पी जाने के साथ इसे ब्राह्मण बनाम ठाकुर का रंग दिया जा सके। ऐसा वीडियों भी वायरल हुआ, जिसमें यह कहा जा रहा है कि हम 70 प्रतिशत ब्राह्मण हैं, तुम ठाकुरों को देख लेंगे।
अगर हम थोड़ा पीछे जाए तो जब विकास दुबे जैसे माफियाओं पर कठोर कार्यवाही हुई तो इन्ही तथाकथित सेकुलर तत्वों द्वारा योगी सरकार को ब्राहमण विरोधी कहकर प्रचारित किए जाने लगा। अब इस सम्पूर्ण क्रोनोलाजी को इसी से समझा जा सकता है-जब कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता सुरजेवाला योगी आदित्यनाथ को उनके पूर्व नाम अजय सिंह विष्ट के नाम से संबोधित करते हैं। उनका आशय स्पष्ट है कि वह यह साबित करना चाहते हैं कि योगी आदित्यनाथ मूलतः जातिवादी मनोवृत्ति के राजनीतिज्ञ है। पर उनका असली इरादा तो स्पष्ट है, यानी यदि कोई माफिया या अपराधी ब्राहृमण के विरूद्ध कार्यवाही होती है, तो ब्राहमणों को भड़काइए। दलित के साथ कोई वारदात होती है तो उन्हे भडकाइए। असलियत में इन तत्वों को पीडित से कोई हमदर्दी नहीं, बल्कि इनका लक्ष्य वोट बैंक की राजनीति है। इसीलिए अपराधी या अत्याचारी जहाँ मुस्लिम है, वहां चुप रहना है, क्योंकि मुस्लिम तो हमारे वोट बैंक हैं ही। इसी तरह से दलितो और दूसरी जातियों को अपने साथ कैसे भी लाना है। यदि असली मुद्दे नहीं मिलेंगे तो नकली मुद्दे तैयार कर फर्जी प्रकरण बनाना है। कितने विडम्बना की बात हैं कि उत्तरप्रदेश में जिस दुर्दात अपराधी विकास दुबे की मौत को मुद्दा बनाया जाता है, पर राजस्थान में एक निर्दोष ब्राह्मण पुजारी की नृशंस हत्या पर ये सेकुलर तत्व चूं भी नहीं बोलते।
तो इस तरह से “फूट डालो और राज करो” जो अंग्रेजो का राज करने का तरीका बताया जाता है, उसका अत्यन्त विकृत रूप लेकर इस देश में सेकुलर खासतौर पर कांग्रेस पार्टी सामने आ रही है। खासकर इन सेकूलरों के कारनामें जब सबके सामने है तो इन्हे लगता हैं कि कैसे भी जातीयता की आग लगा कर खासतौर पर मोदी और योगी को सत्ता से हटाना है, तमी तो उनके लिए सत्ता का दरवाजा खुलेगा-मले देश रसातल में चला जाए। सदैव यह कहने वाले कि हिन्दु-मुस्लिम की बात करना अलगांववाद को बढ़ावा देना है, पर वह अपने स्वार्थों के लिए साम्प्रदायिक और जातीयता को सही-गलत कैसे भी हवा देने की सदैव उद्यत रहते है। यद्यपि इनकी सभी ..तिकड़मे, फरेब और साजिश सामने आ ही जाती है, पर फिर भी सत्ता की अंध अकांक्षा के चलते ये मानने वाले हैं नहीं। वस्तुतः: यह इनका नया अवतरण “फूट डालो और राज करो” का सेकुलर संस्करण कहा जा सकता है।
- वीरेंदर सिंह परिहार