विश्व को कोरोना रूपी जैविक युद्ध से बचाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अपील

NewsBharati    24-Jul-2020 08:32:25 AM
Total Views |
 भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता मिलने के बाद भारत के प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने 17 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक तथा सामाजिक परिषद के सम्मेलन में अपना संबोधन किया ! संबोधन में प्रधानमंत्री का मुख्य फोकस संयुक्त राष्ट्र संघ में मौजूदा समय की आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों के अनुसार व्यापक सुधारों पर था ! जिसके द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्वता बदलते समय मैं भी बनी रहे ! इसके लिए उन्होंने सदस्यों का ध्यान द्वितीय विश्व युद्ध के समय जिस प्रकार जापान में परमाणु हथियारों के प्रयोग से वहां के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों में महाविनाश हुआ था जिसमें करीब ढाई लाख जापान वासियों की हत्या हो गई थी की तरफ आकृष्ट किया !
 
coorna_1  H x W
 
इस महाविनाश से उस समय पूरे विश्व में हाहाकार मच गया था तथा मांग उठी थी कि कोई ऐसी संस्था बने जिससे इस प्रकार के मानवता के विनाश पर रोक लगाई जा सके ! अमेरिका ने यह परमाणु बम 6 अगस्त 1945 को जापान के शहरों पर गिराए थे और केवल 2 महीने में विश्व के अंदर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी एक व्यापक तथा प्रभावशाली संस्था का जन्म हुआ ! क्योंकि उस समय पूरा विश्व उसी प्रकार आंदोलित था जैसे आज चीन के बुहान शहर से उत्पन्न हुए करो ना से व्यथित है !इसलिए आज 1945 की तरह ही संयुक्त राष्ट्र संघ को इस प्रकार की परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार किया जाना चाहिए ! प्रधानमंत्री मोदी ने भावुक होते हुए भारत की प्राचीन संस्कृति के अनुसार विश्व को वसुधैव कुटुंबकम तथा विश्व बंधुत्व की भावना का भी हवाला देते हुए कहां कीसंयुक्त राष्ट्र संघ से उन्हें यह आशा है कि वह विश्व को एक परिवार समझते हुए इसकी रक्षा करो ना जैसी आपदाओं से करेगी ! उन्होंने विश्वास दिलाया कि जिस प्रकार भारत विश्व में सामाजिक, आर्थिक समन्वय तथा जन कल्याण के क्षेत्र में प्रकार अपना योगदान देता आया है उसी प्रकार भविष्य में भी अपना सहयोग देता रहेगा !
 
संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रस्तावना में ही विश्व में गरीबी तथा बीमारी मिटाने का वादा है ! इसलिए इस समय करो ना जैसी महामारी जिसके द्वारा विश्व की पूरी मानवता का विनाश नजर आ रहा है इस स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ को करो ना जैसे जैविक हथियारों से विश्व की रक्षा करने के लिए उसी प्रकार से कदम उठाने चाहिए जैसे उसने विश्व में विश्व शांति स्थापना तथा परमाणु हथियारों के प्रयोग के विरुद्ध उठाए है! 1945 में जापान में ढाई लाख लोग परमाणु हथियारों से मारे गए थे परंतु इस समय विश्व मैं डेढ़ करोड़ लोग करो ना से पीड़ित है और 15 लाख की इससे मौत हो चुकी है ! जो हिरोशिमा और नागासाकी की मौतों से कई गुनाज्यादा है और इन मौतों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा है ! हिरोशिमा की घटना के बाद विश्व में उस तरह का आतंक और डर व्याप्त नहीं था जिस प्रकार का आजकल कोरोना के कारण है ! विश्व में किसी ने इस प्रकार के लॉकडाउन की कल्पना नहीं की थी जैसा कि इसके कारण पूरे विश्व में हो रहा है !
 
इस महामारी के कारण पूरे विश्व में आर्थिक गतिविधियां करीब करीब बंद हो चुकी है और आम आदमी के लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है ! परंतु यहां यह सबसे बड़े आश्चर्य तथा विचार का विषय है कि विश्व के किसी भी देश ने अभी तक प्रधानमंत्री मोदी से पहले इस महत्वपूर्ण विषय पर संयुक्त राष्ट्र संघ में कोई बात नहीं उठाई है तथा इस प्रकार के जैविक दुस्साहस को रोकने के विषय में प्रयास ही किए हैं ! जबकि पूरे विश्व को पता है की चीन की बुहान स्थित प्रयोगशाला से यह जहरीला वायरस पूरे विश्व में फैला है ! इस समय सबसे बड़ी निराशा की बात यह है कि अमेरिका जो विश्व की एक महाशक्ति है और वह स्वयं इस महामारी से पीड़ित है उसने स्वयं को संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग कर लिया है ! जबकि अमेरिका की विश्व में स्थिति देखते हुए विश्व के देश आशा कर रहे थे कि वह इस प्रकार की महामारी तथा जैविक युद्धों को रोकने के लिए कोई बड़ा कदम उठाएगा !
  
प्रथम विश्व युद्ध में पहली बार जैविक तथा रासायनिक हथियारों का प्रयोग हुआ था ! जिसको देखते हुए 1925 में जेनेवा में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल को पारित किया गया जिसके अनुसार कोई भी देश दूसरे देश के विरुद्ध जैविक तथा रासायनिक हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा ! परंतु इस प्रोटोकॉल के रहते हुए भी दूसरे विश्व युद्ध तथा बाद में भी विश्व के अलग-अलग देशों ने अपने दुश्मन देशों के विरुद्ध चोरी छुपे जैविक हथियारों का प्रयोग किया जिनके कारण विश्व में तरह-तरह की घातक बीमारियां फैली ! इसको देखते हुए इंग्लैंड में 1972 में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें 1925 के प्रोटोकॉल को और प्रभावशाली बनाने के लिए विचार किया गया जिससे द्वारा विश्व में इस घिनौने हथियार का प्रयोग कोई देश ना कर सके ! विश्व के अलग-अलग देशों में पूरे 3 साल तक इस पर विचार होता रहा तथा 1975 में इस विचार ने एक प्रोटोकॉल का रूप लिया ! जिसके अनुसार इस प्रोटोकॉल को मान्यता देने वाला देश जैविक तथा रसायनिक हथियारों को ना तो बनाएगा और ना ही इनका संग्रह करेगा और ना ही किसी दूसरे देश के विरुद्ध इनका प्रयोग करेगा ! शुरू में इस प्रोटोकॉल को केवल 25 देशों ने मान्यता प्रदान की थी परंतु इस समय विश्व के 183 देश इसको स्वीकार कर चुके हैं !
 
परंतु इस प्रोटोकॉल में भी करो ना के फैलाव के बाद कमी पाई गई जिसके अनुसार संदेह की स्थिति में किसी भी देश में जांच के प्रावधान नहीं है ! और दोषी पाए जाने पर संबंधित देश के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई का भी प्रबंध भी नहीं है ! इ प्रोटोकॉल की इस असहाय स्थिति का मुख्य कारण है कि इस प्रोटोकॉल को प्रभावशाली बनाने के लिएइसे संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी विश्व संस्था ने इसको अभी तक नहीं अपनाया है ! जबकि इस प्रोटोकॉल को मान्यता देने वाले सारे देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं !इस स्थिति में विश्व के देशों को एक साथ आवाज उठा कर इस प्रोटोकॉल को संयुक्त राष्ट्र संघ में पारित कराना चाहिए ! इस प्रोटोकॉल की समीक्षा हर 5 साल के बाद की जाती है इस बार अगली समीक्षाबैठक जनवरी 2021 में होनी है ! इसलिए यह एक सुनहरा अवसर है जब सारे देशों को इस समीक्षा के समय इस प्रोटोकॉल को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने के लिए प्रस्ताव पारित करना चाहिए ! जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ की व्यवस्था से जांच और दोषी पाए जाने पर उचित कार्रवाई की जा सके !
  
प्रधानमंत्री मोदी का सीधा संकेत अपने भाषण में इसी तरफ था जिसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में समय अनुसार उचित परिवर्तन के लिए कहा है !इस समय पूरा विश्व अच्छी तरह जानता है कि कोरोना वायरस चीन के द्वारा अपनी प्रयोगशाला में इसको तैयार करते समय फैला है परंतु उचित व्यवस्था तथा प्लेटफार्म ना होने के कारण इस पर अभी तक कोई क्रमवार कार्यवाही नहीं हो सकी है ! जिसके द्वारा विश्व को यह विश्वास हो जाए कि इस प्रकार का मानवता के विरुद्ध घोर अपराध विश्व का और कोई देश दोबारा नहीं करेगा ! इसलिएअब समय आ गया है जब 1945 में परमाणु हमले के बाद जिस प्रकार विश्वने संगठित होकर आनन-फानन में संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा व्यापक संगठन जिसमें मानव कल्याण के लिए आर्थिक तथा सामाजिक प्रावधानों के अलावा न्याय के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापनाकी है उसी प्रकार जैविक हथियारों के विरुद्ध भी उचित कार्रवाई की जाएऔर इस कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को ही केंद्र बनाया जाए !
 
आज विश्व में इतनी विसंगतियां होने के बावजूद भी केवल इस संस्था के कारण विश्व का कार्यकलाप व्यवस्थित तरीके से संभव हो रहा है ! और विश्व में आतंकवाद पर्यावरण की रक्षा जैसे मुद्दों पर समय रहते संज्ञान लेकर कार्रवाई हो रही है ! इसलिए विश्व कल्याण के लिए शीघ्र अति शीघ्र संयुक्त राष्ट्र संघ का विशेष विशेष अधिवेशन बुलाया जाना चाहिए तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे को आज की परिस्थितियों तथा सच्चाई यों के अनुरूप परिवर्तित किया जाना चाहिए ! और 1975 की जैविक तथा रासायनिक युद्ध को रोकने वाली प्रोटोकॉल को उचित संशोधन के बाद स्वीकार किया जाना चाहिए ! राष्ट्र संघ के संविधान में यह भी प्रवर्तन किया जाना चाहिए इस प्रकार के विषयों पर महा शक्तियों के द्वारा वीटो का प्रावधान नहीं किया जा सके ! अन्यथा कभी-कभी अपने स्वार्थ केकारण महाशक्तियां दोषी देशों को बचा जाती हैं ! जैसा कि चीन अभी तक पाकिस्तान के लिए आतंकवाद के मुद्दे पर कर रहा है !
 
 
इस समय विश्व में पैदा हुई विषम परिस्थितियों में भारत को उसी प्रकार एक अलग पहल करनी चाहिए जैसे शीत युद्ध के समय भारत ने गुटनिरपेक्ष मार्ग को अपना कर की थी ! इसके लिए भारत को 1975 !की जैविक और रासायनिक हथियारों के विरुद्ध बनी प्रोटोकॉल की जनवरी 2021 में होने वाली समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को जोर शोर से उठाकर राष्ट्र संघ तक पहुंचाना चाहिए ! और अपने राजनयिक सूत्रों से विश्व के देशों से संबंधित स्थापित करके इसे राष्ट्र संघ में पारित कराना चाहिए
इस प्रकार भारत अपनी पुरानी संस्कृति की वसुधैव कुटुंबकम की भावना को विश्व में जीवंत कर सकता है !