सांस्कृतिक मूल्यों और ध्वस्त प्रतीकों की पुनर्स्थापना का अवसर

NewsBharati    07-Aug-2020 11:44:01 AM   
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प्रधानमंत्री मोदी और सर संघचालक मोहन भागवत‚ दोनों के संबोधनों का मुख्य सार यही था कि आज से एक नये भारत की शुरुआत है। इसलिए राम मंदिर आंदोलन को संकीर्ण और धार्मिक आंदोलन के नज़रिये से देखना गलत होगा। प्रधानमंत्री मोदी और मोहन भागवत का यह संदेश विशेषकर उन लोगों के लिए है‚ जो अयोध्या आंदोलन को गलत ढंग से धर्मनिरपेक्षता के साथ जोड़कर देखते चले आ रहे हैं। वास्तव में मंदिर आंदोलन के परिणाम को किसी धर्म की जीत या हार से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
 
अयोध्या के इतिहास का पन्ना फिर पलट गया है, 15 अगस्त, 1947 को भारतवासी जैसे देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वालों को नमन कर अपने को गौरवशाली महसूस करते हैं, ठीक उसी तरह प्रभु श्रीराम के भक्त 5 अगस्त 2020 को याद करेंगे। पिछली 5 सदियों में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए अपना बलिदान देने वालों के लिए यह स्वाभिमान का अवसर है। यह दिन भारतीय सभ्यता व संस्कृति के पुनरुत्थान दिवस के रूप में भी याद किया जाएगा।
 
5 अगस्त को इतिहास रचा गया है । राम जन्मभूमि में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे विधि–विधान और मंत्रोचार के साथ बहुप्रतीक्षित राम मंदिर का शिलान्यास किया। राम मंदिर के भूमि पूजन एवं कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत‚ उप्र के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी समेत संत समाज के गणमान्य इस ऐतिहासिक क्षण में शामिल रहे। भगवान राम का जन्मस्थान हिंदुओं के लिए पवित्र तीर्थस्थल है। उनके जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण से हिंदुओं को भावनात्मक संतुष्टि मिलेगी और उनका अपमानबोध भी खत्म होगा।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने शिलान्यास के बाद अपने संबोधन में कहा भी कि‚ बरसों से टाट और टेंट के नीचे रह रहे हमारे रामलला के लिए अब एक भव्य मंदिर का निर्माण होगा। टूटना और फिर उठ खड़ा होना सदियों से चल रहे इस व्यतिक्रम से राम जन्मभूमि आज मुक्त हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी और सर संघचालक मोहन भागवत‚ दोनों के संबोधनों का मुख्य सार यही था कि आज से एक नये भारत की शुरुआत है। इसलिए राम मंदिर आंदोलन को संकीर्ण और धार्मिक आंदोलन के नजरिये से देखना गलत होगा। प्रधानमंत्री मोदी और मोहन भागवत का यह संदेश विशेषकर उन लोगों के लिए है‚ जो अयोध्या आंदोलन को गलत ढंग से धर्मनिरपेक्षता के साथ जोड़कर देखते चले आ रहे हैं। वास्तव में मंदिर आंदोलन के परिणाम को किसी धर्म की जीत या हार से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। 

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आज लगता है, पहले दिन से गलती हो रही थी, चार सौ साल का इतिहास हो या 70 साल से चल रहे अदालती मामले। वास्तव में, राम तो कभी राजनीति का विषय नहीं रहे। वह तो रोम-रोम में हैं, सब दलों, लोगों में हैं, हिंदू हों या मुसलमान, लेकिन यदि तथ्यों को समझने की कोशिश की गई होती, तो फैसला कब का आ गया होता। नहीं समझा गया, इसीलिए आंदोलन की जरूरत पड़ी। अदालत ने भी सब साक्ष्य देखने के बाद ही निर्णय किया। यह दुर्भाग्य था कि भारत में भगवान राम जैसे आस्थापूर्ण विषय को अदालत में लाया गया। वर्षों तक सबकी बात सुनने और प्रमाण देखने के बाद न्याय के मंदिर ने सत्यमेव जयते को स्थापित कर दिया। अब इसे कतई विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए।
 
लेकिन कुछ लोग इस पर अभी भी विवाद बनाए रखना चाहते है, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के भड़काऊ बयान यह बताते है कि एक वर्ग शांति नहीं चाहता। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा दिए गए फैसले के बाद न्याय प्रक्रिया का मखौल उड़ाते हुए सीधे धमकी दे रहा है कि , 'बाबरी मस्जिद थी और हमेशा मस्जिद ही रहेगी। हागिया सोफिया इसका एक बड़ा उदाहरण है। दुखी होने की जरूरत नहीं है, कोई स्थिति हमेशा के लिए नहीं रहती है।
 
श्रीराम जन्मभूमि विवाद मंदिर-मस्जिद का है ही नहीं। यह सांस्कृतिक मूल्यों और ध्वस्त प्रतीकों की पुनर्स्थापना का संघर्ष है। श्रीराम उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, राम भारत की पहचान के केंद्र बिंदु हैं। इसीलिए श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण की घटना को भारत की भौगोलिक सीमा से परे जाकर भारत की सांस्कृतिक परिधि के दायरे में देखा जाना चाहिए।

R L Francis

R.L. Francis, a Catholic Dalit, lead the Poor Christian Liberation Movement (PCLM), which wants Indian churches to serve Dalits rather than pass the buck to the government. The PCLM shares with Hindu nationalists concerns about conversion of the poor to Christianity. Francis has been writing on various social and contemporary issues.