अपराध बोध द्वारा मानसिक रोग

NewsBharati    09-Sep-2020 12:23:19 PM   
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आज के युग में करोना तथा अन्य शारीरिक बीमारियां की तरह ही मानसिक बीमारियां भी उसी गति से फैल रही है ! इन मानसिक बीमारियों के कारण ही तरह-तरह की शारीरिक व्याधियों जैसे शुगर ब्लड प्रेशर तथा गंभीर परिस्थितियों में आत्महत्या जैसे दुखद परिणाम भी देखने में आ रहे हैं ! यह सब आज के भौतिक युग के कारण हो रहा है जिसमें स्वार्थ और अहंकार के कारण मनुष्य तरह-तरह की हिंसा तथा अनैतिक कर्म कर रहा है ! और इनके प्रतिफल के रूप में अपराध बोध से ग्रस्त होकर मानसिक बीमारियों लग रही हैं ! 
 
हिंसा दो प्रकार की होती है पहली शारीरिक हिंसा तथा दूसरी भावनात्मक ! भावनात्मक हिंसा में मनुष्य दूसरे मनुष्य को धोखा बेईमानी तथा स्त्रियों का शील हरण इत्यादि करता है ! इस प्रकार शारीरिक हिंसा से भी ज्यादा पीड़ा वह मानसिक तथा भावनात्मक हिंसा से पीड़ित को पहुंचाता है ! हिंसा से जहां पीड़ित को कष्ट होता है इस के प्रतिफल के रूप में हिंसा करने वाले को भी इस पीड़ा का कारण मानते हुए अपराध बोध के रूप में मानसिक पीड़ा होती है यही पीड़ा अपराध बोध कहलाती है ! हालांकि प्रारंभ इस प्रकार की हिंसा करने वाला इस अपराध बोध को स्वीकार नहीं करता है परंतु धीरे-धीरे उसकी अंतरात्मा उसे यह स्वीकार करने के लिए मजबूर करती है ! यहां पर अच्छे संस्कारों तथा मार्गदर्शन में कुछ मनुष्य अपने किए हुए अपराधों के लिए पश्चाताप के रूप में पीड़ित से या तो क्षमा याचना करते हैं या पीड़ित के नुकसान की भरपाईकरके इससे मुक्ति पाते हैं ! परंतु एक अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति इस प्रकार न करके अपने अपराध बोध को और बढ़ाता रहता है और आखिर में इसके परिणाम स्वरूप मानसिक अवसाद से ग्रस्त होकर तरह-तरह की शारीरिक व्याधियों जैसे शुगर ब्लड प्रेशर इत्यादि से ग्रस्त रहता है ! और इस अपराध बोध से मुक्ति न होने के कारण आखिर में आत्महत्या जैसे विकल्पों से मुक्ति पाने की कोशिश करता है !
 
मानस में अपराध बोध का सबसे अच्छा उदाहरण रावण के रूप में मिलता है ! रावण एक बुद्धिमान व्यक्ति था परंतु अपनी राक्षस प्रवृत्ति के कारण स्वयं तथा अपने साथियों के साथ तरह-तरह की हिंसा करता रहता था ! परंतु कुछ समय बाद उसे यह बोध हुआ कि उसने मानवता के प्रति बहुत से अपराध किए हैं ! जिसके कारण उसे अपराध बोध हुआ और इस अपराध बोध से मुक्त होने के लिए ही उसने सीता जी के हरण की योजना बनाई जिससे उसका और उसके साथियों का अंत भगवान के स्वयं के हाथों से हो और वह अपराध बोध से मुक्त हो सके ! मानस में उसकी स्वीकारोक्ति साफ-साफ देखी जा सकती है !इसी प्रकार आज के युग में भी बहुत से अपराधी अपने अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए या तो स्वयं आत्महत्या जैसे विकल्पों को अपनाते है या कानपुर के विकास दुबे की तरह इस प्रकार के कांड करते हैं जिस के प्रतिफल में उनके स्वयं के साथ उनके अन्य साथी भी जीवन से मुक्त होकर अपराध बोध से भी मुक्त हो सकें !
 
उपरोक्त को देखते हुए मनुष्य को ऋषि पतंजलि के द्वारा बताए हुए यम और नियम का पालन करना चाहिए यम में सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य अपरिग्रह और असते का पालन करने के निर्देश हैं ! इस प्रकार व्यक्ति भावनात्मक तथा शारीरिक हिंसा से बचता हुआ अपराध बोध से बचकर अपनी जीवन यात्रा स्वस्थ रुप से पूरी कर सकता है !इसलिए जिस प्रकार शारीरिक रोगों के लिए तरह-तरह की सावधानियां अपनाई जाती हैं उसी प्रकार मानसिक रोगों से बचने के लिए यम और नियम का पालन करना चाहिए ! 

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.