अंग्रेजी में कहावत है कि जरूरत नई खोज की जननी है ! इसी कहावत के अनुसार पिछले दो दशक से छत्तीसगढ़ और देश के लाल कॉरिडोर कहे जाने क्षेत्र में माओवादी बिना किसी डर और खौफ के देश विरोधी गतिविधियों में लगे हुए हैं, और अब जरूरत है की इनके विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई करके इन्हें समाप्त किया जाए ! बार-बार केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान माओवादियों के हाथों मारे जा रहे हैं जिनके कारण जहां इन बलों का मनोबल प्रभावित होता है !, वहीं पर पूरा देश अपने आप को इन माओवादियों के सामने असहाय पाते हुए दुखी होता है ! एक सैनिक जब सीमा पर या अराजक तत्वों से युद्ध करता है तो उस समय पूरे देश की भावनाएं उसके साथ जुड़ जाती हैं ! यदि वह वीरता पूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त होता है तो पूरा देश उस पर गर्व करता है और यदि वह बिना लड़े ही मारा जाता है तो उसके कारण देशवासी दुखी और निराशा महसूस करते हैं ! यही सब कुछ 4 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुआ ! माओवादियों ने चुपचाप केंद्रीय सुरक्षा बल के एक दल पर हमला करके 22 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और 31 को घायल कर दिया !, इस दल का इस क्षेत्र में यह कोई साधारण गस्त या पेट्रोलिंग नहीं थी, बल्कि यह सैनिक दल एक योजनाबद्ध ऑपरेशन पर निकले थे ! जिसमें सूचना मिली थी कि माओवादियों का कुख्यात कमांडर हिडिंबा इस क्षेत्र में छुपा हुआ है और माओवादियों की 1 पीपुल्स लिबरेशन आर्मी कहे जाने वाली बटालियन इस क्षेत्र में सक्रिय है ! इसको देखते हुए सीआरपीएफ और अन्य बलों के सैनिकों के बड़े दल जिसमें करीब 2000 सैनिक थे ने इस क्षेत्र में 3 अप्रैल को इस माओवादी कमांडर तथा इनकी बटालियन को ढूंढने का अभियान शुरू किया, जिसमें उन्हें निराशा मिली !
इसके बाद 4 अप्रैल को सुरक्षा बल के सैनिक इस अभियान की समाप्ति के बाद वापस आ रहे थे ! रास्ते में अचानक इनके ऊपर आसपास की पहाड़ियों से हमला हो गया जिसमें सुरक्षा बल के उपरोक्त सैनिक शहीद हो गए ! यह हमला इन माओवादियों ने "यू " आकार में किया जिसका तात्पर्य है कि माओवादियों ने इन सैनिकों को तीन तरफ से घेरा था ! माओवादियों का उपरोक्त हमला कोई अकेली घटना नहीं है, पिछले दो दशक से भारत के लाल कॉरिडोर क्षेत्र जो आंध्र से लेकर पश्चिम बंगाल तक है में समय-समय पर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं ! अकेले छत्तीसगढ़ में ही 2010 में 76 और 2019 में 15 सीआरपीएफ के सैनिकों की इसी प्रकार हत्या इन माओवादी ने की थी ! पूरा देश अभी तक भूला नहीं है जब मई 2013 में छत्तीसगढ़ के ही झीरम घाटी में कांग्रेस की चुनावी यात्रा पर इन माओवादियों ने हमला किया था जिसमें 27 लोगों की हत्या की गई थी ! इन हत्याओं में सुरक्षा बल के सैनिकों के साथ साथ यात्रा में भाग लेने वाले कांग्रेसी नेता भी थे ! कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और एक भूतपूर्व मंत्री भी थे ! माओवादियों ने देश के लाल कॉरिडोर में पिछले दो दशक में 12000 लोगों की हत्या की जिसमें 2700 सुरक्षाबलों के सैनिक थे ! यहां पर यह विचारणीय है की इतने लंबे समय से यह माओवादी देश के अंदर जानी पहचानी जमीन पर हमारे देश और सुरक्षाबलों के विरुद्ध इतने सक्रिय हैं और कैसे इनको सारे संसाधन उपलब्ध हैं ! इसके अलावा यह भी विचार का विषय है अब तक इन सुरक्षा बलों के साथ जो भी हादसे हुए हैं उनमें ज्यादातर इनके ऊपर हमला उस समय हुआ है जब यह सुरक्षा बल इनके हमले के लिए तैयार नहीं थे ! जिस का कारण है अक्सर इनको कैंपों में आराम करते हुए मारा गया है जब इन्होंने अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरती ! परंतु फौजी सिद्धांत के अनुसार जब भी सैनिक किसी ऑपरेशन एरिया में सक्रिय होते हैं वहां पर सैनिकों के कैंप करते और विश्राम करते समय भी सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए जाते हैं ! सैनिक नियम के अनुसार ऑपरेशन एरिया में एक स्थान से दूसरे स्थान जाते समय पहले रास्ते को सुरक्षित करने वाली पार्टी आगे चलती है जो उस क्षेत्र में खतरों को या तो स्वयं समाप्त करती है और यदि उनकी पहुंच से बाहर है तो वह मुख्य दल को बुलाकर उसका मुकाबला करवाती है ! पूरा देश जानता है जम्मू से श्रीनगर के रास्ते में राजोरी से आगे श्रीनगर तक मुख्य सड़क के दोनों तरफ पहाड़ी और जंगली क्षेत्र है और यहां से कहीं कहीं पर पाकिस्तान की सीमा भी नजदीक है ! इस प्रकार इस सड़क पर चलते हुए यातायात पर कभी भी आतंकवादियों का हमला हो सकता है ! परंतु सेना ने इस पूरी सड़क को जम्मू से लेकर श्रीनगर तक सैनिक तकनीक से सुरक्षित किया हुआ है ! इसी प्रकार पूरे कश्मीर में या आतंकवाद प्रभावित उत्तर-पूर्व के राज्यों में छत्तीसगढ़ के बीजापुर जैसी घटना कहीं नहीं घटी ! इसलिए अब समय आ गया है जब इन केंद्रीय सुरक्षा बलों की ऑपरेशन तकनीकों का सैनिक विशेषज्ञों के द्वारा विश्लेषण किया जाना चाहिए और पिंकी रिपोर्ट के अनुसार खामियों को दूर किया जाना चाहिए !
सीआरपीएफ के डी जी श्री कुलदीप सिंह से जब बीजापुर के हमले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया की इस ऑपरेशन में उन्हें पूर्व सूचना थी, और सूचना के अनुसार पर्याप्त सैनिकों को इस ऑपरेशन में भेजें गए थे ! 400 आतंकियों की सूचना थी और इस इस दल में 2000 सैनिक भेजे गए थे ! जो संख्या के हिसाब से पर्याप्त थे ! इस ऑपरेशन में सीआरपीएफ को ड्रोन और अन्य तकनीकी माध्यमों से जरूरी सूचना भी समय-समय पर प्राप्त हो रही थी ! तो फिर सब होने के बाद में क्या कमी थी जिसके कारण इन माओवादियों ने इतने सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और उसके बाद आसानी से मारे गए सैनिकों के हथियार उनके कपड़े और सामान भी लूट ले गए ! इस सबसे सैनिक दृष्टि से यह ज्ञात होता है कि यह दल सैनिक तकनीक के अनुसार इस ऑपरेशन क्षेत्र में हरकत नहीं कर रहा था ! इसीलिए इनके साथ यह हादसा हुआ ! सेना का उद्देश्य हमेशा रहता है कि बहुत कम नुकसान के साथ दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा आघात पहुंचाया जाए तथा हर स्थिति में रिजर्व उपलब्ध रहें ! इसलिए जब सैनिक दल इस प्रकार मार्च करता है तब दूसरा दल उसके लिए रिजर्व का काम करता है ! यदि बीजापुर में इस प्रकार की प्लानिंग सीआरपीएफ के अधिकारियों ने की होती तो शायद ना तो इन सैनिकों की शहादत होती और ना ही पूरे देश को निराशा और हताशा महसूस होती ! अक्सर ऐसे समय पर जब इस प्रकार सैनिक मारे जाते हैं उस समय अन्य बातें जैसे शहीद होने वाले सुरक्षा बल के सैनिकों के साथ सहानुभूति और उनके अंतिम संस्कार इत्यादि के द्वारा मुख्य मुद्दा कि इस ऑपरेशन में क्या कमी थी जिसके कारण यह हादसा हुआ भुला दिया जाता है ! परंतु सेना में हर ऑपरेशन का विश्लेषण एक विशेष जांच दल के द्वारा किया जाता है ! ऑपरेशन में अच्छा योगदान देने वालों को वीरता पुरस्कार और गलत काम करने वालों के खिलाफ जरूरी कानूनी कार्रवाई की जाती है ! इसी प्रकार कारगिल युद्ध के बाद में जांच में पाया गया कि सर्दियों में जिस इन्फेंट्री बटालियन की जिम्मेदारी थी उस क्षेत्र पर निगरानी रखने की उसने अपना कार्य सही ढंग से नहीं किया ! इसलिए उस पूरी ब्रिगेड के कमांडर और संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की गई ! परंतु 2010 से लेकर आज तक छत्तीसगढ़ और देश के अन्य भागों में केंद्रीय सुरक्षा बलों के ऑपरेशंस का ना तो बाद में विश्लेषण किया गया और ना ही इनसे सबक सीखे गए ! जिसका परिणाम है कि बार-बार इन बलों के सैनिकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है ! 2010 में सीआरपीएफ के डीआईजी नलिन प्रकाश की कमान में सीआरपीएफ के 76 सैनिकों को माओवादियों ने एक कैंप के अंदर इसी प्रकार मौत के घाट उतार दिया था ! परंतु इतने सैनिकों के मारे जाने के बाद भी ना तो उस ऑपरेशन का विश्लेषण किया गया और ना ही कोई जरूरी कदम उठाए गए ! हां इसके बाद इस ऑपरेशन की कमान करने वाले नलिन प्रकाश को प्रमोशन दिया गया, और आज वही नलिन प्रकाश सीआरपीएफ में आई जी के पद पर तैनात हैं ! इस प्रकार इस समय गृह मंत्रालय को सीआरपीएफ से यह पूछना चाहिए कि बार-बार इतने बड़े हादसे क्यों हो रहे हैं ! जबकि इस प्रकार की स्थितियों में सेना को कभी ऐसी स्थिति नहीं देखनी पड़ी ! यदि यह सवाल एक एसओपी के रूप में हर ऑपरेशन के बाद पूछा जाए तो शायद सीआरपीएफ के अधिकारी जवाबदारी महसूस करेंगे और ऑपरेशन क्षेत्र में सैनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए स्वयं अपने सैनिकों के साथ रहेंगे !
केंद्रीय सुरक्षा बलों के ऑपरेशंस की समीक्षा करने से पता लगता है की इनके ऑपरेशंस में अक्सर सैनिकों की शहादत ही होती है ! आज तक इन सुरक्षाबलों के कैडर के अधिकारी या आईपीएस अधिकारियों का नाम कभी भी शहीदों की सूची में नहीं देखा गया ! इससे साफ जाहिर होता है कि ऑपरेशन कमान मुठभेड़ के समय निचले स्तर के इंस्पेक्टर या हवलदारों के नेतृत्व में छोड़ दी जाती है और इन दूरदराज के क्षेत्रों में जब कोई अधिकारी इन पर नियंत्रण नहीं करता है तब यह सुरक्षा के लिए जरूरी सावधानी में कोताही कर देते हैं ! यही 2010 में हुआ जब इस बल के सैनिक बिना सावधानी लिए कैंप कर रहे थे और उन पर हमला हो गया जिसमें इनके 76 सैनिक मारे गए ! परंतु सेना का इस प्रकार का दल जब भी कहीं बाहर कैंप करता है तो वह अपनी निश्चित प्रक्रिया और ड्रिल के अनुसार चारों तरफ की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता है ! इस प्रकार यदि उन पर कोई हमला होता है तो वह उसका करारा जवाब देते हैं ! सेना के अंदर यह परंपरा है की अधिकारी अपने सैनिकों के साथ सबसे आगे चलते हैं ! भारत की आजादी के बाद से ही भारतीय सेना उच्च परंपराओं और नियमों के द्वारा देश की हर स्थिति में सुरक्षा कर रही है ! चाहे देश में पंजाब का आतंकवाद हो या दूसरे देश श्री लंका में जाकर वहां के आतंकवाद को समाप्त करना हो ! 1947 में जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के श्रीनगर और जम्मू क्षेत्र में हमला कर दिया था ! उस समय मेजर सोमनाथ शर्मा की कुमाऊं बटालियन को गुरुग्राम से श्रीनगर भेजा गया था ! गुरुग्राम में रहते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा को गंभीर चोट लग गई थी ! जिसके कारण सैनिक कानून के अनुसार उन्हें ऑपरेशन नहीं भेजा जा सकता था ! परंतु फिर भी जिद करके मेजर सोमनाथ शर्मा इस ऑपरेशन में गए और उन्होंने अपने सैनिकों के साथ पाकिस्तानियों से लोहा लिया और अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए ! इसी ऑपरेशन में ब्रिगेडियर उस्मान जिनको एक संत ब्रिगेडियर बोला जाता है ने स्वयं आगे रहकर जम्मू से लेकर पुंज तक इस क्षेत्र की रक्षा करते हुए पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब देते हुए उन्हें हराया ! ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खा ली थी कि जब तक पाकिस्तानियों को अपने क्षेत्र से बाहर नहीं निकाल देंगे तब तक वे जमीन पर चटाई बिछाकर सोएंगे और उन्होंने अपने पद के अनुरूप मिलने वाली सारी सुख सुविधाओं को त्याग दिया था ! इस प्रकार वह भी वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गए ! युद्ध के बाद मेजर सोमनाथ शर्मा को परमवीर चक्र और ब्रिगेडियर उस्मान को मरणो उपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया ! इससे सेना की परंपराओं को बनाने में इनका बलिदान आधारभूत ढांचे का काम कर रहा है ! इसी प्रकार 1962 की लड़ाई में मेजर शैतान सिंह केवल 110 सैनिकों के द्वारा चीन के 1200 सैनिकों को खत्म करके रेजांगला क्षेत्र की सुरक्षा की ! सेना में यह बहुत आश्चर्य के साथ देखा जा रहा है की बीजापुर में दो हजार सैनिकों के साथ कोई डीआईजी या आईजी स्तर का अधिकारी क्यों नहीं था ! यदि इस स्तर का अधिकारी इनके साथ होता तो उनके नीचे वाले अधिकारी स्वयं आगे रहते और अपने सैनिकों को जरूरी नेतृत्व प्रदान करते रहते जिसके द्वारा इतनी बड़ी घटना को बचाया जा सकता था ! किस प्रकार देखा जा सकता है कि केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारी अपने अधीनस्थों के लिए सेना की तरह आदर्श प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं !
उपरोक्त घटनाक्रम से यह साफ जाहिर होता है बीजापुर में नेतृत्व और सैनिक तकनीक की भारी कमी थी ! इसलिए यदि हमारे केंद्रीय सुरक्षा बलों को इन माओवादी या अन्य आतंकियों से मुकाबला करना है तो उन्हें सेना की तकनीकों को अपनाना होगा, और अपने सैनिकों को सेना की तरह ही प्रशिक्षित करना होगा ! परंतु इसके लिए इनके अधिकारियों को अपने सैनिकों के साथ उसी प्रकार जुड़ना होगा जिस प्रकार सेना के अधिकारी अपने सैनिकों के साथ रहते हैं ! सेना में एक अधिकारी अपने सैनिकों के साथ रहने और चलने में गर्व महसूस करता है ! 70 के दशक तक इन अर्धसैनिक बलों तथा केंद्रीय सुरक्षा बलों में सैनिक परंपराओं को स्थापित करने के लिए सेना के कर्नल और उसके ऊपर के अधिकारियों को कमांड स्तर पर भेजा जाता था ! यह अधिकारी अपने अधीनस्थों को सेना की परंपराओं के अनुसार तैयार करते थे ! परंतु कैडर मैनेजमेंट का बहाना लेकर सेना के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति इन बलों में बंद कर दी गई और उसके स्थान पर आईपीएस अधिकारियों को भेजा जाने लगा ! जो कभी भी इन बलों के साथ उस प्रकार नहीं जुड़े जिस प्रकार एक सेना अधिकारी जुड़ता है क्योंकि इन आईपीएस अधिकारियों को ना तो ऐसे ऑपरेशनों का अनुभव होता है और ना ही उनमें ऐसे बलों में सैनिक परंपराओं और माहौल को बनाने का ज्ञान ! यदि सेना के अधिकारी इस समय इस बल में होते तो बीजापुर जैसी घटना ना घटती ! क्योंकि वह स्वयं इनके साथ रहकर अपने दिशा-निर्देशों से इनकी सुरक्षा को हर स्थिति में मजबूत बनाते ! बीजापुर में मारे गए सैनिकों के शव और उनके आसपास के माहौल को देखने से ज्ञात होता है की इन्होंने सैनिक तकनीकों का सुरक्षा के लिए उपयोग नहीं किया था !
इसलिए देश हित में भारत सरकार के गृह मंत्रालय को बीजापुर की घटना की जांच सेना के वरिष्ठ सेवारत या सेवानिवृत्त अधिकारी से करानी चाहिए और इस जांच के परिणामों पर कार्यवाही करते हुए केंद्रीय सुरक्षा बलों के ढांचे, प्रशिक्षण और इनकी कार्यप्रणाली में व्यापक बदलाव करने चाहिए ! इसके अतिरिक्त लाल कॉरीडोर कहे जाने वाले क्षेत्र में यहां के निवासियों को सुरक्षा का भरोसा देने के लिए सैनिक और अर्ध-सैनिक बलों के प्रशिक्षण केंद्रों और उनकी छावनियों को इन में स्थापित किया जाना चाहिए ! इससे इन क्षेत्रों में सैनिकों की मौजूदगी से देश विरोधी गतिविधियों में सक्रिय तत्व ना तो यहां से धन एकत्रित कर पाएंगे और ना ही बाहर से गोला बारूद और हथियार एकत्रित कर सकेंगे ! इस प्रकार कार्रवाई करके देश अपने सैनिकों को वह सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए इस क्षेत्र में विकास भी होगा !
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