इस्लाम और असहिष्णुता: किशन भारवाड़ की दिनदहाड़े नृशंस हत्या

इस्लाम का वर्चस्ववादी, बहिष्कृत और बर्बर स्वभाव जन सामान्य और इस राष्ट्र के सेक्युलर ताने-बाने की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है और हम निःसंदेह एक देश के रूप में इस विलक्षण और विकराल समस्या के मूल को समझने में विफल रहे हैं।

NewsBharati    14-Feb-2022 12:39:53 PM   
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गुजरात के अहमदाबाद के धंधुका जिले के 27 वर्षीय युवक और बमुश्किल एक महीने की मासूम बच्ची के पिता किशन भारवाड़ ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया, जो मुसलमानों को रास नहीं आया। उन्हें वह पोस्ट उनके पैगंबर की शान में गुस्ताख़ी लगा और उन्होंने इस प्रकरण को इस्लामिक तरीके से निपटने का नियत किया। इस महीने की 25 जनवरी को दो मुस्लिम युवकों ने वीडियो (जो तथाकथित शांतिप्रिय मुसलमानों की भावनाओं को आहत कर रहा था ) पोस्ट करने के लिए किशन भारवाड़ की निर्दयता के साथ से गोली मार कर हत्या कर दी। आखिर उस वीडियो में ऐसा क्या था?
 
Kishan Bharwad 
 
6 जनवरी को फेसबुक पर साझा किए गए उस वीडियो में पैगंबर मुहम्मद का चित्र दिखता था। उस वीडियो की विषयवस्तु में यीशु कह रहे थे कि वह भगवान के पुत्र है, मोहम्मद कह रहे थे कि वह भगवान का पैगंबर है, और श्री कृष्ण यह कहते हुए दिख रहे थे कि वे स्वयं भगवान हैं। इनमें से एक भी शब्द किशन का व्यक्तिगत बयान नहीं था। यह सब वही बातें है जो हमें सभी धर्मग्रंथों के माध्यम से अनादि काल से बताई गयीं हैं। ऐसी भी संभावना है कि यह वीडियो किसी और द्वारा बनाया गया हो, जिसे किशन ने सिर्फ अपनी टाइमलाइन पर साझा किया था।
लेकिन इस पोस्ट से स्थानीय मुस्लिम समुदाय को समस्या हो गयी, क्योंकि किशन ने पोस्ट के माध्यम से उनके पैगंबर द्वारा कही गई बातों को दोहराकर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को कथित रूप से आहत किया था, जिसके कारण वे पुलिस में शिकायत दर्ज कराने तक गए थे। किशन एक पशु प्रेमी युवक था, जो नियमित रूप से मुस्लिम कसाईयों के हाथों से गौवंश को अवैध वध से बचाने के लिए सक्रिय रूप से काम करता था। मुस्लिम युवकों द्वारा उसकी हत्या से कुछ दिन पूर्व ही उसे क्षमा याचना के लिए विवश किया गया था, लेकिन यह इस्लामिक शिक्षाओं और निर्देशों के अनुसार पर्याप्त नहीं था।
 
25 जनवरी को 5:30 बजे जब वह अपने चचेरे भाई के साथ अपने दोपहिया वाहन पर मोधवाड़ा इलाके से गुजर रहा था तब दो बाइक सवार युवकों ने उसका पीछा करते हुए उसे पीछे से गोली मार दी। इस हत्या के जुर्म में पुलिस ने 25 वर्षीय मोहम्मद शब्बीर और 27 वर्षीय मोहम्मद इम्तियाज पठान को गिरफ्तार करके हिरासत में लिया है। यह तथ्य सामने आया है कि इन दोनों हत्यारों ने मोहम्मद अयूब जारवाला नामक एक मौलवी (जो हमेशा से इस्लामिक मतांधता के अंतर्गत ईशनिंदा के लिए मौत का प्रचार करता था) के आदेश पर इस हत्याकांड को अंजाम दिया है। उसने ही इन हत्यारों को हथियार उपलब्ध कराये थे और वह दिल्ली में रहने वाले एक दूसरे मौलवी के संपर्क में भी था।
 
हत्यारा मोहम्मद शब्बीर, जिसने दिवंगत किशन भारवाड़ पर गोलियां चलाईं थी वह एक स्थानीय विक्रेता है और वह कुछ समय पहले ही दिल्ली निवासी मौलवी के संपर्क में आया था, बाद में उस मौलवी ने ही उसे अहमदाबाद के जमालपुर में रहने वाले मौलवी मोहम्मद अयूब जारवाला से मिलवाया था। इस हत्या को अंजाम देने से पूर्व वह मौलवी अयूब से कई बार मिला था, उसी दौरान उन्होंने किशन की हत्या करने का पैशाचिक षड्यंत्र रचा था। इससे आतंक की एक योजनाबद्ध और सुसंगठित प्रकृति का पर्दाफास होता है, जिसके परिणामस्वरूप किशन की मृत्यु हुई।
 
यह ध्यातव्य है कि हिंदुओं के विरूद्ध मज़हबी द्वेषपूर्ण अपराध की यह कोई पहली घटना नहीं है और कदाचित न ही अंतिम। ऐसी ही इस्लामिक मतांधता का शिकार हुए दिवंगत कमलेश तिवारी ने कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद को दुनिया का पहला समलैंगिक कहा था जिसके कारण उनकी भी हत्या कर दी गयी थी। उनके विकिपीडिया पेज के अनुसार 18 अक्टूबर, 2019 को लखनऊ में उनके निवास पर उन्हें पहले गोली मारी गयी गई फिर 15 बार चाकू मारा गया और फिर जिस तरह से बकरे का गला काटा जाता है ठीक वैसे ही गला काटा गया था। वास्तव में यह केवल भारत की ही घटना नहीं है प्रत्युत चार्ली हेब्दो कांड की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी एक मज़हबी नरसंहार का राक्षशी खेल चल रहा है, इसी खूनी खेल के अंतर्गत इस्लामिक विचारधारा ने उन लोगों का खून बहाया है जो मोहम्मदवाद की विचारधारा को नहीं मानते हैं।
 
वर्ष 2015 में, फ़्रांस में रहने वाले सैद और चेरिफ कौआची नामक दो मुस्लिम भाइयों ने फ्रांसीसी व्यंग्य साप्ताहिक प्रकाशन चार्ली हेब्दो के पेरिस कार्यालय में हमला कर दिया था। उन दोनों इस्लामिक आतंकियों ने 12 लोगों को मार डाला और 11 लोगों को घायल कर दिया था, वे दोनों ही आधुनिक राइफलों और अन्य हथियारों से लैस थे। अभी अभी दिसंबर 2021 में पाकिस्तान के सियालकोट में इस्लामिक भीड़ ने मैनेजर के पद पर कार्यरत श्रीलंका के एक व्यक्ति को ईशनिंदा के कारण जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दिया था। ऐसा ही एक प्रकरण हाल ही में घटित हुआ जब एक पाकिस्तानी महिला को "ईशनिंदा" की व्हाट्सएप की कहानी पर मार डाला गया था। विविध देशों में इन हत्याकांडों की समरूप प्रकृति किसी भी व्यक्ति को जो इनके अदूरदर्शी कायदे कानूनों से सहमत नहीं है उसे नरपिशाच और क्रूर बनाने के इस्लामिक तंत्र और हिंसक मानसिकता का प्रतिबिंब है।
 
निःसंदेह, इन हत्यारों को हलाल सर्टिफिकेट देने वाला इस्लामिक संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों के माध्यम से कानूनी सहायता और कौमी समर्थन दिया जाएगा। यह संगठन प्रायः एक मज़हबी एजेंडे को आगे बढ़ाता है जो "हलाल" के छद्म वेश में स्वयं को छुपाता है और गैर-मुस्लिमों (काफिरों) के लिए आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार सुनिश्चित करने का षड्यंत्र करता है। गैर-मुस्लिमों को नमकीन जैसे शाकाहारी खाद्य पदार्थों के लिए हलाल सर्टिफिकेट के माध्यम से जमीयत उलेमा-ए-हिंद को पैसा देना पड़ता है। उसी पैसे को बाद में उन अपराधियों और हत्यारों की सहायता के लिए उपयोग किया जाता है जो कमलेश तिवारी और किशन भारवाड़ जैसे निर्दोष गैर-मुस्लिमों को मारते हैं।
 
गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने इस नृशंस हत्या के बारे में ट्वीट करते हुए कहा है कि "न्याय अवश्य किया जाएगा"। लेकिन इससे इस देश के सेक्युलर ताने-बाने के बारे में कई प्रश्न उठते हैं। धार्मिक सहिष्णुता सेक्युलेरिज्म के केंद्र या मूल में होनी चाहिए, लेकिन निर्दोष लोगों को मारना कुछ ऐसा कृत्य नहीं है जिसे ईशनिंदा की आड़ में सहन किया जाना चाहिए। हमें आश्चर्य के साथ संशय है कि क्या किशन भारवाड़ को न्याय मिलेगा? या यह मामला भी जैसे कि हमारे 'सेक्युलर' देश के दयालु नेत्रों के नीचे कई अन्य मामलों की तरह ठंडा पड़ जाएगा और इस पर भी मिटटी डाल दी जायेगी।
 
इस्लाम का वर्चस्ववादी, बहिष्कृत और बर्बर स्वभाव जन सामान्य और इस राष्ट्र के सेक्युलर ताने-बाने की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है और हम निःसंदेह एक देश के रूप में इस विलक्षण और विकराल समस्या के मूल को समझने में विफल रहे हैं।
 
हमारा देश एक ऐसा देश है जो इन वास्तविक और अपरिहार्य प्रश्नों के उत्तर देने में विफल रहा है:

1. क्या यह नहीं समझा जाना चाहिए कि एक पंथ जो "मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई देवता नहीं है, और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं।" जब वे "ला इल्लाह इल्लल्लाह" का दिन में 5 बार लाउड स्पीकरों से घोषणा करता है, तो वह पंथ अपने वर्चस्व का दावा करता है? क्या इसे लाउडस्पीकरों के माध्यम से दिन में 5 बार दूसरे मत के अनुयाइयों पर असहिष्णुता के रूप में थोपने जैसा नहीं देखना चाहिए?
 
2. क्या एक मुसलमान को शाहदा का अर्थ जानने के बाद एक गैर-मुस्लिम से सेक्युलर होने की आशा करनी चाहिए?
 
3. सेक्युलेरिज्म इस प्रकार हिंदुओं की तरह दूसरों की सेवा कैसे कर रही है जो उन लोगों के रक्तपिपासु नहीं हैं और जो उनके मत/पंथ का अनुपालन नहीं करते हैं?
 
4. भारतीय राज्य/सरकार उन निर्दोष लोगों को न्याय प्रदान करने की योजना कैसे बना रहा है जो ईशनिंदा के नाम पर इस्लामिक कट्टरता का शिकार हुए? क्या आतंक के ऐसे कुकृत्यों की रोकथाम के लिए पर्याप्त और सशक्त कानून बनने जा रहे हैं?
 
5. क्या हमें शीघ्र ही ऐसे लोगों के हाथों से कानून की आशा करनी चाहिए जो यहां अपराध या मानवता के बिना सभी निर्णय लेने के लिए हैं?
 
6. क्या हमें अपने बच्चों के सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह वास्तव में उन्हें मार सकता है?
 
हम इस जघन्य और अमानवीय कृत्य को लेकर वास्तविक मीडिया में कोई बड़ी या अधिक कवरेज नहीं देख रहे हैं। हमें संशय है कि क्या वास्तव में उस देश में न्याय किया जाएगा जहां धार्मिक सहिष्णुता एकतरफा प्रेम संबंध जैसा प्रसंग है। चाहे तालिबान शासित अफगानिस्तान में, पाकिस्तान जैसे असफल इस्लामिक देश, या भारत और फ्रांस जैसे सेक्युलर लोकतंत्र हों, ईशनिंदा के साथ इस्लाम के खेल रक्तरंजित हैं। एक सुसंस्कृत और सभ्य देश के रूप में, हमें हर उस अपराधी पर मुकदमा चलाना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ईशनिंदा की आड़ में निर्दोष नागरिकों की हत्या के जघन्य और घृणित कृत्यों में भाग लेता है। अभी के लिए, यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि ईशनिंदा के नाम पर होने वाली ये नृशंस हत्याएं क्षणिक नहीं होती, प्रत्युत एक सुव्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से होती हैं, जो हमें संवैधानिक और आध्यात्मिक रूप से इस विषय पर गहन रूप से पुनर्विचार और चिंतन करने की मांग करती हैं। कल कमलेश तिवारी थे, आज यह किशन भारवाड़ है और कौन जानता है कि आने वाले कल आप या मैं मुस्लिम भावनाओं को आहत करने के नाम पर मारे जाएंगे? क्योंकि उनके हाथ रक्तरंजित होने के बाद भी उनकी भावनाएं किससे आहत होती हैं यह नियत करने के पूरे विशेषाधिकार उनके पास ही हैं।

Yuvraj Pokharna

Yuvraj Pokharna is a Surat-based educator, columnist, and social activist who keeps a keen eye on contemporary issues including Social Media, Education, Politics, Hindutva, Bharat (India) and Government Policies. He frequently voices his opinions unequivocally on various on social media platforms, portals and newspapers of eminence and repute like Firstpost, Financial Express, News18, NewsBharati, The Daily Guardian and many more. He is a prominent youth activist with strong knowledge of what he writes.