शेर का मुख क्यों खुला है ।

NewsBharati    07-Sep-2022 14:14:17 PM
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-Rakesh Kumar

धर्म निरपेक्ष भारत के आधुनिक कहे जाने वाले भारतीय आज बहुत ग़ुस्से में हैं ,वे पूछ रहे हैं कि राष्ट्रीय चिह्न शेर का मुख क्यों खुला है ,बड़ा सवाल यह है कि शेर के अलावा और कौन मुख खोल सकता है ? यूँ राष्ट्रपिता बापू के देश में बंदरों का बोलबाला है । उनमें से भी तीन को बापू ने बुरा देखने ,बुरा कहने और बुरा सुनने से रोक दिया । इनसे भी ज़रूरी था एक चौथा बंदर जो कहता ‘बुरा मत करो’ ,किंतु उसे या तो बापू भूल गए ,या भाई लोगों ने छुपा दिया !
 
national emblem 

तो मामला एक तरफ़ा हो गया ! अब बुरा करने से रोकने वाला बंदर तो ग़ायब है ! पर बुरा न देखने न बोलने न सुनने वाले सही सलामत हैं ! वैसे भी होता भी तो इस चौथे बंदर की सुनता कौन? अपने मुँह कान और आँख पर हाथ रखने की बात अलग है दूसरे के मन और हाथ को रोकना अलग ! परिणाम यह हुआ कि पिंजरे के तोते हों या पिंजरे के श्वान सबने भेड़िए हो जाने का फ़ैसला कर लिया, घर के लोग़ों ने सरकारी ज़मीन दबा ली पड़ोस के देशों ने देश की ज़मीन ! नेता ,अधिकारी , वकील और बाहुबली इनकी रक्षा का हफ़्ता खाने लगे जो न खाएँ तो वे झूठे मामलों में फँसाए जाने लगे ! देशी न्यायालय की विदेशी देवी ने तो बिना बापू के कहे ही पट्टी बांध ली है ? मुझ मूर्ख को तो लगता है कि गांधारी ने आँखों पर पट्टी बांधी तो औलाद बिगड़ गयी यहाँ क्या होगा भगवान जाने !

एक लंदन का बेली कोर्ट हाउस ही है जो बिना आँख पर पट्टी वाली देवी ही अपने हृदय में लिए है , वह आज भी कहता है कि यह आँखों की पट्टी सौलहवीं शताब्दी में आयी है। मानो भारत आने से पहले उन्होंने अपनी आज़ादी का इंतजाम किया हो ! ताकि ईस्ट इंडिया कम्पनी कुछ भी करे न्याय दृष्टि ही न पड़े ।दुनिया चाहे कुछ भी कहे, अपन भाई लोग तो आँखो पर पट्टी वाला ही न्याय चाहते हैं । कहीं न्याय की आँखों से पट्टी हट गयी तो हमारी बंदर बाँट का क्या होगा !

इन तीन बंदरो के आधुनिक देश में सड़कें,पुल बनते ही बहने लगे ! स्कूल बिना अध्यापक ,अस्पताल बिना चिकित्सक और थाने बिना पुलिसकर्मी के रहने ‘लगे ! कोई शिकायत करे तो गाना बजा दिया जाए,” कह दो कि आ रहे हैं साहब नहा रहे हैं” । ऐसे माहौल में मुँह कौन खोले ? दिनकर ने तब लिखा था
ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ?

“अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।”
दिनकर जानते थे कि अज्ञान की लम्बी नींद से पहले ‘भारत ‘ नाम आया था शेरों के दांत गिनने वाले बालक से,
जब बच्चे सिंहों से खेलते थे ,तब भारत के राजा चक्रवर्ती सम्राट होते थे ,विश्व विजय करते थे,उस समय के मंदिर,स्मारक आँकोर वाट से लेकर मध्य एशिया तक मिलते थे ,बामियान के बुद्ध स्मारक अभी कुछ समय पहले ही तोड़े गए हैं । सिंह को भुला जब ख़ुद को सोने की चिड़िया मान लिया तो भारत के शत्रुओं की बन आयी,आक्रांताओं ने तो शासन किया ही, ग़ुलामों ने भी हमें खूब लूटा है ,यह तो कुछ ईश्वर की ही कृपा है कि आज हमारा राष्ट्रीय चिह्न बापू के तीन बंदर नहीं अपितु सिंह हैं !
दिनकर हुंकार कर रहे थे,

“तू तरुण देश से पूछ अरे,गूँजा कैसा यह ध्वंस-राग?
अम्बुधि-अन्तस्तल-बीच छिपी यह सुलग रही है कौन आग?
प्राची के प्रांगण-बीच देख,जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल,
तू सिंहनाद कर जाग तपी!”

इससे पहले कि दिनकर देश हमें कान और मुँह खोलने की बात कह पाते, हमने दिनकर को ही लगा दिया किनारे,।शिक्षा मंत्रालय मिला ऐसे शिक्षित को मिला जो लिख गया प्रधान मंत्री की निंदा वह भी मरने के बाद छापने के लिए! प्रधानमंत्री के इतने समीप भी मुख खोलने की हिम्मत न हुई तो बाक़ी भारत क्या मुख खोलता ?

जब कोई नहीं था जो सुनें इन घर के भेड़ियों के विरुद्ध दुखी जनता की पुकार तब देश और जनता ने भी मुख बंद कर लिया । एक उच्च न्यायालय ने मुख खोला तो आपात काल थोप दिया गया ! बिना मुख खोले ही लाखों को जेल में बंद कर दिया गया ! मुख बंद करने को मीसा क़ानून आया ! न ज़मानत न सुनवाई,यह कैसी मुसीबत आयी ?

यह किसी एक कवि हृदय की पीड़ा नहीं थी ,सब दुखी थे कुंठित थे ,कि आज़ादी तो आयी पर ग़ुलामी की पीड़ा से मुक्ति नहीं आयी !
कवि बच्चन भी तब कह उठे थे कि,” अल्लाह पर लगा है ताला बंदे करें मनमानी रंग रेल “
आज जीवित होते तो लिखते, “वाह रे बंदर बाँट में लगे मेरे लाल ,तुमने बनाया जनता का खूब खेल “
तब मुख खोलने के बात ही बेमानी हो गयी थी ।

जो लोग आज शेर का मुख कुछ अधिक खुल जाने से परेशान हैं, आज के परिवर्तन के विरोधी इन्हीं लोगों ने दूरदर्शन से सत्यम शिवम् सुंदरम ही उड़ा दिया ,कृषि दर्शन कार्यक्रम से ‘ किसान भाईयों को राम राम’ हटायी गयी तब तो देश की गंगा जमुनी सभ्यता का कोई अपमान नहीं हुआ! राजधानी एक्सप्रेस से सुबह का भजन कार्यक्रम वन्दनाउड़ा डाला ! विद्यालयों में भारत की तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत और प्रांतीय भाषाओं के साथ साथ जर्मन फ़्रेंच और अन्य यूरोप की भाषा जोड़ दीं! आप ख़ुद ही सोचें कैसे दिन थे कि शेर नहीं लोमड़ी और पामेरियन इन भाषाओं को पढ़ाते थे ! भारत के इतिहास से मुग़लों को छोड़ सारे हिंदू राजा उड़ा डाले ! तब किसी के कान पर एक जूं तक न रेंगी ! उन्हें तो शेर भी मौनी बाबा ही चाहिए थे ! बोलने वालों के लिए धारा 356 थी । पूर्ण बहुमत होने के बाद भी राज्यों में मुख्यमंत्री बदलते जाते थे या यूँ कहिए शेर जाते थे! मेमने आते थे ।

हालत ऐसी थी यदि ये शेर सारनाथ के मूर्ति प्रतिबिम्ब न होते तो शायद ‘सत्यमेव जयते’ भी न बच पाता इसकी कोई उम्मीद नहीं थी । बात चल रही थी कि भारत में कौन मुख खोल सकता है ,दहाड़ कौन सकता है । आप की रही सही जान निकल जाएगी यह जान कर कि वैध हथियारों की संख्या के आधार पर हम विश्व में १२०वे स्थान पर हैं और अवैध हथियारों के आधार पर हमारा दूसरा स्थान है ! कुल ३७ लाख लायसेन्स का हथियार रखने वाले लोग हैं और स्मॉल आर्म सर्वे २०१८ के अनुसार सात करोड़ से अधिक हथियार हैं बिना लाइसेंस वाले, इन्हें न गोली का हिसाब देना है न लेनी है किसी से इजाज़त, खूब गुजरेगी जब टकराएँगे निहत्थी पुलिस और हथियारबंद गुंडे !उस पर कमाल यह था कि आपदा आती है तो पुलिस कभी आती नहीं ! कहीं थोड़ा बहुत संघर्ष भी न हो जाए इसलिए सबसे पहले हमारी सरकार लाईसेन्सी हथियार रखवा लेती है ।मुक़ाबला और भी एक तरफा जो जाता है ।चंबल, उत्तर पूर्व , मध्य भारत में नक्सल , और सत्य मंगल जंगल का वीरप्पन इसके जीते जागते प्रमाण हैं ! उस पर भी कौतुक यह है कि जहां पुलिसकर्मी का घेरा हो वहाँ ये डाकू आराम से कवि सम्मेलन आयोजित कर लेते थे और इसके बाद आराम से ग़ायब भी हो जाते थे !तब मुख कौन खोल सकता था । जनता तो की तो बात ही क्या थी ,मजबूरी का नाम महात्मा गांधी तक हो गया ।

तो भाई लोग जब चाहे फिरौती माँगे जब चाहे तब कर दें तन सर से जुदा । कोई और उद्योग कितना पनपा नीति आयोग हिसाब लगाए किंतु अवैध हथियार बनाने और बेचने में हमारा कौन मुक़ाबला कर सकता है।सुनते हैं कि कहीं चर्चा चल रही थी कि राज्य में अराजकता फैल रही है ,तो मुख्यमंत्री बिगड़ गए ,” राज्य में कैसे फैलेगी अराजकता, सारे गुंडे तो हमारी पार्टी में हैं ,तो अराजकता तो हमरि पार्टी में ही फैलेगी न “ पार्टी भी मुख खोलने के ख़िलाफ़ थी । जिसने भी मुख खोला, निष्कासन के साथ खोला ।


ये सब बाहुबली,नेता ,अभिनेता सब के सब आभारी हैं अपने इन्हीं तीन बंदर और पट्टी बांधे आधुनिक न्याय की देवी के। एक दिन एक बच्चे ने पूछ लिया था कि अंकल जब न्याय की देवी की आँखों पर ही पट्टी है तो फिर वो कैसे देखेगी कि तराज़ू ठीक तोल रही है ? मै कुछ सोच पाऊँ उससे पहले ही दूसरे बच्चे ने बात सम्भालते हुए कह दिया,” धीरे बोल न्याय की अवमानना हो जाएगी “ ।विचित्र देश है हमारा ,किसी को परवाह नहीं कि न्याय की देवी की इज्जत कैसे हो पर बच्चे भी जानते हैं कि न्याय की बेइज्जती कब होती है।

किसी नेता के ख़िलाफ़ बोल दो,धर्म के ख़िलाफ़ बोल दो तो सेंकड़ों जगह सेंकड़ो एफ़ आइ आर हो जाएँ ! हाथ में पैसा न हो तो जीवन भर रोटी कपड़ा मकान की चिंता का काम जेल करेगी ।पैसा हो, सम्पर्क हो तो न्यायालय भी रात को हाज़िर है ! तब कौन खोल सकता है मुख इस देश में !

सत्तर साल से अशोक की लाट पर ,बापू के नोट पर बैठे बैठे शेरों ने पूरा भारत और उसमें चल रहा गोरख धंधा देख लिया है ।भेड़िए, गीदड़ और श्वान ही बोलते रहे हैं ,शेर और जंगल सिकुड़ते रहे हैं ।सब्र की भी सीमा होती है ! कब तक बंद रखें मुख ,क्या छोड़ ही दें शेर होना ? अब शेरों ने मुख खोला है या ऊब कर जम्हाई ली है यह तो वही जाने ,पर समझ यह आ रहा है कि अब तक निश्चिंत रहे मुख ऊपर कर सुर ताल के बिना गाने वालों में आज बहुत ही चिंता है । उनका प्रिय गीत अब बिगड़ गया है ,” सुख भरे दिन बीते रे भैया ,अब दुःख आयो रे , सिंह भैया ने मुँह खोल दिखायो रे “

यहाँ हम शांति के लिए कबूतर उड़ाते रहे,वहाँ सीमा से सैनिकों के कटे सर तिरंगे में लिपट कर आते रहे ,
शांति का प्रतीक न कबूतर है न श्वेत रंग ,शांति आती है तो सिर्फ़ शासन के पीछे चमकते बल के दर्प से सच्ची बात यह है कि भेड़िए जानते हैं कि शेर को राज्याभिषेक की ज़रूरत नहीं पड़ती,जो परेशान थे कि नयी संसद क्यों बन रही है वे अब जान गए हैं कि इन शेरों के दहाड़ने को ही बन रही होगी ! जिन्हें डर लग रहा है कि यदि यह अंगड़ाई है तो वे सही समझ रहे हैं कि अब उनके लिए ,आगे बहुत लड़ाई ही होगी ! अब चारों दिशाएँ जान जाएँगी कि शेरों का मुख खुला है, सोच समझ कर ही पंगा लिया जाय! बुल्डोज़र को देख कर ही दंगा किया जाय !

शेर ने मुख खोला या नहीं यह तो समय बताएगा पर यदि कोई सचमुच ही शेर है तो उसे कोई मुख खोलने से रोक नहीं पाएगा ।