सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर पहुंच रहा है कि धर्मांतरण करवाने वाले बहुत ताकतवर या शातिर हैं!

भारत में छल से या साजिश से धर्मांतरण का इतिहास बहुत पुराना है। इसलामिक शासनकाल में करेड़ाे हिंदू मुसलमान बन गए। अंग्रेजी शासनकाल में करोड़ों गरीब हिंदू चर्च के पाले में ईसाइयत का जाम पीने लगे। आज आधुनिक भारत में भी धर्मांतरण का दौर जारी है। जिसके निशाने पर हिंदू आबादी है, भारत में हर साल लाखों गरीब हिंदू ईसाइत में धर्मांतरित करवाए जा रहे हैं।

NewsBharati    12-Jan-2023 16:29:20 PM
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देश में धर्मांतरण एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। स्वेच्छा से अगर कोई अपना धर्म बदलता है तो उसमें किसी को क्या एतराज हो सकता है ऐसे धर्मांतरण की इजाजत कानून भी देता है। अगर जबरन या लालच या किसी साजिश के तहत धर्मांतरण कराया जाए तो यह एक गंभीर मसला है। ऐसे धर्मांतरण के पीछे या ताे धार्मिक बढ़त हासिल करने की मंशा होती है या फिर क्षेत्र विशेष की डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) बदलने का एजेंडा रहता है।

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अभी इसी महीने छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में ईसाई और गैर-ईसाई आदिवासियों के बीच धर्मांतरण को लेकर हिंसा हुई है। बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में नक्सलियों के गढ़ के नाम से मशहूर इस इलाके में इन दिनों यहाँ धर्मांतरण का मुद्दा गरमाया हुआ है। नारायणपुर में मूल आदिवासी जनजातियों में गोंड,माड़िया ,मुरिया, अबुझमाड़िया प्रमुख हैं, इस इलाके में आदिवासी सैंकड़ों वर्षों से रह रहे हैं। अब आदिवासी अपनी आस्था बदल रहे हैं, तेजी से इन इलाकों में धर्मांतरण हो रहा है। आदिवासी एक एक करके ईसाई धर्म अपना रहे हैं, अब हालात ये हैं कि नारायणपुर जिले में ही नब्बे फीसदी से ज्यादा आदिवासी ईसाई धर्म अपना चुके हैं।

मतांतरण केवल क्षेत्र विशेष में जनांकिकीय परिवर्तन ही नहीं करता, बल्कि वह वहां के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को बदलने का भी काम करता है। इससे भी चिंताजनक यह है कि वह देश के मूल स्वरूप को बदलने का काम करता है। चूंकि वह देश के आत्मा को बदलने की कोशिश करता है, वहा का आदिवासी समाज ईसाई धर्मांतरण के विरोध में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। प्रचुर वन संपदा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए देश भर में विशेष पहचान रखने वाले इस नारायणपुर में अपनी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए यहां हर साल विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ”मावली मेला” आयोजित होता है। हजारों साल की इस प्रथा पर भी चर्च के कारण से संकट उत्पन्न हो गया है।

गैर ईसाई आदिवासियों के मुताबिक नारायणपुर 84 परगना में बंटा हुआ था। जिस तेजी से ईसाई गांव-गांव में फैल रहे हैं, उससे हमारी परंपरा खतरे में पड़ गई है। पहले देव उठाने के लिए लोगों की भीड़ लगा करती थी, आज बुलाने पड़ते हैं। आदिवासियों का कहना है कि हमारा समाज हिंसक नहीं है, बल्कि संगठित है और अपनी परंपराएं उन्हें सबसे अजीज हैं। ऐसे में कोई भी कोशिश जिससे हमारी संस्कृति खत्म हो, उसका विरोध हम करेंगे।

यह अच्छा है कि सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर पहुंच रहा है कि यदि धोखाधड़ी या लालच या साजिश का सहारा लेकर कराया जाने वाला धर्मांतरण थमा नहीं तो बहुत कठिन परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी। संभवतः उसे यह आभास है कि धर्मांतरण देश के समक्ष किस तरह के खतरे पैदा कर रहा है। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार उसके सामने यह तथ्य रखे कि जिन राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बना रखे हैं, वे निष्प्रभावी सिद्ध हो रहे हैं। संबंधित राज्य सरकारों को भी इस यथार्थ से अवगत होना चाहिए कि आस्था बदलवाने वाले धर्मांतरण विरोधी कानूनों को धता बताने में सफल हैं। या तो ये कानून कारगर नहीं हैं या फिर धर्मांतरण कराने वाले बहुत शक्तिशाली - शातिर हैं।

भारत में छल से या साजिश से धर्मांतरण का इतिहास बहुत पुराना है। इसलामिक शासनकाल में करेड़ाे हिंदू मुसलमान बन गए। अंग्रेजी शासनकाल में करोड़ों गरीब हिंदू चर्च के पाले में ईसाइयत का जाम पीने लगे। आज आधुनिक भारत में भी धर्मांतरण का दौर जारी है। जिसके निशाने पर हिंदू आबादी है, भारत में हर साल लाखों गरीब हिंदू ईसाइत में धर्मांतरित करवाए जा रहे हैं।

विडंबना यह है कि ईसाई मिशनरियों ने छल-कपट से धर्मांतरण को एक उद्योग का रूप दे दिया है। कुछ ऐसी ही स्थिति दावा केंद्र चलाने और दीन की दावत देने वाले इस्लामी संगठनों की भी है। धर्मांतरण में लिप्त ईसाई और मुस्लिम संगठनों पर सारी दुनिया के लोगों को अपने पंथ में लाने की ललक एक पागलपन / सनक की तरह सवार है। इससे केंद्र सरकार को भी परिचित होना चाहिए। उसकी ओर से केवल यह कहने से काम चलने वाला नहीं है कि मत प्रचार की स्वतंत्रता में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है, क्योंकि सच यही है कि इस अधिकार का भोंडे तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा करके देश की प्रकृति और उसके चरित्र को बदलने की जो कोशिश की जा रही है, उस पर लगाम लगनी ही चाहिए।