मानव शरीर में स्थित आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिए योग सर्वोत्तम विधि है ! परंतु इसके लिए मन नियंत्रित होना चाहिए अन्यथा अनियंत्रित मन ध्यान को चारों तरफ भटकाकर उसको ईश्वर में केंद्रित नहीं होने देता ! इसके कारण मनुष्य को योग में असफलता ही प्राप्त होती है ! इसलिए मान्यता है कि नियंत्रित मन मनुष्य का मित्र होता है तथा अनियंत्रित मां उसका सबसे बड़ा शत्रु है ! मनुष्य संसार का अनुभव अपनी ज्ञानेंद्रियआंख कान नाक इत्यादि से करता है और यह सब इंद्रियां अपना अनुभव मन को देती है जिस कारण मन निरंतर अनियंत्रित होता है ! मानव शरीर में मन तथा आत्मा एक साथ स्थित रहते हैंजिसके कारण यदि मनअशांत है तो वहआत्मा को भी शांत नहीं रहने देगा ! इसलिए ज्ञानेंद्रिय पर मन द्वाराइस प्रकार नियंत्रण किया जाना चाहिए जिससे मन सकारात्मक स्थिति में रहकर शांत अवस्था में रहे !

उपरोक्त स्थिति को प्राप्त करने के लिए महरिषि पतंजलि ने अष्टांग योग का प्रावधान किया है ! अष्टांग योग के दो मुख्य भाग हैं यम- सत्य ,अहिंसा, ब्रह्मचर्य,अपरिग्रहऔर असतेय तथा नियम–सत्य, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्राणीधान है ! यम मन को बाहरी संसार सेसुरक्षित करता है ! इसमें’ सत और अहिंसा के द्वारा मनुष्य सकारात्मक कर्म करता हुआ समाज की नकारात्मक प्रक्रियाओं से बचता है ! अपरिग्रह से तात्पर्य हैआवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना तथा अस्तेय मनुष्य को चोरी करने से रोकता है ! नियम का उद्देश्य मन को स्वयं के द्वारा नियंत्रित करना है ! शोच का तात्पर्य मन के अंदर संग्रहित दूषित विचारों को बाहर निकालना और इसके बाद स्वाध्याय के द्वारा स्वयं का अध्ययन करते हुए ईश्वर पर अपना ध्यान केंद्रित करना है ! इस प्रकार स्वच्छ मन आत्मा कोईश्वर से मिलने मेंसहायता करता है !
अष्टांग योग को मनुष्य अपनी दैनिक दिनचर्या के साथ ही कर सकता है इसी को तप की संज्ञा दी जाती है ! इस तप के लिए मनुष्य को संन्यास लेकर बन जाने की आवश्यकता नहीं होती है ! बल्कि संसार में रहकर निष्काम कर्म करते हुए कर्म योग के द्वारा इसे पूरा कर सकता है ! अष्टांग योग के द्वारा निर्मल मनआत्मा को परमात्मा से मिलने में सहायक होता है ! मान्यता के अनुसार मृत्यु के समय मनुष्य की जो भावना होती है उसी के अनुसार उसे आगे की गति प्राप्त होती हैऔर भावना का निर्माण मन ही करता है ! मन का महत्व इससे भी लगाए जा सकता है कि मृत्यु के समय आत्मा सूक्ष्म शरीर के रूप में मनुष्य के शरीर को छोड़ती है ! इस सूक्ष्म शरीर मेंआत्मा के साथ मन भी होता है ! यदि मन निर्मल है तो आत्मा अपने असली स्वरूप परमात्मा में विलय हो जाएगी अन्यथा मन में यदि बुरे विचार हैं तो उन विचारों के अनुसार उसे दूसरा जन्म प्राप्त होगा !