भारतीय समाज के उन्नति एवं समरसता को प्रभावित करती तुष्टिकरण तथा वोट बैंक की राजनीति

20 Oct 2020 15:02:04

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हमारे देश में पिछले लंबे समय से अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, अगड़ी जाति, पिछड़ी जाति का विवाद अक्सर देखने में आता है ! जिसके नाम पर जगह जगह दंगे और झगड़े होते रहते हैं जैसा कि अभी अभी उत्तर प्रदेश के हाथरस में देखने में आ रहा है! इससे पहले अल्पसंख्यक बहुसंख्यक के दंगों से दिल्ली में उस समय बहुत बड़ा दृश्य उत्पन्न हो गया जब अमेरिका के राष्ट्रपति दिल्ली में स्वयं मौजूद थे ! एक सम्मेलन में लोकसभा सदस्य और मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी से पूछा गया की भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक की क्या परिभाषा है और क्या उसके अनुसार भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं ! इस पर वह उत्तर रहित होकर चुप हो गए और इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए ! क्योंकि भारतीय संविधान में किसी धर्म विशेष के नागरिकों को अल्पसंख्यक परिभाषित नहीं किया गया है ! हां किसी विशेष वर्ग जैसे भारत में पारसी समुदाय समाज जिनकी संख्या केवल कुछ हजार रह गई है उनको विशेष परिस्थितियों में अल्पसंख्यक बुलाया जा सकता है ! इस प्रकार भारत का संविधान देश के विभिन्न संप्रदायों भाषा तथा संस्कृति के अनुसार कम संख्या के नागरिकों को उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अल्पसंख्यक मान सकता है ! परंतु संविधान में किसी विशेष संप्रदाय या धर्म का नाम नहीं है ! संविधान की उपरोक्त भावना के अनुसार क्या देश की 22 करोड़ मुस्लिम आबादी जो मलेशिया के बाद किसी एक देश में सबसे बड़ी आबादी है उसे अल्पसंख्यक बुलाया जाना चाहिए और क्या उन्हें अल्पसंख्यक बुलाकर उनमें हीन भावना नहीं भरी जा रही! परंतु फिर भी देश के कुछ राजनीतिक तथा मुस्लिम नेता केवल अपने राजनीतिक हितों के लिए इन्हें अल्पसंख्यक बुलाकर इनमें असुरक्षा की भावना भरकर इनको झुंड के रूप में अक्सर महानगरों की मलिन बस्तियों में रहने के लिए मजबूर कर रहे हैं ! और इस सुरक्षा और हीन भावना के कारण भारत का मुस्लिम समुदाय यहां के अन्य समुदाय के अनुपात में अपनी इतनी आर्थिक और सामाजिक उन्नति नहीं कर पाया जितनी इनसे कम संख्या में होने वाले समुदायों ने की है !इस समय राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार भारत का मुस्लिम समुदाय आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से हिंदू समुदाय की पिछड़ी जातियां कहीं जाने वाली जातियों से भी पीछे है !आजादी से आज तक सरकारें मुस्लिमों का तुष्टीकरण अल्पसंख्यक के नाम पर करती रही परंतु इनके विकास और शिक्षा का स्तर सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया गया ! 2014 में अल्पसंख्यक मंत्रालय संभालते समय स्वयं मुस्लिम नेत्री श्रीमती नजमा हेपतुल्ला ने कहा था कि अल्पसंख्यक मंत्रालय मुस्लिम विषय का मंत्रालय नहीं है क्योंकि मुस्लिम भारत के संविधान की परिभाषा के अनुसार अल्पसंख्यक की श्रेणी में नहीं आते हैं ! परंतुसंविधानकी इस भावना से धता बताकर भारत की मुस्लिम आबादी को वोट बैंक के रूप में बनाने के लिए 1992 मैं कांग्रेस पार्टी की केंद्र सरकार केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून पारित किया ! इस कानून के अनुसार मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित किया गया ! इस कानून में भी अल्पसंख्यक चिन्हित नहीं किए गए थे परंतु इस आयोग की सिफारिश पर 1993 में केंद्र सरकार ने देश के पांच धार्मिक समुदायों मुस्लिम ईसाई सिख बौद्ध तथा पारसियों को अल्पसंख्यक वर्ग घोषित करके इन्हें विशेष सुविधा देने का प्रावधान कर दिया था ! परंतु देखने में आया है कीइस प्रावधान का ज्यादातर प्रयोग केवल मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में ही किया जाता रहा है !क्योंकि अन्य समुदाय अपने स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता के कारण इतने सक्षम हैं कि उन्हें किसी प्रकार के विशेष संरक्षण की आवश्यकता नहींमहसूस हुई है !
 
1993 में केंद्र सरकार का उपरोक्त कदम भारतीय संविधान के संवैधानिक सिद्धांतों की भावना के पूरी तरह विपरीत था ! क्योंकि संविधान किसी धर्म या समुदाय को अल्पसंख्यक नहीं मानता बल्कि वह भारत के सभी नागरिकों को समान मानता है और सबको उनके विकास और सुरक्षा के समान अवसर देने का वायदा करता है ! संविधान के इन प्रावधानों के अनुसार जब देश में 1997 में बहस छिड़ी तब अल्पसंख्यक आयोग ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को पिछड़े वर्ग में डालकर उन्हें अनुसूचित तथा जनजातियों की तरह ही सुरक्षा तथा सहायता दिलाने का प्रावधान किया ! यहां पर यह विचारणीय है की हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था होने के कारण कुछ जातियों का लंबे समय तक शोषण हुआ और उन्हें दबाया गया जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पाया ! ! परंतु मुस्लिम संप्रदाय मैं तो यह जाति व्यवस्था होती ही नहीं और इस संप्रदाय के शासकों ने भारत पर 10 वीं शताब्दी से लेकर 18 वीं शताब्दी तक शासन किया ! और इनके आखिरी शासक 1857 में मोहम्मद शाह जफर गद्दी से अलग हुए थे !फिरमुस्लिम समुदाय के आर्थिक और सामाजिक रुप से पिछड़ेपन का क्या कारण है ! इसी संप्रदाय में समय-समय पर अभी भी राष्ट्रीय स्तर के बुद्धिमान और अच्छे नेतृत्व के नेता होते रहे हैं जैसे जाकिर हुसैन फखरुद्दीन अली अहमद तथा पिछले कुछ समय पहले ही देश के संत और शिक्षाविद श्री अब्दुल कलाम जिन्हें पूरा देश आदर की दृष्टि से देखता था यह तीनों भारत के राष्ट्रपति बने ! इसके साथ साथ भारत की सुरक्षा में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के योगदान को नहीं भूला जा सकता क्योंकि 1947 के अक्टूबर में जब पाकिस्तानी सेना ने अचानक कश्मीर पर हमला कर दिया था और वहां पर महाराजा का शासन था उस समय पाकिस्तानी सेना ने चुपचाप जम्मू क्षेत्र के अखनूर से राजौरी झांझर तक के क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया था उस समय भारतीय सेना ने ब्रिगेडियर उस्मान को वहां पर नियुक्त किया और उन्होंने कसम खाई कि जब तक वह इस क्षेत्र को पाकिस्तानियों से मुक्त ना करा लेंगे तब तक वह जमीन पर ही सोएंगे और एक साधारण जीवन जिएंगे !और उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय से पाकिस्तान को खदेड़ कर इस क्षेत्र को दोबारा भारत का हिस्सा बना दिया था अन्यथा यह आज पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा होता ! इसी प्रकार हवलदार अब्दुल हमीद हनीफ मोहम्मद जिन्होंने कारगिल युद्ध में सबसे पहले अपना बलिदान दिया था बलिदान के उदाहरण है ! इसके अतिरिक्त आज भी देश की विभिन्न उच्च स्तर की प्रवेश परीक्षाओं में मुस्लिम नवयुवक अपना स्थान बना रहे हैं जैसे कि अभी अभी नीट की परीक्षा में एक मुस्लिम नवयुवक प्रथम स्थान पर आया है !इसी प्रकार भारत के फिल्म इंडस्ट्री में मुस्लिम कलाकारों का बोलबाला है ! इन सब से यह सिद्ध होता है कि इस समाज में किसी प्रकार के बौद्धिक या अन्य कुशलता की कमी नहीं है ! परंतु केवल कुछ धार्मिक कट्टरपंथी तथा राजनीतिक दल के नेता अपने स्वार्थ के लिए इन्हें स्वाभिमान सुरक्षा एवं आधुनिक शिक्षा से दूर रखते हैं जिसकी आज के समय में परम आवश्यकता है ! परंतु यह अपने स्वार्थ के कारण इन्हें उसी पुरानी स्थिति में रखना चाहते हैं जिससे यह आज के विकसित समाज में अपना स्थान न बना सकें और पिछड़ी और अशिक्षित स्थिति में इनके पीछे ही लगे रहे ! इनके इसी रवैया के कारण अक्सर मुस्लिम बस्तियों के आसपास अच्छे स्कूल और कॉलेज नहीं होते हैं !
 
मुस्लिम समाज को स्वयं देखना चाहिए कि जो उनसे आधुनिक शिक्षा या विचारों से दूर रहने के लिए कह रहे हैं क्या वह स्वयं इसका पालन करते हैं ! कश्मीर के अलगाववादी नेता गिलानी के स्वयं के बच्चे देश विदेश में आधुनिक शिक्षा पाकर डॉक्टर या अधिकारी बने हुए हैं ! और स्वयं ओवैसी अमेरिका से शिक्षा प्राप्त करके आज भारत की राजनीति में सक्रिय है ! इसी प्रकार देश के विभिन्न हिस्सों में अच्छे मुस्लिमों परिवार के बच्चे अच्छी आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर रहे हैं ! इसके साथ साथ इस समाज की महिला भी पीछे नहीं है ! देश की सेना में जहां अन्य वर्ग की महिलाएं अधिकारी बनकर सेवा कर रही है वहीं पर मुस्लिम समाज की महिलाएं भी सेना में अधिकारी के रूप में देखी जा सकती हैं ! इसका उदाहरण है प्रतापगढ़ के एक मुस्लिम परिवार की दो पुत्रियां जो भारतीय सेना में कमीशंड अधिकारी है ! दिल्ली के एक थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में आयोजित एक गोष्ठी में मुस्लिम समाज की उन्नति के लिए इसी संप्रदाय के अल्ताफ अहमद जो बीबीसी में संपादक के पद पर हैं उन्होंने कहा था की 16 वर्ष की आयु तक हर बच्चे को चाहे वह किसी भी समुदाय से हो उसे यूनिवर्सल आधुनिक शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे उसे आधारभूत ज्ञान मिल सके !जिससे वह सक्षम होकर स्वयं निर्णय कर सके की उसे जिंदगी में क्या करना है ! परंतु उसके स्थान पर निम्न आय वर्ग के मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर बच्चों को मदरसों में डाल दिया जाता है जिसमें शिक्षा प्राप्त करके वह सरकारी और कॉर्पोरेट जगत की नौकरियों के मानक के अनुसार अपने आप को योग नहीं पाते हैं औरशिक्षा के कारण बेरोजगार रह जाते हैं ! जिसके बाद वह इस बेरोजगारी से निकलने के लिए या तो छोटे-मोटे धंधे करके अपनी जीविका चलाते हैं ! अन्यथा माफिया के हाथ में पढ़कर अनैतिक कार्य और अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं ! जिसका उपयोग अक्सर देश विरोधी शक्तियां समय-समय पर दंगे इत्यादि करने के लिए करती हैं ! इसके उदाहरण 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और 2020 में दिल्ली के दंगों में देखा जा सकता है ! इन दंगों में इसी प्रकार के तत्वों ने देश की आर्थिक और सामाजिक संपदा को भारी नुकसान पहुंचाया और मुजफ्फरनगर में तो हजारों दंगा प्रभावित लोगों को राहत कैंपों में सालों तक शरण लेनी पड़ी और यह सब उनके अपने देश में ही हुआ !
 
मुस्लिम समुदाय की तरह ही वोट बैंक की राजनीति करने वाले बहुसंख्यक हिंदू समुदाय में अगड़ी जाति और पिछड़ी जाति का विवाद अक्षर उत्पन्न करते रहते हैं ! जैसा की अभी कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस में देखने में आया जो एक साधारण प्यार प्रसंग का झगड़ा था ! जिसको इस प्रकार की राजनीति करने वालों ने अगड़ी जाति पिछड़ी जाति का विवाद बनाकर वहां पर बहुत बड़ी अशांति की स्थिति पैदा कर दी ! इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के बलिया, गोंडा तथा देश के विभिन्न भागों में छोटे-छोटे झगड़ों को अगड़ी जाति पिछड़ी जाति का विवाद बना दिया जाता है ! वह तो समय रहते उत्तर प्रदेश सरकार की पारदर्शी नीतियों के कारण इन झगड़ों का असली कारण सामने आ गया और स्थिति संभाली गई अन्यथा यह इन विवादों में बड़े-बड़े दंगे कराने की योजना बना रहे थे ! इनके घिनौने षड्यंत्र इसी से देखे जा सकते हैं की हाथरस में पीड़ित परिवार के घर में कोलकाता की एक महिला को इनकी भाभी बनाकर रख दिया गयाथा ! जिससे वह इस परिवार को तरह-तरह की गलत राय देकर मामले को और तूल दे सके ! 
 
अक्सर कुछ बुद्धिजीवी और राजनीतिक आलोचक यह आलोचना करते हैं कि भारतीय समाज पश्चिमी देशों की तरह क्यों नहीं बन पाया ! इसका मुख्य कारण है कि हमारे देश में देश का पूरा विकास तथा व्यवस्था केवल अवांछनीय विवादों जैसे हिंदू- मुस्लिम अगड़ी पिछड़ी जाति इत्यादि में ही लगी रहती है !और पूरे समय देश का शासन तंत्र इसी की व्यवस्था करती रहती है कि यह विवाद न शुरू हो जाए ! इस प्रकार देश की शासन व्यवस्था का जो ध्यान विकास की तरफ होना चाहिए था वह केवल समाज में इन विवादों को रोकने में ही जा रहा है ! इन विवादों के कारण समाज की समरसता और भाईचारा प्रभावित हो रहा है ! देखने में आता है एक दूसरे से भय के कारण अक्सर अलग-अलग समाज के लोग अपने निवास के स्थान को भी अपने समाज के आस-पास ही चुनने की कोशिश करते हैं ! क्या इस प्रकार इस देश का पूर्ण विकास संभव है !इसी संदर्भ में कुछ समय पहले संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत ने एक प्रसिद्ध हिंदी दैनिक में लिखा था कि हमारे देश में समाज की समरसता को बिगाड़ने में बहुत से ऐसे लोगों का हाथ है जो किसी न किसी मुद्दे से जनता का विश्वास हासिल कर लेते हैं और उसके बाद उसी विश्वास के द्वारा वह तरह-तरह के विवाद पैदा करके समाज की समरसता को बिगाड़ कर अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति करते हैं ! 70 के दशक में इमरजेंसी के समय बहुत से युवा नेता भारत की राजनीति में आए और उन्होंने स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में इमरजेंसी के विरुद्ध संघर्ष किया बाद में यह अपने-अपने प्रदेशों के प्रमुख राजनेता बने ! परंतु इन्होंने ही भ्रष्टाचार और वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देकर समाज में विघटन और समरसता को भारी नुकसान पहुंचाया !
 
आज के मीडिया युग में हर प्रकार की खबर हर व्यक्ति तक कई गुना बढ़ा चढ़ाकर पहुंच रही है ! जिस कारण छोटी सी घटना भी बड़ी बनाकर प्रस्तुत की जाती है ! इन खबरों के आधार पर समाज का ध्रुवीकरण होता है जैसा कि दिल्ली केदंगों और हाथरस के झगड़े में देखा गया जैसे कि उत्तर प्रदेश की पुलिस कानून व्यवस्था लागू करने के लिए कुछ प्रदर्शनकारियों को रोक रही थी ! परंतु इसी को मीडिया पुलिस की ज्यादती के रूप में दिखा कर समाज में उत्तेजना पैदा कर रहा था ! इसलिए अब समय आ गया है जब पूरे भारतीय समाज को आज की वास्तविकता को समझ कर समाज को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए और समाज और देश विरोधी शक्तियों को हराकर उनके मंसूबों को ध्वस्त करना चाहिए !जिससे पश्चिमी देशों की तरह भारत के समाज का भी सांप्रदायिक और जाति व्यवस्था से ऊपर उठकर विकास हो सके ! 
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