रक्षा मंत्रालय के ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड को कॉर्पोरेट बनाकर रक्षा उत्पादन और आपूर्ति विभाग में सुधारों की प्रक्रिया

07 Oct 2020 10:58:28
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आज के समय में आर्थिक रूप से विकट परिस्थितियों में जहां चारों तरफ सरकार को जन कल्याण के लिए अधिक धन की आवश्यकता हो रही है वहीं पर भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड की 41 फैक्ट्रियां 13 ऑर्डनेंस अनुसंधान केंद्र तथा संबंधित 9 शिक्षण संस्थान अपनी पुरानी कार्यप्रणाली एवं रवैया के कारण घाटे में चल रहे हैं ! इसका मुख्य कारण इनके द्वारा अपनी क्षमता का आधुनिक प्रणालियों के द्वारा उपयोग न कर पाना और इनके उत्पादन को बाजार की प्रतिस्पर्धा से अलग रखना क्योंकि इनका उत्पादन केवल भारतीय सेनाओं तक ही पहुंच पाता है ! इनकी कार्यप्रणाली के कारण इनको चलाने के लिए देश के रक्षा बजट पर और अतिरिक्त भार पड़ता है जबकि विश्व के अन्य देशों में इस प्रकार की रक्षा फैक्ट्रियां अपने उत्पादन ओं को विश्व बाजार में बेचकर वहां के रक्षा बजट में मदद कर रही है ! इस स्थिति से उबरने के लिए भारत सरकार ने ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड को आधुनिक तथा विश्व स्तर का बनाने के लिए इसे कारपोरेट बनाने का निर्णय लिया है ! परंतु इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले कुछ स्वार्थी तत्व सरकार के इस अच्छे तथा प्रगतिशील कदम का भी विरोध कर रहे हैं ! 
 
भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में दो अलग विभाग हैं जिनमें एक सेनाओं के नियंत्रण तथा संचालन और दूसरा सेनाओं के लिए साजो सामान बनाकर उन्हें सप्लाई करता है ! जिसे रक्षा उत्पादन और सप्लाई विभाग के नाम से जाना जाता है ! इसी रक्षा उत्पादन सप्लाई विभाग में रक्षा सामान के उत्पादन के लिए ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड है जो देश की सबसे पुरानी संस्था है ! इस संस्था के पास काफी बड़े संसाधन एवं उपक्रम है जो देश के विभिन्न स्थानों जैसे जबलपुर, कानपुर आदि में स्थापित है ! ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड सेनाओं के लिए बहुत सा जरूरी सामान जैसे विभिन्न प्रकार के हथियार गोला बारूद तथा सैनिकों के रहन-सहन में काम आने वाले सामान को तैयार करके उन्हें उपलब्ध कराता है ! परंतु पिछले लंबे समय से देश के अन्य सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों की तरह ही इस बोर्ड के द्वारा तैयार किए सामान की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते रहे हैं इसके अलावा एकाधिकार होने के कारण इनके द्वारा सप्लाई किया सामान बाजार भाव के मुकाबले महंगा मिल रहा था ! और एकाधिकार होने की स्थिति में इनके द्वारा तैयार सामान कभी-कभी नियत समय पर सप्लाई नहीं हो रहा था ! इस कारण सरकार ने समय-समय पर इस बोर्ड का ऑडिट सीएजी से कराया जिसमें पाया गया कि 2013-14 से लेकर2017-18 तक की अवधि में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड 50 परसेंट से लेकर 60 परसेंट के बीच अपने तयशुदा लक्ष्य एवं सामान की आपूर्ति नहीं कर पाया था ! इसके द्वारा उत्पादित सामान की गुणवत्ता में कमी और समय पर पूरा न कर पाने के कारण भारतीय सेना की कार्य कुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा था ! इसको देखते हुए भारत सरकार ने धीरे धीरे इन फैक्ट्रियों के द्वारा तैयार किए जाने वाले सामान का कुछ भाग प्राइवेट सेक्टर से खरीदना शुरू कर दिया जैसे 2017 में इस बोर्ड द्वारा तैयार किए जाने वाले 368 तथा 2018 में 39 विभिन्न प्रकार के सामान को इनकी मुख्य सूची से हटा कर इनकी आपूर्त प्राइवेट सेक्टर से कराई गई जिससे देश की सेना गुणवत्ता का सामान कम कीमत पर खरीद कर अपने खर्चे में कमी कर सकें ! ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड की तरह ही देश के सरकारी क्षेत्र तथा विभिन्न पब्लिक सेक्टर के उपक्रमों में भी यही स्थिति है अभी-अभी भारत सरकार ने देश के कृषि क्षेत्र में भी इसी प्रकार से सुधार करके इसे किसानों के लिए लाभकारी बनाने की कोशिश की है ! ज्यादातर देखा गया है की सरकारी क्षेत्रों में एकाधिकार के कारण इनके उत्पादन ओं की खपत या गुणवत्ता की चिंता इन उपक्रमों को खुले बाजार की तरह नहीं होती है इसलिए इनमें खर्च होने वाला जनता का धन घाटे का सौदा साबित हो रहा है ! जो आज के प्रगतिशील युग के विपरीत है ! इस स्थिति को देखते हुए अर्थशास्त्रियों तथा व्यापार विशेषज्ञों की राय के अनुसार ज्यादातर सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों को प्राइवेट या कॉर्पोरेट क्षेत्र में ट्रांसफर किया जा रहा है ! क्योंकि प्राइवेट क्षेत्र में उपक्रम को चलाने वाले मैनेजमेंट तथा श्रमिक दोनों की कार्यप्रणाली सरकारी उपक्रमों में काम करने वालों के मुकाबले बेहतर पाई गई है क्योंकि इन्हें बाजार की चिंता होती है ! प्राइवेट तथा कॉर्पोरेट सेक्टर में बाजार की प्रतिस्पर्धा के अनुसार जो अच्छा है और सस्ता है वही टिकेगा इसके अनुरूप कार्य किया जाता है !इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने जनसेवा के मुख्य कार्य जैसे टेलीफोन घरेलू क्षेत्र में बिजली वितरण और आपूर्ति और कुछ चुनिंदा मार्गों पर चलने वाली रेलवे को भी कॉर्पोरेट क्षेत्र में दे दिया है ! जैसा की सर्वविदित है पहले उत्पादित बिजली का 40 से 50 परसेंट भाग केवल ट्रांसमिशन नुकसान के रूप में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता था ! ! इसी प्रकार दूरसंचार व्यवस्था का हाल था ! अभी जगह-जगह निजी क्षेत्र के ऑपरेटर इन जनसेवा जैसे बिजली इत्यादि को कम से कम हानि तथा बेहतर आपूर्ति के द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुंचा कर उनकी आशाओं पर खरे उतर रहे हैं ! 
 
यहां पर यह विचारणीय है कि विश्व में धीरे धीरे साम्यवाद या कम्युनिज्म क्यों खत्म हो रहा है ! सोवियत संघ जैसा शक्तिशाली गठबंधन भी इसकी साम्यवादी औद्योगिक प्रणाली के कारण टूट गया ! इस साम्यवादी प्रणाली के चलते इसके देशों में एक आम नागरिक की आर्थिक दशा तथा जीवन स्तर पश्चिमी देशों के नागरिकों के मुकाबले काफी नीचे स्तर का था ! इसको देखते हुए सोवियत संघ के देशों में व्यवस्था को बदलने के लिए जन आंदोलन हुए और इसके परिणाम स्वरूप सोवियत संघ की कम्युनिस्ट व्यवस्था हटी और अब इन देशों में पश्चिमी देशों की तरह प्रजातांत्रिक व्यवस्था है ! जिसके अंदर निजी क्षेत्र की प्रमुखता के कारण इन देशों के उत्पाद दुनिया के बाजार की प्रतिस्पर्धा में अपना सामान अपना स्थान बना कर देश के लिए आर्थिक लाभ कमा कर आम नागरिक के जीवन स्तर को अच्छा बना रहे हैं ! विश्व की महाशक्ति अमेरिका का आर्थिक महाशक्ति बनने का सबसे बड़ा कारण है कि वहां पर केवल न्याय व्यवस्था सड़क शिक्षा तथा देश की रक्षा के अलावा अन्य सब प्राइवेट क्षेत्र में ही है जिसके कारण वहां पर सेवा उपलब्ध कराने वाले प्राइवेट सेक्टर की जवाबदारी होने के कारण इन सेवाओं का स्तर उच्च कोटि का है !
 
विश्व बाजार की इस प्रतिस्पर्धा तथा आर्थिक प्रगति को देखते हुए भारत सरकार भी धीरे-धीरे अपने यहां सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों को या तो पूरी तरह से प्राइवेट क्षेत्र में दे रही है या उन्हें कॉर्पोरेट बनाकर इनकी स्वायत्तता बढ़ा रही है जिससे इनका बेहतर नियंत्रण और संचालन हो सके ! इसी क्रम में रक्षा मंत्रालय को विशेषज्ञों की कमेटियों ने लगातार सिफारिशों में जिनमें सन 2000 में नायर कमेटी 2005 में केलकर तथा 2015 में रमन पूरी कमेटी ने ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड को कॉर्पोरेट सेक्टर में देने की सिफारिश की है ! इन कमेटियों की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए तथा रक्षा मंत्रालय के बजट के भार को कम करने के लिए भारत सरकार ने अगस्त 2019 में ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड को कॉर्पोरेट क्षेत्र में देने का मन बनाया है ! इस बोर्ड के कॉर्पोरेट में जाने के बाद इसकी फैक्ट्रियों के उत्पादन प्राइवेट सेक्टर के साथ भी जोड़े जाएंगे जिसके द्वारा यह अपने लिए पूंजी तथा खुला बाजार पा सके ! हालांकि कारपोरेट बनने के बाद भी सेनाओं से सामान की सप्लाई के आर्डर इसको मिलते रहेंगे इसके साथ-साथ इसके द्वारा बनाए सामान की सीमित बाजार मांगों को देखते हुए केंद्रीय सरकार ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड को भविष्य में हानि होने की स्थिति में कर्ज द्वारा इसकी सहायता भी करेगी ! ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड के कॉर्पोरेट बनने के बाद इसके उत्पादन तथा गुणवत्ता में बड़े व्यापक सुधार होने की आशा है क्योंकि मौजूदा सरकारी नियंत्रण के मुकाबले इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को निर्णय लेने में ज्यादा स्वतंत्रता होगीइस कारण इसके उत्पाद पहले से बेहतर तथा अपनी तय समय सीमा में ग्राहकों तक पहुंच सकेंगे ! क्योंकि इस समय कभी-कभी लालफीताशाही के कारण निर्णय में देरी होती है जिसकी वजह से इसकी कार्यप्रणाली पर बुरा प्रभाव पड़ता है ! इसके अलावा इस समय सीमित बाजार होने के कारण पूरे सिस्टम की चलाने की कीमत तथा अन्य खर्चों को जोड़कर इसके उत्पादों की कीमत तय की जाती है जो इसी प्रकार के सामान को विदेशों से आयात के सामान की कीमत के बराबर या उससे ज्यादा होती है ! कारपेट बनने के बाद इसके उत्पादोंकी कीमत बाजार के अनुसार तय होगी ! इसके अलावा इसके बोर्ड को खुले बाजार से तकनीक तथा विदेशी कंपनियों से गठजोड़ करने की भी पूरी छूट होगी ! जिसके द्वारा यह अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सकेंगे और सबसे बड़ा फायदा होगा कि यह बोर्ड देश के स्टॉक एक्सचेंज पर रजिस्टर होने के बाद बाजार से धन प्राप्त कर सकेगा ! जिसके द्वारा यह आत्मनिर्भर बनकर अपना विकास कर सकेंगे !इस प्रकार यह बीमार से प्रगतिशील की श्रेणी में आ सकेंगे ! 
 
विशेषज्ञों के द्वारा सन 2000 से लेकर आज तक की खोजों और उनके दिए सुझावों के अनुसार भारत सरकार ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड को इस थमी हुई एवं पिछड़ी स्थिति से निकालकर गतिमान एवं आर्थिक क्षेत्र रूप से मजबूत स्थिति में लाने के लिए इसको कॉर्पोरेट बना रही है ! वहीं पर इस बोर्ड के कुछ कर्मी जो अब तक भारतीय कानून के उदारवादी रवैया के कारण बगैर काम किए ही वेतन पा रहे थे उन्हें अब इसके नए स्वरूप में काम के साथ-साथ समय के अनुसार जिम्मेदारियां भी लेनी पड़ेगी !इस प्रकार के तत्व सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं और तरह-तरह केकाल्पनिक तथा गलत तर्क देकर इसे पुराने स्वरूप में रखना चाह रहे हैं ! इनके अनुसार इन फैक्ट्रियों के सामान की कोई निश्चित मांग नहीं होती इसलिए आर्थिक रूप से सफल नहीं हो पाएगी इसके अलावा इनके अनुसार युद्ध में कभी-कभी अचानक मांग कई गुना बढ़ जाती है ! यहां यह विचारणीय है कारपोरेट बनने के बाद इस की फैक्ट्रियां अपने निश्चित उत्पादन के साथ बाजार में बिकने वाले उसी प्रकार के अन्य सामानों का उत्पादन करके आर्थिक रूप सेस्वयं को और मजबूत बना सकेंगी ! इसके साथ ही आजकल की आधुनिक तकनीक से उत्पादन महीनों के स्थान पर दिनों में पूरा किया जा सकता हैजिसके द्वारा कम समय में ही महीनों का काम पूरा किया जा सकता है ! 
 
इसलिए जहां पूरा विश्व एक साझा बाजार बन गया है जिसमें गोपनीय समझी जाने वाली रक्षा सामग्री भी खुले आम बिक रही है ! जैसे अभी अभी भारत ने फ्रांस से राफेल विमान, इजराइल से आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टमऔर रूस से एस 400 मिसाइल खरीदी है उसी प्रकार हमारीऑडनेंस बोर्ड की फैक्ट्रियों में बने सामान को उच्च गुणवत्ता के द्वारा विश्व बाजार में बेचकर देश के रक्षा बजट में सहयोग किया जा सकता है ! जहां अब तक देश का रक्षा बजट पूरी तरह केंद्र सरकार पर निर्भर है वहीं पर ऑडनेंस फैक्ट्री बोर्ड के कॉर्पोरेट और आधुनिक बनने के बाद इसके द्वारा देश के रक्षा बजट में सहयोग भी संभव है ! 
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