दुनिया भर में मुसलमानों के प्रति असहिष्णुता बढ़ रही है

02 Nov 2020 13:59:10
ऐसे कृत्यों पर अफसोस करने और अपने गिरेबान में झांक कर देखने की बजाय दुनिया की मुस्लिम जमात ऐसे मामलाें को सही ठहरा रही है। उन्हें इस बात से कोई शिकायत नहीं है कि 18 साल के एक मुस्लिम युवक ने एक शिक्षक की गला काट कर हत्या कर दी। उन्हें इस बात की शिकायत है कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस्लामिक कट्टरता की बात क्यों की और क्यों वहां की सरकार मदरसों, मस्जिदों और मुस्लिमों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है।
 
मुस्लिम किशोर द्वारा फ्रांस के स्कूल शिक्षक सेम्युअल पेटी की हत्या का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक 21 वर्षीय ट्यूनीशियाई नागरिक ने फ्राँस के नीस शहर स्थित नोट्र डेम चर्च में हमला कर तीन लोगों की हत्या कर दी। नीस वह स्थान है जहाँ 14 जुलाई 2016 को भी आतंकी हमला हुआ था जब बैस्टिल दिवस मनाने के लिए जमा हुई भीड़ पर, 31 वर्ष के युवक ने ट्रक चला कर 86 लोगों को मारा और कई लोगों को घायल कर दिया था। फ्रांस की घटनाओं ने एक अंतर्राष्ट्रीय विवाद को जन्म दे दिया है।
 
एक ओर फ्रांस के राष्ट्रपति ने मृत शिक्षक का समर्थन करते हुए राजनैतिक इस्लाम का मुकाबला करने की घोषणा की है, तो दूसरी ओर इस्लामिक देशों में फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही है। संस्कृति, राजनीतिक सिस्टम और आर्थिक विकास के स्तर से ऊपर उठकर इस्लामिक देश मैक्रों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। अफग़ानिस्तान में हेरत के बाजारों से लेकर पाकिस्तान में इस्लामाबाद यूनिवर्सिटी और अम्मान के अपमार्केट इलाकों में फ्रांस का विरोध हो रहा है। नतीजा यह है कि फ्रांस के प्रोडक्ट्स के बहिष्कार की अपील हो रही है और फ़्रेंच नागरिकों को धमकियां भी मिल रही हैं।
 
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फ्रांस की घटना ने पूरी दुनिया में स्वतंत्र, उदार, और लोकतांत्रिक सोच रखने वाले लोगों को आंदोलित किया है। तो दूसरी ओर इस्लामिक दुनिया अलग ही रास्ते पर चल रही है। मुस्लिम देशों में उलटे फ्रांस के बहिष्कार की मुहिम छिड़ी है। कहीं से यह समझदार आवाज़ सुनने को नहीं मिल रही है कि फ्रांस में 18 साल या 21 साल के युवकाें ने जो किया वह गलत है। इस तरह की हरकतें करके, वे कुछ लोगों को जरूर मार पा रहे हैं, लेकिन वे सबसे बड़ा नुकसान अपने धर्म के लोगों का कर रहे हैं।
 
फ्रांस में आज अगर सरकार अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता के साथ खड़ी हुई है, और एकजुट होकर खड़ी है, अपने दर्जन भर लोगों को खोने वाली पत्रिका आज भी अपनी सोच के साथ खड़ी है, और दोबारा कार्टून छाप रही है, वहां की अदालतें इस आजादी के साथ हैं, तो हम दूर बैठे हुए वहां के संविधान की इन बुनियादी बातों का विश्लेषण करना नहीं चाहते। योरप के लोकतंत्रों में आजादी की बुनियाद सैकड़ों बरस पहले की है, और धार्मिक आतंक उनके मुकाबले इन देशों में कुछ नया है।
 
मुसलमानों में अतिवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इस बीच अनेक देशों ने ईशनिंदा कानून बनाए और कुछ मुस्लिम देशों ने ईशनिंदा के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान किया। इन देशों में पाकिस्तान, सोमालिया, अफग़ानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और नाइजीरिया शामिल हैं।
 
हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के शासनकाल में ईशनिंदा के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान किया गया था। इसके साथ ही वहां इस्लामी-करण की प्रवृत्तियां भी तेज हो गईं। इसका एक नतीजा यह हुआ कि इन देशों में इस्लाम का अतिवादी संस्करण लोकप्रिय होने लगा। इसका जीता-जागता उदाहरण आसिया बीबी हैं, जिन्हें ईशनिंदा का आरोपी बनाया गया था। पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर की निर्मम हत्या कर दी गई, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ इस कानून का विरोध किया ओर जेल जाकर आसिया बीबी से मुलाकात भी की। इसके बाद तासीर के हत्यारे का एक नायक के समान अभिनंदन किया गया।
 
ऐसे कृत्यों पर अफसोस करने और अपने गिरेबान में झांक कर देखने की बजाय दुनिया की मुस्लिम जमात ऐसे मामलाें को सही ठहरा रही है। उन्हें इस बात से कोई शिकायत नहीं है कि 18 साल के एक मुस्लिम युवक ने एक शिक्षक की गला काट कर हत्या कर दी। उन्हें इस बात की शिकायत है कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस्लामिक कट्टरता की बात क्यों की और क्यों वहां की सरकार मदरसों, मस्जिदों और मुस्लिमों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। ध्यान रहे कार्टून दिखाने पर शिक्षक की हत्या के बाद फ्रांस के सहिष्णु नागरिकों ने वहां की दिवारों को ऐसे कार्टून से भरना शुरू किया है। वहां इस किस्म के कई और प्रतीकात्मक विरोध हो रहे हैं।
 
इस्लामी दुनिया की मसीहा बनने की जी-तोड़ कोशिश में लगे तुर्की से लेकर पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे लोकतांत्रिक देशों ने भी फ्रांस के बहिष्कार की अपील की है। फ्रांस में बनी चीजों के बहिष्कार के तुर्की को ऐलान के बाद खाड़ी में कई देशों में दुकानों से फ्रांस के बने सामान हटा लिए गए। ग़ौरतलब है कि फ्रांस में बने सौंदर्य प्रसाधनों की दुनिया में बहुत साख है और ये बेहद महंगे दामों पर बिकते हैं। खाड़ी के कई देशों में इनका बड़ा बाजार है। वहां इन उत्पादों का बहिष्कार हो रहा है। पाकिस्तान सरकार ने फ्रांस के राजदूत को बुला कर इस बात पर विरोध जताया कि राष्ट्रपति मैक्रों इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दे रहे हैं। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में भी फ्रांस के खिलाफ प्रदर्शन हुआ और फ्रांसीसी सामानों के बहिष्कार की घोषणा हुई है।
 
ऐसा करके असल में इस्लामी दुनिया फ्रांस को अलग-थलग नहीं कर रही है, बल्कि खुद को अलग-थलग कर रही है। खुद को दुनिया की नजर में गिरा रही है। उनके प्रति दुनिया में असहिष्णुता बढ़ रही है। अमेरिका से लेकर यूरोप और भारत से लेकर चीन तक कहीं भी उनके प्रति सद्भाव नहीं है। इस हकीक़त को समझ कर खुद को बदलने की बजाय मुस्लिम जमात में उलटे मध्यकालीन मानसिकता मजबूत हो रही है।
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