विश्व गुरु तव अर्चना में और अर्पण क्या करे.. मातृ देवो भव, पितृ देवो भव,आचार्य देवो भव

NewsBharati    05-Sep-2020 11:27:50 AM
Total Views |
- डा.लीना गोविन्द गहाणे
- (उप -सलाहकार , राष्ट्रीय मूल्याङ्कन एवं प्रत्यायन परिषद ,बंगलुरु)
 
विश्व गुरु तव अर्चना में और अर्पण क्या करें…
मातृ देवो भव , पितृ देवो भव ,आचार्य देवो भव
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
 
आज 5 सितम्बर याने शिक्षक दिन ।भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन । डॉ. राधाकृष्णन यह बहुत ही जाने माने शिक्षक रहे है ,इसलिए उनका जन्मदिन हम “शिक्षक दिन” के रूप मे मनाते है ।अगर हम भारत की बात करे तो यह “गुरु-शिष्य” परम्परा का देश है।यह ज्ञान की भूमि है , तपस्या की भूमि है , साधना की भूमि है।यह वंदन की भूमि है ,अभिनन्दन की भूमि है।
 
sar_1  H x W: 0 
 
sar_1  H x W: 0
 
और हम जानते है की शिक्षा की विधा को बहुत प्रभावी ढंग से और अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका में हमारे गुरुओ ने , हमारे आचार्यों ने निभाया है। इसलिए हम मातृ देवो भव , पितृ देवो भव के बाद आचार्य देवो भव की ही बात करते है । हमारे जीवन में गुरु का स्थान बहुत ही श्रेष्ठ ऐसा होता है, सर्वोच्च होता है। “गुरु मात पिता गुरु बंधू सखा तेरे चरणोंमें स्वामी मेरे कोटि प्रणाम”… यह प्रार्थना भी हम करते है। जिस तरह बाल्यकाल से लेकर संपूर्ण जीवन पर्यन्त माता अपने संतान के परवरिश का ध्यान रखती है ,संस्कार देती है, ठिक वैसे ही गुरु भी हमरे जीवन को गढ़ते है, हमरे जीवन को आकर देते है ।और भारत में प्राचीन काल से लेकर 19 वी शताब्दी तक यह प्रथा चलती आयी थी । व्रतबंध के बाद गुरुगृह/गुरुकुल जाकर बालक /बालिकाओं को जीवन के लिए आवश्यक विद्या और कलाओं का ज्ञान दिया जाता था। और शिक्षा पूरी होने के बाद, सभी विद्या और कलाओंमे निपुण व्यक्ति ही समाज में भेजा जाता था । ऐसा ज्ञानी और संस्कारित व्यक्ति अपने आचरण से, कर्म से समाज जीवन को पोषित करता था उन्नत करता था । भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा सुनकर विश्व के अनेक देशोंके विद्यार्थी/छात्र भारत में पढ़ने आते थे।और वापस जाकर भारत का ,भारतीय शिक्षा का मान बढ़ाते थे । थोर गांधी समर्थक,विचारक और अभ्यासक डॉ.धर्मपाल ने अपनी पुस्तक " भारतीय शिक्षा का डेरेदार वृक्ष " “The Beautiful Tree” में इसका उल्लेख किया है। इस किताब में 19 शताब्दी तक की भारतीय शिक्षा के समग्र रूप से चलने का सन्दर्भ मिलता है। जाती ,पंथ से ऊपर उठकर सभी बालक और बालिकाओं को शिक्षा मिलती थी ऐसी व्यवस्था भारत में थी ।
 
भारत पर हुए विधर्मीयों के आक्रमणों के कारण, जैसे हमरे जीवन और संस्कृति पर प्रभाव पड़ा वैसे ही हमारी शिक्षा व्यवस्था को भी क्षति पहुंची है ।हमारे शिक्षा संस्थान और हमारे ग्रंथालयों को जलाया गया और कला चक्र की चपेट में शिक्षा का यह ड़रेदार वृक्ष तहसनहस हो गया। परन्तु भी हम अपनी गुरुकुल शिक्षा पद्धति को भूलकर,अंग्रेजों द्वारा थोपी गयी शिक्षा पद्धति, जो भारतीयों को केवल और केवल गुलाम और नौकर बनाने के लिए लाई गयी थी उसी को अपनाते चले आ रहे है। इस विदेशी शिक्षा की पैरवी में हमारे देश के लोग आपसे में झगड़ा तक कर लेते है ।सच्चाई तो यह है की स्वतंत्रता के बाद हमारी शिक्षा को भारत केंद्रित और भारत के मानस को प्रतिबिंबित करने वाली होना चाहिए था।लेकिन विदेशी का समर्थन और स्वदेशी का विरोध करनेवालोंकी चापलूसी के कारण, इसका ठीक ढंग से विचार और सञ्चालन नहीं हो पाया।जो देश दुनिया को शिक्षा देने का मान रखता था वह अपनी राह से भटक गया ।और समाज न्यून और आत्मग्लानी के भाव से ग्रसित हो गया।
 
अब समय आ गया है की राष्ट्रीय शिक्षा नीती 2020 को जल्द से जल्द लागु करके और भारतीय शिक्षा के डेरेदार वृक्ष को पुनः पुनर्जीवित करे और अपनी जडों से अपने समाज का पोषण करें। परंतु इसके लिए शिक्षकों ,प्राध्यापकों ,आचार्योंको तैयार होना पड़ेगा। छात्रोंकी /विद्यार्थियों की कल्पनाओं को और बढ़ावा देना होगा उनके अंदर छिपी जिज्ञासा को ,क्रियाशीलता को जागृत करना होगा।इसके लिए प्राचीन शिक्षण विधि का आधार लेकर युगानुकूल नए शिक्षा ढांचे को तैयार करना होगा ,नए शिक्षण विधि का विकास करना होगा।जितना प्रतिभावान शिक्षक होगा, उतनी ही प्रतिभावान आनेवाली पीढ़ी होगी।अपने जीवन के अनुभव से विषय वास्तु का चयन ,कार्यशाला और प्रयोगों के माध्यम से ज्ञान देने की और जिज्ञासा जागरण की पद्धति को अपनाना होगा।आचार्य , जितना इस प्रक्रिया से जुड़ेगा, उसमे रूचि लेगा ,अपना योगदान बढ़ाएगा उतनी छात्रोंकी /विद्यार्थियों की समझ और जिज्ञासा बढ़ेगी ।उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त होगा ।
 
शिक्षा को बंद कमरों से बहार लाकर और जीवन व्यवहार में उतरना होगा।शिक्षा तो व्यक्ति को व्यक्ति से ,व्यक्ति को समाज से और समाज को राष्ट्र से जोड़ने वाली होना चाहिए।हमारे अनुसंधान और नयी खोज की उपयोगिता समाज के लिए होनी चाहिए इसकी और विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।भारत की शिक्षा को तो हमारे राष्ट्र के इतिहास और अपने देश के प्रति आत्म गौरव का भाव जगाने वाली होना चाहिए ।यहां के थोर पुरषो के आदर्श हमारे छात्रों के सम्मुख रखने वाली होना चाहिए। और यह सब बाते ,एक अच्छा शिक्षक और राष्ट्रीय शिक्षा बड़ी आसानी से कर सकते है।
 
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहते है,
 “Teachers should be the best minds in the country and true teachers are those who help us think for ourselves “.
 
और स्वामी विवेकानंद कहते है -
Education is manifestation of perfection already in man .
 
तो आज समय आ गया है की भारत के सभी शिक्षक ,आचार्य ,प्रधानचार्य ,कुलपति, सबने मिलकर के अपनी प्रतिभा से ,अपने आचरण से, कर्म से, अपनी कल्पकता से अपने कर्तव्य को समझना होगा और उस दिशा में काम करना होगा। क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ,ज्ञान के माध्यम से ही भारत के विश्व गुरु होने का मार्ग प्रशस्थ होनेवाला है।
 
आचार्य चाणक्य का कथन अक्षरशा सत्य है की "शिक्षक कभी साधारण नहीं होता ,निर्माण और प्रलय उसकी गोद में पलते है ".
आपको शिक्षक दिन की बोहोत बोहोत शुभकामना ।
नमस्ते जय हिन्द ! जय भारत !