अनेक देशों की अथंव्यवस्थाही गोमांसपर

05 Jan 2021 14:23:43

मानव जीवन के आरंभ से शाकाहार और मांसाहार यह दोनो भी इंसान के इस्तेमाल मै रहा है । मगर पंधरवी शताब्दी मै यूरोपीय लोग प्रथम भारत जीतने के उदेश्य से, बाद मै अमेरिका और सारा विश्व जीतने के उदेश्य से बाहर निकले । तीन महीने से छह महीने चलने वाले इस यात्रा मै मांसाहार के लिए वह जानवर भी लेके निकलने लगे । वह जिस देश मै भी उतरते थे वहाँ फसलें हाथ मै लेने से पहले जानवरों को मार कर मांसाहार करना यही एक पर्याय था । सों साल मै ही मांसाहार यही आक्रमण का एक पर्याय बन गया ।

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यही प्रकार पिछले पाँचसो साल मै बढ़ती सीमा के साथ बढ़ रहा है । वर्तमान मै कोई भी देश के नागरी स्वच्छता के कानून के अनुसार उसमे स्वच्छता का पालन करना पड़ता है मगर दो देशों के अंतर्गत व्यापार मै 'स्वच्छता और सेहत' इस बात कि और ध्यान नहीं दिया जाता । आजकल प्रत्यक्ष मांस के लिए जानवरों का परिवहन और प्रत्यक्ष मांस इनका वैश्विक अधिकृत समुद्री परिवहन पचीस करोड़ मेट्रिक टन है । गैरकानूनी मार्ग से शुरू रहने वाले ऐसे व्यवहारों पे नजर रखी जाए तो वह की गुना ज्यादा है । दक्षिण आफ्रिका और दक्षिण अमेरिका यहाँ के हर एक देश कि अर्थव्यवस्था ही उसपर निर्भर करती है ।
 
ब्राझिल मै भारतीय वंश के गोवंश कि अभिलिखित बीस कोरोड है मगर यह गोवंश संख्या हरसाल आधी होती है और वापस ऊटी हो जाती है । आजतक यह विषय कितना बुरा है और सेहत के लिए कितना घातक, इस नजरिए से देखा जाता था मगर अब उससे फैलने वाले कोरोना जैसे महामारी के रोग को ध्यान मै रखते हुए मांसाहार और शाकाहार करने वाले सभी का जीवन संकट मै आया है । इसलिए पिछले पचीस साल मै गोविज्ञान के जो प्रयोग भारत मै किए गए वह सभी प्रयोग अब वैश्विक स्तर पर करने कि और विश्व को समझा देने कि आवश्यकता निर्माण हुई है । भारत को आगे ले जाने वाली हर एक चीज को हमे बड़ी गंभीरता से निभाना चाहिए यह हमारी जिम्मेदारी है ।

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