राजनीतिक दबाव में केवल जनता का मनोरंजन करती नजर आ रही देश की जांच एजेंसियां

29 Oct 2021 12:08:54
आजकल पूरे देश में आर्यन खान के ड्रग केस की चर्चा है और सारे टीवी चैनल 2 अक्टूबर से लगातार देश की जनता का मनोरंजन इसकी खबरों से कर रहे हैं ! जनता को बार-बार लगता है की नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो इस केस की जड़ तक पहुंच जाएगा और बड़े बड़े माफिया ड्रग डीलरों को पकड़ सकेगा, परंतु इसमें शुरू से ही महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक एनसीबी के जोनल कंट्रोलर श्री समीर वानखड़े पर तरह-तरह के आरोप लगाकर उनके मनोबल को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं ! उन्होंने पहले इस केस को पूरा झूठा बताने का प्रयास किया जब इससे भी काम नहीं चला तो उन्होंने समीर वानखेड़े के विरुद्ध तरह-तरह के व्यक्तिगत आरोप जिसमें उन्हें मुस्लिम और उनकी मां को भी मुस्लिम बताया गया है ! नवाब मलिक के इस आरोप को लगाने का उद्देश्य है कि वह समीर वानखेड़े को मुस्लिम सिद्ध करके उनके अनुसूचित जाति के अंतर्गत नौकरी पाने को अवैध घोषितकरवा सकें ! जिससे भयभीत होकर वानखेडे इस केस में डिलाइ बरतनी शुरू कर दें ! जब इन आरोपों से काम नहीं चला तो अब पूरे 20 दिन के बाद 22 अक्टूबर को एक व्यक्ति ने वानखेड़े पर बड़ी रिश्वत मांगने का आरोप भी लगा दिया है ! इसी प्रकार 1 साल पहले प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत संदेह आत्मक परिस्थितियों में मुंबई में हुई थी उनकी मौत से पहले उनकी एक असिस्टेंट दिशा सालियन की मौत भी हुई थी !
 
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शुरू में इन दोनों मौतों को मुंबई पुलिस ने राजनीतिक दबाव के कारण आत्महत्या बनाकर इनकी जांच बंद कर दी थी, क्योंकि इन दोनों मौतों के पीछे किसी शक्तिशाली राजनीतिज्ञ का हाथ नजर आ रहा था ! परंतु सुशांत के पिता ने इस केस की जांच के लिए बिहार पुलिस में रिपोर्ट लिखाई और जब बिहार पुलिस को मुंबई पुलिस ने इसकी जांच में सहयोग नहीं किया और उसके साथ साथ बिहार पुलिस के एक अधीक्षक स्तर के अधिकारी को कोरोना के नाम पर पूरे 3 हफ्ते तक मुंबई में नजरबंद रखा, तब उसके बाद निराश होकर सुशांत के पिता ने देश की उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जहां से उच्चतम न्यायालय ने इसमें सीबीआई जांच के आदेश दिए ! इस जांच के दौरान सुशांत सिंह राजपूत का संबंध ड्रग्स के साथ भी जोड़ा गया जिसमें नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने फिल्म नगरी के कलाकारों को जांच के लिए बुला बुला कर रोमांच पैदा किया ! जिसको टीवी चैनलों ने लंबे समय तक दिखाकर अपनी टीआरपी और लोकप्रियता बढ़ाई ! रोजाना सनसनीखेज अंदाज में ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर इस केस से संबंधित खबरों को दिखाया जाता था और देश की जनता का इस से भरपूर मनोरंजन हो रहा था ! इसी साल फरवरी में मुंबई में ही मुकेश अंबानी की एंटीलिया नाम की प्रसिद्ध बिल्डिंग के पास एक एसयूवी कार विस्फोटक के साथ पाई गई इस विस्फोटक की जांच मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सचिन बाजे को सौंपी गई !
 
परंतु दोबारा मुंबई पुलिस के द्वारा इस मामले में लीपापोती होते देख इसमें देश की शीर्षतम जांच एजेंसी एनआईए को इसकी जांच सौंपी गई जिसके द्वारा सनसनीखेज खुलासे हुए ! एनआईए के द्वारा सचिन बाजे को ही मुख्य अपराधी पाया गया ! बाद में यहां तक प्रकाश में आया कि महाराष्ट्र सरकार में गृहमंत्री विलासराव देशमुख देशमुख सचिन बाजे के द्वारा मुंबई के होटलों से हफ्ता वसूली करवाते थे ! इस मामले में भी उच्चतम न्यायालय को दखल देना पड़ा ! अभी 1 महीने पहले देश के मीडिया और समाचार पत्रों में एक सनसनीखेज खबर छपी थी की गुजरात के बंदरगाह मुँदरा पर 2988 किलो हेरोइन पकड़ी गई है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 21000 करोड़ों बताई गई है ! इस केस में अफगानिस्तान के नागरिक को दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया है और यह हीरोइन अफगानिस्तान से ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से भारत के लिए भेजी गई थी ! 21 हजार करोड़ की हीरोइन को कोई छोटा मोटा ड्रग डीलर नहीं ले सकता और इसके आकार से प्रतीत होता है कि इसमें कोई बड़ा ड्रग डीलर शामिल है, जिसको राजनीतिक और माफिया का संरक्षण प्राप्त है ! इसीलिए इतने दिन हो जाने के बाद भी अभी तक भारत की जांच एजेंसियां उस ड्रग माफिया का नाम उजागर नहीं कर सकी हैं ! आखिर क्यों ?इस सब से यही प्रतीत होता है कि जिस प्रकार सिनेमा में कहानी केवल मनोरंजन के लिए होती है उसका अस्तित्व कुछ नहीं होता है इसी प्रकार उपरोक्त जांचें केवल जनता के मनोरंजन के लिए ही मंचित होती नजर आ रही है !
 
देश की जनता जानना चाहती है कि जब सुशांत राजपूत की मौत संदेह आत्मक परिस्थितियों में हुई तो अभी तक कातिल का नाम क्यों नहीं उजागर हुआ ? इसी प्रकार अंबानी के आवास के पास विस्फोटक रखने के मामले में क्या प्रगति हुई? उसी प्रकार गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर मिली हीरोइन का असली मालिक कौन है? इन सब सवालों के उत्तर पूरा देश जानना चाहता है और यदि यह सवालों के उत्तर नहीं दिए गए तो देश की जनता का विश्वास देश की बड़ी बड़ी जांच संस्थाओं से उठ जाएगा ! अक्सर हमारी व्यवस्था में वह कहावत फिट बैठती है कि असरफ़ियों की लूट और कोयला पर मोहर -- - इसी प्रकार के अनेक प्रकरण देश के अनेक हिस्सों में हो रहे हैं जैसे

कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के कानपुर में विकास दुबे प्रकरण, बिहार के समस्तीपुर में महिला आश्रय प्रकरण और अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों का कुचला जाना ! यह सब ऐसे प्रकरण प्रकरण है जिनमें जांच एजेंसियां राजनीतिक दबाव के कारण सही अपराधी तक नहीं पहुंच पा रही है ! इस सब को देखते हुए यह सिद्ध होता है कि हमारे देश की जांच एजेंसियां अपनी जांच को राजनीतिक दबाव के कारण निष्पक्ष ढंग से नहीं कर पाती हैं और इसके मूल में फिर वही पुलिस एक्ट 1861 और सिविल सर्विस एक्ट 1919 है ! अंग्रेजों ने यह कानून एक गुलाम देश पर शासन करने के लिए अपने स्वच्छ मानसिकता के अधिकारियों के लिए बनाए थे जो अपने देश की सेवा निस्वार्थ और ईमानदारी से करते थे ! परंतु हमारा देश जो 1000 साल तक विदेशी शासकों का गुलाम रहा उसके निवासियों में दासता के भाव अभी तक भरे हुए हैं, जिनके कारण यह लोग देश के भले से पहले केवल स्वयं का भला देखते हैं ! इसलिए अपने राजनीतिक मास्टरों की इच्छा के अनुसारही यह कार्य करते हैं ! जिसके परिणाम स्वरूप देश के प्रशासन के प्रमुख हिस्से नौकरशाही और पुलिस व्यवस्था अपना कार्य निष्पक्षता से नहीं कर पा रही हैं !
 
1975 में इमरजेंसी के समय इंदिरा जी ने ज्यादातर विपक्षी नेताओं को पूरे देश में जेल में डाल दिया था ! जिसमें उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा ! इसको देखते हुए जनता पार्टी की सरकार ने देश की पुलिस व्यवस्था में उचित सुधारों के लिए स्वच्छ छवि वाले एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जूलियस रिवेरों की अध्यक्षता मेंपुलिस आयोग गठित किया ! इस आयोग ने आठ भागों में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी परंतु 2006 तक देश की किसी भी सरकार ने इन रिपोर्टों को देखना भी गवारा नहीं किया ! जिसके कारण यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी रही ! इसको देखते हुए देश के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी श्री प्रकाश सिंह ने इन रिपोर्टों और अपने अनुभवों के आधार पर देश की उच्चतम न्यायालय में पुलिस सुधार लागू करने के लिए याचिका दायर की ! उच्चतम न्यायालय ने केवल 6 महीने में जनवरी 2007 में देश की केंद्रीय और राज्य सरकारों को 12 सूत्रीय पुलिस सुधार लागू करने के आदेश दिए ! परंतु अभी तक किसी भी सरकार ने इन सुधारों को लागू नहीं किया है ! जबकि देश को चलाने वाली व्यवस्था नौकरशाही और पुलिस एक स्वतंत्र देश की भावनाओं के अनुसार होनी चाहिए ! यह दोनों अभी तक अंग्रेजों द्वारा लागू गुलामी की व्यवस्था के अनुसार ही नियंत्रित हो रही है !
 
इसलिए अब समय आ गया है जब सरकारों को आधारभूत ढांचे के नाम पर केवल सड़कों और बिजली तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें देश को नियंत्रित करने वाली नौकरशाही और पुलिस व्यवस्था को सर्वप्रथम आधारभूत ढांचे का एक आवश्यक हिस्सा मानते हुए इसे सुधारना चाहिए ! यदि देश के समाज की भावनाएं ऊंची होंगी तो स्वता ही देश में राष्ट्रीयता की भावना ऊंची होगी और देश का हर नागरिक देश के विकास में और देश में स्वच्छ वातावरण स्थापित करने में स्वयं सहयोग करेगा, अन्यथा वह यह सोच कर संतुष्ट हो जाएगा कि जब देश की राजनीतिक व्यवस्था ही उच्च सिद्धांतों पर कार्य नहीं कर रही है तो वह क्यों करें !
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