सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाती प्रयागराज मैं महंत नरेंद्र गिरी जैसी घटनाएं

25 Sep 2021 16:56:35

सनातन धर्म के व्यापक आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार के कारण भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिया जाता रहा है ! परंतु पिछले कुछ समय से इस धर्म के धर्मगुरु कहाने वालों की हरकतों से इस धर्म की प्रतिष्ठा पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है ! जिनमें अभी-अभी प्रयागराज में संदेहआत्मक परिस्थितियों में धर्मगुरु नरेंद्र गिरी की मृत्यु और उनके सुसाइड नोट में ब्लैक मेलिंग और खासकर एक महिला की फोटो के बारे में लिखा होना एक बार फिर यह सब सनातन धर्म की परंपराओं और मान्यताओं पर शक की स्थिति पैदा करती है ! पिछले काफी समय से आश्रमों के बारे में तरह-तरह की सूचनाओं से पहले से ही जनता में भ्रम पैदा हो रखा था जैसा इससे पहले पूरे भारत में चर्चित और पूजनीय आशाराम का काला चिट्ठा जिसमें उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के विपरीत महिलाओं के साथ संबंध बनाए इसी प्रकार हरियाणा में राम रहीम और रामपाल की काली करतूत और इसी प्रकार के अनेक नाम हैं जिन्होंने धर्म की आड़ में अकूत संपत्ति एकत्रित की और उसके बाद सामंतों की तरह अपने आश्रमों में महिलाओं से रंगरेलियां मनाई ! जहां इन्होंने इन करतूतों के द्वारा अपने स्वयं को तो गिराया ही वहीं पर इन्होंने जिस सनातन धर्म की आड़ में यह सब किया उसकी प्रतिष्ठा पर भी ठेस लगाई ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक सरकारी कर्मचारी के गलत व्यवहार से पूरी सरकार की छवि खराब होती है ! इस सब को देखते हुए अब इन अखाड़ों और आश्रमों के प्रति एक शंका की स्थिति बन गई है !

 
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पिछली कुछ सदी पहले सनातन धर्म को हिंदू के नाम से पुकारे जाने लगा जिससे इसे सीमित दायरे में करने की कोशिश की गई !, परंतु वास्तव में यह सनातन धर्म विशाल है और इसके नाम से ही ज्ञात होता है कि ना इसका आदि है और ना अंत हैइसलिए इसे सनातन नाम से पुकारा जाता था !, इस धर्म का मूल मंत्र मानवता और प्रकृति का संरक्षण है ! इसलिए इसके धर्म ग्रंथों में कहीं पर भी हिंदू या अन्य सांप्रदायिक शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता है ! इसके उपदेश और नीतियां पूरी मानव जाति और प्रकृति को समर्पित है ! इसमें मानव और प्रकृति के अटूट संबंधों का वर्णन किया गया है ! प्रकृति को मानव की दूसरी मां के रूप में बताया गया है इसलिए प्रकृति के संरक्षण के बारे में भी उतना ही जोर दिया गया है जितना मानव कल्याण पर है ! इस धर्म में मनुष्य के क्रियाकलापों और पूजा पद्धतियों को किसी छोटे दायरे में सीमित नहीं किया गया है ! यहां पर पूरे ब्रह्मांड को परम ब्रह्म का ही विस्तार माना गया है ! इससे साफ स्पष्ट होता है कि इस धर्म में कितनी व्यापकता और उदारता है !
 

सनातन धर्म की व्यापकता और उदारता का दुरुपयोग करते हुए बहुत से लोगों ने आडंबर के द्वारा स्वयं को पुजवाना शुरू किया और अपने अपने अनुयाई तैयार किए जैसे आसाराम और रामपाल इत्यादि नेकिया था ! राजनीतिज्ञों ने इनके अनुयायियों की वोट लेने के लिए इन्हें तरह-तरह की सुविधाएं और जमीने प्रदान की जिसके फल स्वरूप पूरे देश में आसाराम के आश्रम देखे जा सकते हैं ! दिल्ली के करोल बाग और मुंबई के बीचो बीच इतनी महंगी जमीनों पर आसाराम के आश्रम अभी भी मौजूद हैं ! हरियाणा में राम रहीम की हजारों करोड़ों की संपत्ति सिरसा में है ! इसी प्रकार के अनेक उदाहरण देश में जगह-जगह मिलते हैं ! इनका राजनीतिक प्रभाव इसी बात से देखा जा सकता है कि जब राम रहीम पर हरियाणा के पंचकूला में मुकदमा चल रहा था उस समय उनके समर्थकों ने हरियाणा के राजमार्गों को लाखों की संख्या में एकत्रित होकर ब्लॉक किया हुआ था और उस समय हरियाणा की सरकार इनके विरुद्ध कार्रवाई करने से कतरा रही थी !

 

सनातन धर्म में जीवन के हर पहलू के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए अलग-अलग ग्रंथ हैजिनमें चार वेद, 18 पुराण और 108 उपनिषद हैं ! इन सब में जीवन को सफलतापूर्वक जीने के लिए पर्याप्त ज्ञान है परंतु इन ग्रंथों में कहीं पर भी इस प्रकार के धार्मिक गुरुओं और आश्रमों के बारे में कोई निर्देश नहीं है ! तब किस प्रकार धर्म के नाम पर हर जगह मठों और आश्रमों में इतनी संपत्ति एकत्रित है ! क्योंकि प्रयागराज की घटना में भी संपत्ति और प्रॉपर्टी डीलरों का संदर्भ सामने आ रहा है ! धर्म की भावना के अनुसार धार्मिक स्थानों पर श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित किया हुआ धन मानव कल्याण के ऊपर खर्च किया जाना चाहिए ना कि इसको एकत्रित करके इन धर्म संस्थानों के नाम पर अकूत संपत्ति एकत्रित करने के लिए !श्रद्धालुओं के धन से ही देश में बहुत से धार्मिक संस्थानों के पास हजारों करोड़ों की संपत्ति और सोना उनके पास एकत्रित है ! जिसके स्वामित्व के लिए आए दिन खींचतान की कोशिश देखी जा सकती है जैसा कि प्रयागराज के मठ में चल रहा था !

 

यहां पर हमें ईसाई धर्म में उनके धर्म स्थानों की रखरखाव संचालन और इन में एकत्रित धन के उपयोग के प्रकार के बारे में देखना चाहिए ! इस इस संप्रदाय में दो अलग-अलग मार्ग हैं जिन्हें कैथोलिक और प्रोटेस्टंट के नाम से पुकारा जाता है ! इन दोनों को पूरे विश्व में संचालित करने के लिए क्रमबद्ध संगठन है जैसे कैथोलिक्स के लिए पोप जो रोम की वेटिकन सिटी में रहते हैं ! विश्व के सब गिरजा घरों में इसी संगठन के द्वारा नामित पुजारी धार्मिक कार्यक्रम क्रमबद्ध तरीके से सप्ताह के दिनों में करवाते हैं ! इसके अतिरिक्त हर गिरजाघर हर साल वहां पर एकत्रित धन का ब्यौरा सार्वजनिक करता है ! जिसके बाद इनका संगठन इस धन को उनके द्वारा संचालित शिक्षा संस्थानों के संचालन में इसे खर्च करता है ! जिसका उद्देश्य शिक्षा का प्रचार प्रसार तथा साथ ही यह इन संस्थानों के द्वारा अपने धर्म का प्रचार भी करते हैं ! इसलिए आज ईसाई धर्म विश्व के कोने कोने में फैल गया है ! वहीं विश्व के सबसे उत्तम आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण सनातन धर्म उस प्रकार से विश्व में नहीं पहुंच सका जिस प्रकार ईसाई धर्म फैला है ! कुछ लोग इसके फैलाव में सत्ता का सहयोग भी मानते हैं परंतु इसके प्रचार प्रसार में इसके व्यवस्थित संगठन की बहुत बड़ी भूमिका है ! ईसाई धर्म में पूरा ध्यान मानवता की सेवा पर ही केंद्रित है, इसलिए जहां इनके पुरुष गिरजा घरों में उपदेश देते हैं वहीं पर इनकी महिलाएं नन के रूप में क्रमबद्ध तरीके से मानवता की सेवा करती हैं ! इसलिए आज तक हमारे देश की तरह इनके धर्म संस्थानों में कोई आसाराम या राम रहीम पैदा नहीं हुआ है !

धर्म स्थानों में बार-बार प्रयागराज जैसी घटनाओं को रोकने के लिए सनातन धर्म के वरिष्ठ बुद्धिजीवियों को एकत्रित होकर सर्वसम्मति से इसके धर्म स्थानों के संचालन के लिए दिशा निर्देश तय करने चाहिए ! जिससे इसके धर्म स्थानों में संगठित विधि से इस के अनुयायियों को धर्म की शिक्षा दी जा सके, और उन्हें जीवन के कष्टों से उबारने के लिए सनातन धर्म के आध्यात्मिक खजाने से ज्ञान वितरित किया जाने की व्यवस्था हो ! जिस प्रकार ईसाई धर्म को मानने वाला अपने कष्ट के समय सीधा गिरजाघर जाता है जहां गिरजाघर का पुजारी जिसे फादर कहते हैं वह उन्हें बाइबल के अनुसार मार्ग बताता है ! इसी प्रकार सनातन धर्म में जहां गीता जैसा ग्रंथ है वहां पर इस ग्रंथ के प्रकाश में भी इस के अनुयायियों को मानसिक अवसाद और कष्टों से मुक्ति दिलाई जा सकती है ! इसको देखते हुए शीघ्र अति शीघ्र इस के अनुयायियों को एक सम्मेलन बुलाकर इसके धर्म स्थानों के संचालन और यहां पर क्रमबद्ध तरीके से इसके ज्ञान को बांटने का तरीका निर्धारित करना चाहिए ! यदि इस प्रकार की व्यवस्था होगी तो सनातन धर्म के स्वरूप को देखते हुए हर संप्रदाय के व्यक्ति इसके ज्ञान को प्राप्त करना चाहेगा और यह सनातन की भावनाओं के अनुसार मानवता और प्रकृति की सच्ची सेवा होगी ! इसके साथ साथ इसके क्रमबद्ध संचालन से भारत का बहुसंख्यक हिंदू समाज भी लाभान्वित होगा तथा गर्व से कह सकेगा कि वह विश्व के सबसे पुरातन संप्रदाय के मानने वाले हैं जिसको विश्व में विश्व गुरु की उपाधि प्राप्त है !


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