हिंदुत्व और हिंदूफोबिया के इर्द-गिर्द भ्रम की राजनीति

08 Jan 2022 17:57:18
हिन्दू धर्म का तिरस्कार करने के लिए 'डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' कार्यक्रम, आयोजकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया गया एक विस्मयकारी और घृणित प्रयास था, लेकिन जिस तरह से इसका प्रचार किया गया उससे इसके प्रतिभागियों की बहुत किरकिरी हुई। संक्षेप में यदि कहा जाए तो यह हिंदू धर्म को कलंकित करने के लिए गढ़ी गई झूठी व्याख्याओं, झूठे वक्तव्यों और झूठे तथ्यों के द्वेषपूर्ण उपयोग से बखेड़ा खड़ा करने का एक कुत्सित प्रयास था। भोले भाले जन सामान्य के मन में इस प्रकार की मनघड़ंत धारणाओं से एक ऐसी सभ्यता के प्रति घृणापूर्ण दृष्टिकोण उत्पन्न हो सकता है जिसने अलगाव की जगह सदैव मनुष्य की क्षमताओं को पोषित किया है फिर चाहे वह राष्ट्र हो या मत पंथ। इसलिए, पूरे परिदृश्य की वास्तविकता को समझने के प्रयोजन से और पूरी परिस्थिति को पूर्ण रूप से देखने के लिए और वैश्विक समुदाय को सशक्त बनाने के लिए प्रत्यक्ष रिकॉर्ड निर्मित करना अपरिहार्य हो जाता है।
 

Hindutva 
 
हम सभी को रश्मि सामंत नाम की 22 वर्षीय भारतीय छात्रा का प्रकरण याद है, उस घटना ने वैश्विक हिंदूफोबिया को लेकर बहुत से यक्ष प्रश्न खड़े किये जिनकी चर्चा बहुत कम होती है। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय छात्र संघ (OUSU) की अध्यक्ष बनने वाली भारतीय और हिंदू मूल की प्रथम महिला थीं, लेकिन उन्हें बहुत जल्द अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने के लिए विवश होना पड़ा। जबरदस्ती दिए गए इस त्यागपत्र को लेकर बहुत सारी बातें हो रही हैं, जिनमें से एक बात उनके पुराने टवीट्स से जुडी है जिनपर 'नस्लवादी' और 'असंवेदनशील' होने का जबरन ठप्पा लगाया गया और दुष्प्रचार करके भ्रम फैलाया गया। हालांकि, इस युवती ने 11 फरवरी, 2021 को अध्यक्ष चुने जाने के पांच दिन बाद ही त्यागपत्र देकर अपने कदम पीछे हटाने के लिए 'हिंदुफोबिया' को जिम्मेदार ठहराया था। निःसंदेह, ऑक्सफोर्ड सोसाइटीज द्वारा इसका खंडन किया गया, लेकिन यह कोई पृथक प्रकरण नहीं है।
जब हम दुनिया भर में होने वाली ऐसी घटनाओं की श्रृंखला का अवलोकन करते हैं, तो ध्यान में आता है कि हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं पर पर्दा डालने का हर संभव कुटिल प्रयास किया जा है। ऑस्ट्रेलिया में 12 वर्षीय हिंदू मूल के बालक शुभ पटेल को फुटबॉल खेलने से मना कर दिया गया क्योंकि उसने अपनी 'तुलसी माला' को गले से निकालने से माना कर दिया था। ऐसा नहीं था कि उसने पहली बार खेल के दौरान 'माला' पहन रखी थी, लेकिन इसने भी रेफरी को उसे खेल से बाहर करने से नहीं रोका। कनाडा में भी हाल ही में भारतीय हिंदू प्रवासियों के विरुद्ध घटनाओं की एक होड़ सी देखी जा रही है, ऐसी ही घटनाओं में से एक घटना जिसमें दो किशोर मिसिसॉगा शहर के रोड्सविले पार्क में एक अधेड़ वय के एक हिंदू व्यक्ति के साथ बदतमीजी करते हैं और पथराव भी करते हैं, बाद में यह एक अंतरराष्ट्रीय समाचार भी बना। 11 सितंबर की शाम को एक 44 वर्षीय हिन्दू व्यक्ति अपने परिवार के साथ एक धार्मिक अनुष्ठान कर रहा था जब शरारती तत्वों ने हिन्दूफ़ोबिया की बीमारी के कारण उस व्यक्ति सहित उसकी पत्नी और दो बच्चों पर हमला किया और उनको उस स्थान से वापस जाने के लिए विवश कर दिया। अमेरिकन अंतरिक्ष एजेंसी नासा में प्रशिक्षु प्रतिमा रॉय को हिन्दूफ़ोबिया की बीमारी से ग्रसित लोगों के एक बड़े वर्ग ने बहुत कुछ उटपटांग सुनाया क्योंकि उन्होंने 'हिंदू देवी देवताओं' के साथ अपने डेस्क की एक तस्वीर पोस्ट की थी।
 

Hindu 
 
 
हालांकि इस तथ्य से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि इन सभी घटनाओं के मूल में 'हिंदूफोबिया' की लाईलाज बीमारी है और यह एक गंभीर वास्तविकता है जिसे अब परिपक्वता के साथ स्वीकार किए जाने की आवश्यकता है और विश्व कल्याण और प्राणियों में सद्भावना की बात करने वाले 'हिंदुत्व' के विरुद्ध वैश्विक स्तर पर लोगों में मस्तिष्क में भरी घृणा और गंदगी की सफाई का कार्य पूरी शक्ति और सामर्थ्य से करना चाहिए। इस प्रकार के घटनाक्रमों के ऐसे खतरनाक मोड़ पर 'घृणा' की भावना उत्पन्न करने वाले हर छोटे बड़े कारण और उत्प्रेरकों पर गहन चिंतन करना चाहिए। यदि हम गहन चिंतन करें तो ज्ञात होगा कि इस प्रकार के घृणा आधारित अपराधों की जड़ों में 'मानसिक अस्वस्थता' या उदासीनता है। किसी भी गंभीर निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही एक विचारधारा या अवधारणा (जो जीवन जीने का सही तरीका है और प्राणियों के सह-अस्तित्व में विश्वास करती है नाकि संघर्ष में) को पूरी तरह से समझने की दिशा में उदासीनता रखकर उस पूरी आस्था को अपने अस्तित्व के अधिकार से वंचित किया जाता है। चलिए हम इसे कुछ इस तरह से देखते हैं: 'डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' कार्यक्रम हिन्दू विरोधी गंदी सोच पर आधारित एक विफल, कुत्सित, हताश और कुष्ठ मानसिकता पूर्ण एक शैतानी प्रयास है, जिसे एक वैश्विक सम्मेलन के छद्म आवरण में 'सनातनी हिंदुत्व' की छवि धूमिल करने के प्रयोजन से आयोजित किया गया था।
केवल मुँह चलाने के लिए 'हिंदुत्व' को हिंदू राष्ट्रवाद की पैरवी करने वाले एक राजनीतिक आंदोलन और हिंदू राष्ट्र की स्थापना या भारत में हिंदुओं और हिंदू धर्म के आधिपत्य को स्थापित करने की मांग करने वाली विचारधारा या आंदोलन के रूप में परिभाषित किया जा रहा है। स्पष्ट है यह दृष्टिकोण अब्राह्मिक मत के आधार पर वहां के मूल निवासियों का समूल नाश करने वाली पश्चिमी सोच का एक घृणित षड्यंत्र है। वास्तव में, 'तत्व' 'किसी सिद्धांत के सार' को संदर्भित करता है, जबकि 'वाद' (इज्म) विचारों की एक बंद पुस्तक या रूढ़िवादिता या अंधविश्वास का द्योतक होता है। जबकि हिंदुत्व कोई मत पंथ नहीं है, प्रत्युत जीवन जीने की पद्धति है। यह भारत के स्वदेशी दर्शन, अध्यात्म और आस्था को प्रदर्शित करता है। और तो और हिंदुत्व लोगों को भगवान की ओर भी नहीं ले जाता! यह किसी शास्त्र विशेष या मार्ग को भी प्रमुखता नहीं देता है। जैन पंथ अनुयायियों की तरह एक हिन्दू वेदों पर प्रश्न उठाने, उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र होता है, लेकिन वह फिर भी एक गौरवान्वित हिंदू ही होता है। हिंदुत्व सर्वसमावेशी है और इसमें सहिष्णुता, वैचारिक स्वतंत्रता, पसंद और अभिव्यक्ति भी समाहित हैं। यह एक '*केवल ist*' मत प्रणाली या विश्वास नहीं है, प्रत्युत एक दर्शन है जो 'वाद या इज्म' को भी प्रोत्साहित करता है। पूरे विश्वास के साथ कोई भी व्यक्ति यह दावा कर सकता कि कोई भी विश्वास या विचारधारा जो किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता या अधिकारों का निषेध या कटौती करती है वह हिंदुत्व का हिस्सा नहीं हो सकती। प्रख्यात विद्वान और लेखक जे. नंदकुमार कहते हैं, "जो हठधर्मिता या रूढ़िवादिता की अनुमति नहीं देता है, हिंदुत्व केवल उसी एक रूढ़िवादिता या हठधर्मिता को स्वीकार करता है।"
 
 
यहां तक कि टॉम हॉलैंड जैसे लेखक ने भी दावा किया कि जब तक पश्चिम ने हिन्दुओं को नहीं बताया था तब तक उनको यह ज्ञात नहीं था कि वे 'हिंदुइज्म' से जुड़े हैं। यह गंभीर रूप से 'दोगली मानसिकता' का परिचायक था! 'सारे आविष्कार हमने किये' इस कथानक को जाने अनजाने में 'हिंदूफोबिया' के लिए के लिए दोषी ठहराया जा रहा है। विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर के पास हिंदू राय (सुरत्राण) था, इसका अर्थ है कि 1352 में यानी वास्को डी गामा द्वारा भारत की कथित 'खोज' करने से 150 वर्ष पहले एक हिंदू सम्राट का राज्य था। इस मिथक को सत्य बनाकर प्रस्तुत करने का षड्यंत्र आज तक चल रहा है कि वास्को डी गामा ने भारत की खोज की थी, लेकिन तार्किक रूप से यह पूर्णतः कोरा झूठ है। वास्तव में वास्को डी गामा के जन्म लेने से पूर्व भी भारत अस्तित्व में था, और उसके कब्र में तथाकथित आराम करने (रेस्ट इन पीस) के लंबे समय के बाद भी भारत धरती पर चमकता रहेगा। कब्र में तथाकथित आराम वाक्य इसलिए क्योंकि कब्र में तो शरीर को कीड़े खाएंगे तो रेस्ट इन पीस होने का 'चांस' शायद ही हो! 'खोज' शब्द का उपयोग करना अपने आप में उस वर्चस्ववादी (सुप्रेमासिस्ट) विचारधारा का पर्दाफास करता है जिसका रूपांतरण राजनीतिक सामंतवाद की भावना में हो गया है, जहां हिंदुत्व पर चर्चा करते समय अभिजात वर्ग के एक छोटे से वर्ग के बीच स्वीकार्यता हासिल करने के लिए स्वयं को हिंदूफोबिया के साथ जोड़ने की आवश्यकता होती है।
 
पश्चिमी जगत के पास उस शब्दावली और मानस का आभाव है जो उसे भारत जनित विचारों को समझने और धारण करने की अनुमति दे सके या योग्य बना सके। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म को यहूदी, इस्लाम और ईसाईयत जैसे पंथो के समकक्ष वर्गीकृत किया जाता है, वास्तव में यह पूर्ण रूपेण मिथ्या वर्गीकरण है। हिंदुइज्म जिसे 'हिंदुत्व' कहा जाना चाहिए, को उपमहाद्वीप में 'धर्म' कहा जाता है, और अंग्रेजी भाषा में एक भी शब्द ऐसा नहीं है जो धर्म के पूरे अर्थ को समझाने में सक्षम है। वास्तव में बहना (तरलता) जल का धर्म है, और रक्षा करना एक सैनिक का धर्म है। मत पंथो (रिलिजनस) से तुलना करने की जगह धर्म पर चर्चा करना ही उचित संदर्भ हो सकता है। यदि हमें किसी को धर्म का अर्थ समझाना हो तो हम इसे 'अस्तित्व के उस व्यवस्थित तंत्र के रूप में व्याख्या करेंगे जो नैसर्गिक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करता है'। धर्म वह शक्ति है जो एक परिवार, समाज, राष्ट्र, राज्य और अंततः सम्पूर्ण ब्रह्मांड को एकसूत्र में बाँधे रखती है। इसका रिलिजन के विचार से कोई संबंध नहीं है जो ईश्वर द्वारा मानवता को प्रदत्त नियमों, विनियमों और प्रथाओं पर प्रभावी रूप से आधारित है। यह केवल हिम पर्वत की नोक मात्र है, क्योंकि अब्राहमिक विचारों के माध्यम से दुनिया में प्रचलित तथाकथित 'हिंदुइज्म' की पूरी समझ होना समुद्र के होते हुए केवल किनारे पर तैरना जैसा है।
 
योग या आयुर्वेद जैसी मानव कल्याणकारी विधाओं के समतुल्य या अधिक इस विशाल जीवंत संस्कृति ने इतिहास में क्या क्या अर्जित किया है यह ज्ञात करने हेतू जब हम भूतकाल पर दृष्टि दौड़ाते हैं तब इस शास्वत तथ्य से कोई भी असहमत नहीं हो सकता कि इस संस्कृति ने वह सब कुछ अर्जित कर लिया है जो मनुष्य के साथ साथ पृथ्वी पर रहने वाले अन्य प्राणियों की भलाई के लिए मानवता अर्जित कर सकती है। यदि कोई हिंदुत्व की शिक्षाओं पर चिंतन करता है, तब जाकर हिंदुत्व के पास दुनिया को देने के लिए क्या है वह इस गूढ़ ज्ञान को समझने योग्य होगा। तब तक कदाचित हिन्दूफ़ोबिया का रोग कष्ट दे सकता है। मानव कल्याण के लिए महान हिंदुत्व की शिक्षाओं के कुछ अंश निम्नलिखित हैं:
एकंसद्विप्राबहुधावदन्ति (ऋग्वेद संहिता, 1.164.46)
"सत्य एक है और विद्वान लोग उसे पृथक पृथक तरीकों से बताते हैं"
 
 
सर्वेभवन्तुसुखिनः (गरुड़ पुराण, 35.51)
"सभी सुखी रहें"
 
वसुधैवकुटुम्बकम् (महा उपनिषद, 6.71–75)
"सारी वसुंधरा एक कुटुंब है"
 
कृण्वन्तोविश्वम्आर्यम् (ऋग्वेद संहिता, 9.63.5)
"विश्व को श्रेष्ठ (आर्य) बनाएंगे"
 
हिंदु धर्मावलंबी हमेशा से आलोचना, कुछ नया सीखने के लिए उद्यत और विकासोन्मुखी रहे है क्योंकि यह भाव हिंदुत्व के मूल में निहित है। यह विडंबना है कि उनका परीक्षण या समीक्षा अधिकार व्यापक स्तर पर ऐसे लोगों के हाथों में रहा है जिनके पास हिंदुत्व को समझने के लिए न तो पर्याप्त शब्दावली है, न ही उनके पास हिंदुत्व के उदात विचारों को समझने की क्षमता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके पास इस सत्य को स्वीकार करने की इच्छा का भी आभाव है कि वे स्वयं अपने द्वारा स्थापित कथित सत्य के साथ संघर्ष विराम के बिना खड़े रह सकते हैं। अब आपको अनुभूति हुई होगी कि हिंदुत्व के मूल और गूढ़ता को समझे बिना ही इसके पक्ष और विपक्ष में कथानक का प्रचार या दुष्प्रचार किया जा रहा है। जब तक इस तरह के मिथकों का समाधान नहीं किया जाएगा तब तक किसी भी प्रकार के त्रुटि सुधार की संभावना अत्यंत दुर्बल हैं। इस उपमहाद्वीप के लोग इस उदात संस्कृति की उत्कृष्ट शब्दावली, गौरवशाली इतिहास और इसके कल्याणकारी दृष्टिकोण को जिस दिन इसके वास्तविक रूप में समझ लेंगे उस दिन वे बाकी दुनिया के साथ यथोचित संवाद करने में सक्षम होंगे।
'डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' सम्मेलन निर्लज्जतापूर्ण मानसिकता के साथ किये गए खुले प्रदर्शन के अतिरिक्त और कुछ नहीं था जिसमें मानवता के शत्रुओं ने यह प्रदर्शित करने का कपटपूर्ण प्रयास किया कि छलकपट के साथ मिश्रित भ्रांतियां किस तरह से हजारों साल की प्रगति को मिटटी में मिला सकती हैं और एक उदात सभ्यता को गौण बनाकर उसका निषेध कर सकती है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब हिंदुत्व के भाव से परिपूर्ण इस सभ्यता का सामना इस प्रकार के कुत्सित अत्याचारों से हुआ है और निश्चित रूप ऐसा अंतिम बार भी नहीं हुआ है। वास्तव में, इस प्रकार के आयोजन 'हिंदूफोबिया' की बीमारी को पहचानने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण उत्प्रेरक सिद्ध होंगे क्योंकि वे पूरी मानवता के कल्याण के लिए सत्य का अनावरण करके इंटरनेट तज्ञ हिंदुओं को जागृत करने का कार्य कर रहे हैं।
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