लेखक : देवेन्द्र कुमार नयन ( देवघर, झारखण्ड ) भारत रत्न से सम्मानित अपनी सुरीली आवाज से देश - दुनिया पर दशकों तक राज करने वाली सुर - साम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन हो जाना हृदयविदारक है। यह हमारे पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है। इसके कंठ में साक्षात सरस्वती माता विराजमान थीं, यह एक संयोग कहे या फिर इत्तेफाक, आज ही माता सरस्वती का विसर्जन है और आज ही लता जी हमलेगों को अलविदा बोल गईं।
लता जी की आवाज के बारे में हम सब जानते ही हैं, मीठी आवाज की धनी लता जी के गानो ने कभी हंसाया तो कभी रुलाया है। लता जी के गाए गाने जैसे ऐ मेरे वतन के लोगों ......को सुनने मात्र से सीमा पर खड़े जवानो को एक सहारा मिल जाता है, जो उन्हें सिमा पर लड़ने की एक ताकत प्रदान करता है।
लता जी ने 1942 में महज 13 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया है। इसके अलावा उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार जैसे इत्यादि पुरुस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
30 से अधिक भारतीय भाषाओं में लता ने 30 हज़ार से अधिक गाने गए, 1991 में ही गिनीस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने माना था कि वे दुनिया भर में सबसे अधिक रिकॉर्ड की गई गायिका है।
लता को सबसे बड़ा अवार्ड तो यही मिला है कि वे अपने करोड़ों प्रशंसकों के बीच उनका दर्जा एक पूजनीय हस्ती का है, वैसे फ़िल्म जगत का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फ़ाल्के अवार्ड और देश का सबसे बड़ा सम्मान 'भारत रत्न ' लता मंगेशकर को मिल चुका है।
भजन, ग़ज़ल, क़व्वाली शास्त्रीय संगीत हो या फिर आम फ़िल्मी गाने लता ने सबको एक जैसी महारत के साथ गाया है। लता मंगेशकर की गायिका के दीवानों की संख्या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है।
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1928 में इंदौर मध्य्प्रदेश में हुआ था। ये पांच भाई और बहन थे, जिसमे सबसे बड़ी लता मंगेशकर जी थीं।
इनकी तीन बहने आशा भोंसले, उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और भाई ह्रदयनाथ मंग्गेशकर थी इनके पिताजी का नाम दीनानाथ मंगेशकर था जो रंगमंच के कुशल गायक थे। लतामंगेश्कर जी के पिताजी उन्हें पांच साल की उम्र से ही संगीत की शिक्षा प्रदान कर रहे थे।
पहली बार लता जी ने वसंत जोगलेकर द्वारा निर्देशित फिल्म कीर्ति हसाल के लिए गाया था। हालांकि उनके पिताजी को लता जी का फिल्मो में गाना पसंद नहीं था। इसलिए भी उनका वो गाना रिलिज भी नहीं हुआ था।
जब केवल लता जी 13 वर्ष की थी, तब उनके पिताजी का देहांत हो गया था। घर में सबसे बड़ी होने के कारण घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पे आ गयी थी। इस बजह से ही उन्होंने और उनकी बहनो ने मिलकर अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। उन्होंने अपने घर में पैसों की किल्ल्त की बजह से कई हिंदी और मराठी फिल्मो में काम भी किया है।
अभिनेत्री के रूप में उन्होंने पहली बार 'पाहिली मंगलागौर' जो की 1942 में आई थी, उसमे स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी। बाद में उन्होंने कई फिल्मो में काम किया, जिसमे माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), मांद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) आदि फिल्में शामिल हैं। बड़ी माँ में लता जी ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उनके छोटी बहन की भूमिका निभाई। उन्होंने खुद की भूमिका के लिए गाने भी गाये और आशा जी के लिए पाश्र्वगायन किया।
जिस समय लताजी ने (1948) में पार्श्वगायिकी में कदम रखा तब इस क्षेत्र में नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी। ऐसे में उनके लिए अपनी पहचान बनाना इतना आसान नही था।
1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म "महल" के "आयेगा आनेवाला" गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लता मंगेशकर हमारे देश भारत की सबसे अधिक आदरणीय और संगीत की मलिका है। उनके जैसे शायद ही आज तक इस धरती पर किसी ने जन्म लिया है, जो उनके जैसे जादुई आवाज का धनि होगा।
हमारे भारत देश की सुरो की धनी लता मंगेशकर जी की छबि, भारतीय सिनेमा में एक पाश्र्वगायिका के रूप में जगत विख्यात है और उनकीं उपलब्धियों से उनका कार्यकाल भरा पड़ा है।
लता मंगेशकर जी के आवाज के भारतीय उपमहादिपो के साथ पूरी दुनिया में दीवाने भरे पड़े है। ये बात जगत विख्यात है की उनके जैसी जादुई आवाज की गाइका आज तक इस धरती पर ना कोई हुई है और नाही कोई होगी।
स्वर की सुर लहरियों में डुबो देने वाली लताजी की गायकी में एक ऐसा जादू है कि सभी को गीत की अनुभूतियों में उसके पूरे भावों सहित उतार ले चलता है।
लता मंगेशकर के गाए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक 'ऐ मेरे वतन के लोगो... को पहले लता ने कवि प्रदीप के लिखे इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि वह रिहर्सल के लिए वक्त नहीं निकाल पा रही थीं। कवि प्रदीप ने किसी तरह उन्हें इसे गाने के लिए मना लिया। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह पर हुई। लता इसे अपनी बहन आशा भोसले के साथ गाना चाहती थीं। दोनों साथ में इसकी रिहर्सल कर भी चुकी थीं। मगर इसे गाने के लिए दिल्ली जाने से एक दिन पहले आशा ने जाने से इनकार कर दिया। तब लता मंगेशकर ने अकेले ही इस गीत को आवाज दी और यह अमर हो गया।
लताजी ने जब ‘प्रदीप’ का वह देशभक्ति से परिपूर्ण गीत ऐ मेरे वतन के लोगों गणतन्त्र दिवस के अवसर पर स्व॰ प्रधानमन्त्री नेहरूजी के समक्ष प्रस्तुत किया था, तो वे अपनी आंखों के आंसू नहीं रोक पाये थे ।
प्रेम, विरह, मिलन, भक्ति, देशप्रेम या फिर जीवन का कोई भी भाव हो, लताजी ने उसके साथ भरपूर न्याय किया है।
यह कहना बिलकुल सत्य होगा की लता जी की आवाज हमेशा युगों युगांतर तक हमलोगों के दिलों पे हमेशा राज करेंगी।