स्वयं को पहचानिए

08 Aug 2022 09:36:16
यदि मनुष्य स्वयं के बारे में यह जान ले की वह प्रकृति के किस गुण के प्रभाव में है तो उसे अपने व्यक्तित्व को जानने में आसानी होगी ! मनुष्य शरीर प्रकृति के 5 महा भूतों– पृथ्वी जल, आकाश, अग्नि, वायु, 5 कर्मेंद्रियों तथा पांच ही ज्ञानेंद्रियों और मन द्वारा निर्मित होता है ! इस प्रकार मनुष्य का शरीर कर्म क्षेत्र के रूप में संसार में प्रवेश करता है जिसे पांच इंद्रिय विषय इच्छा, द्वेष, सुख-दुख, संघात, जीवन लक्षण तथा धैर्य जैसे विषय उसकी जीवन क्रिया को नियंत्रित करते हैं ! इंद्रिय विषयों की प्रतिक्रिया से ही काम क्रोध लोभ जैसे अवगुण मनुष्य के व्यक्तित्व में प्रवेश कर जाते हैं, जैसे मोह से कामना और द्वेष से क्रोध इत्यादि !

इस प्रकार 21 तत्वों से निर्मित मानव शरीर रूपी कार्य क्षेत्र में किस प्रकार की भावना जागृत होगी जिनसे इंद्रिय विषय संचालित होंगे उनका पूरा स्वरूप प्रकृति के गुणों सात्विक राजसिक और तामसिक द्वारा निर्धारित होती हैं ! मनुष्य संसार को पहले देखता है उसके बाद इंद्रिय विषयों के अनुसार कर्म करता है ! इसके अनुसार मनुष्य जिस ज्ञान से अनंत रूपों में अभिव्यक्त सारे जीवो में एक ही ब्रह्म को देखता है उसे सात्विक तथा जिस ज्ञान से विभिन्न शरीरों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव दिखाई देते हैं उसे राजसिक तथा मनुष्य जिसके द्वारा अति तुच्छ कार्य को जीवन का लक्ष्य मानकर करता है उसे तामसी गुण माना जाता है !
 
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इसके बाद कर्मों में जब नियमित कर्म को आसक्ति राग द्वेष से रहित, कर्म फल की चाह के बगैर किया जाता है वह सात्विक , लेकिन जो कार्य अपनी इच्छा पूर्ति के लिए प्रयास पूर्वक एवं मिथ्या अहंकार के भाव से किए जाते हैं उन्हें रजोगुण कहा जाता है और जो कर्म मोह-बस शास्त्रीय आदेशों की अवहेलना करके भाबी बंधन की परवाह किए बिना या हिंसा अथवा अन्य को दुख पहुंचाने के लिए किए जाते हैं उन्हें तामसी कहा जाता है !

इस प्रकार मनुष्य के द्वारा संसार को देखने और उसके कार्यों से यह निर्धारित किया जा सकता है कि वह प्रकृति के किस गुण के प्रभाव में अपना जीवन यापन कर रहा है ! शास्त्रों के अनुसार 8400000 योनियों के बाद मानव शरीर प्राप्त होता है जिसके द्वारा मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है और इस मोक्ष की प्राप्ति के लिए उसे कर्म बंधन से मुक्त होना पड़ता है ! कर्म बंधन से मुक्त होने के लिए उसे सात्विक गुणों की आवश्यकता होती है जिससे उसे कर्मों से मुक्ति मिल जाती है और वह सत्कर्म करते हुए ईश्वरीय भावना में लीन होकर परम ब्रह्म में विलीन हो जाता हैजिसे मोक्ष कहा जाता है !

इसको देखते हुए मनुष्य को सतोगुण की प्राप्ति के प्रयास करने चाहिए जिससे वह संसार सागर से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकें जो मनुष्य योनि का परम लक्ष्य है !
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