स्वाध्याय और योग

NewsBharati    19-Sep-2020 13:55:25 PM   
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महर्षि पतंजलि ने पूर्ण योग की 8 सीढ़ियां बताई है जिन्हें अष्टांग योग के नाम से पुकारा जाता है ! इनके अनुसरण से क्रमवार मनुष्य योग में उन्नति करता हुआ आखिर में पूर्ण समाधि को प्राप्त कर लेता है ! इसकी पहली सीढ़ी है यम और दूसरी नियम है यम में साधक को सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य असते और अपरिग्रह तथा नियम में संतोष, तप स्वाध्याय एवं ईश्वर प्राणी धान को अपनाना होता है! यम और नियम का उद्देश्य मनुष्य की मानसिक स्थिति को अब- गुणों से मुक्त करके उसे ईश्वर साधना के लिए तैयार करना ! इस पूरे उपक्रम में स्वाध्याय का विशेष स्थान है !
 
स्वाध्याय का तात्पर्य है धर्म ग्रंथों में वर्णित आध्यात्मिक ज्ञान के संदर्भ में स्वयं का अध्ययन ! जैसे गीता में कर्म अकर्म तथा वि कर्म के बारे में बताया गया है ! इसका उद्देश्य मनुष्य को कर्म फल से मुक्त करना है ! इसकी व्याख्या करते हुए भगवान ने कहा है कि करता जब फल की कामना से मुक्त होकर केवल ईश्वरीय भावना से कर्म करता है तब वह कर्म अकर्म बनकर करता को कर्म फल से मुक्त कर देता है ! इसी प्रकार तत्वज्ञान के बारे में कहा गया है ! गीता के अनुसार ईश्वरीय अंश हर !जीव में मौजूद है और केवल वही सत्य है बाकी संसार प्रवर्तनीय है ! इसलिए मनुष्य को ईश्वर को बाहर न खोज कर स्वयं के अंदर ही पहचानना चाहिए ! इसी प्रकार का औरआध्यात्मिक ज्ञान अलग-अलग धर्म ग्रंथों से प्राप्त होता है !
 
स्वाध्याय में मनुष्य उपरोक्त ज्ञान के प्रकाश में स्वयं का अध्ययन करता है कि क्या वह उपरोक्त ज्ञान के अनुसार जीवन निर्वाह कर रहा है ! और यदि वह अपने व्यवहार में कुछ भिन्नता पाता है तो उसे स्वाध्याय के द्वारा सुधारने का प्रयास करता है ! इस प्रकार स्वाध्याय के द्वारा मनुष्य स्वयं मानवीय दुर्गुणों से मुक्त होकर ईश्वर से जुड़ने के लिए तैयार होता है और इसके बाद ही वह योग द्वारा यह प्रक्रिया पूरी करता है ! स्वाध्याय का महत्व समझते हुए यह परम आवश्यक हैकी साधक की आध्यात्मिक ज्ञान में श्रद्धा हो ! क्योंकि श्रद्धा के द्वारा ही वह किसी तथ्य को स्वीकार करता है और जब वह उसे समझ कर ग्रहण कर लेता है तब वह ज्ञान कहलाता है ! इस प्रकार स्वाध्याय योग के लिए बहुत ही जरूरी है !
 
इसलिए हर मनुष्य को योग में स्थित होने के लिए स्वाध्याय को अपने जीवन में जरूर अपनाना चाहिए ! स्वाध्याय के द्वारा वह हर समय योगी है ! 

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.