देश की आंतरिक सुरक्षा मैं भ्रम को और मजबूत बनाती और एक आम देशवासी को और असुरक्षित महसूस कराती मुंबई हत्याओं की जांच

NewsBharati    23-Sep-2020 13:13:33 PM   
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देश की सीमाओं की सुरक्षा सेना जिस प्रकार करती है उसी प्रकार देश में आम नागरिक के जीवन की सुरक्षा देश की पुलिस तथा कानून व्यवस्था से जुड़ी अन्य संस्थाएं करती हैं ! जिससे एक आम नागरिक देश के अंदर अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है और और यह सब देश की आंतरिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग है ! इस प्रकार सीमाओं की बाहरी खतरों से सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा को मिलाकर राष्ट्रीय सुरक्षा पूरी होती है ! मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा देश के नागरिक में उतनी ही मजबूत राष्ट्रीयता की भावना पैदा करती है ! आंतरिक सुरक्षा तभी मजबूत मानी जाती है जब देश में कानून व्यवस्था लागू करने वाली मशीनरी की नजर में सभी नागरिक समान हो तथा अपराधी कितना भी ताकतवर हो उसके साथ कानून के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया उसी प्रकार अपना काम करें जिस प्रकार एक आम नागरिक के साथ करती है ! परंतु पिछले 100 दिन से देखने में आ रहा है कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में कानून व्यवस्था को लागू करने वाली पुलिस तथा इसके साथ अपराधियों की जांच में सहयोग करने वाली चिकित्सा प्रणाली भी शक के घेरे में है !इस शक को और भी गहरा मीडिया की सक्रियता ने कर दिया है ! 8 जून से अब तक देश के सभी टीवी चैनलों पर केबल मुंबई में हुई संदेह आत्मक दिशा साल यान तथा सुशांत राजपूत की हत्याओं के बारे में ही चर्चाएं हो रही हैं ! इन चर्चाओं में मुंबई पुलिस का संदेह आत्मक व्यवहार जिसमें उसने मौके पर पहुंचते ही बिना गहरी छानबीन तथा मौके पर उपलब्ध तथ्यों का संज्ञान लिए ही इन दोनों मौतों को आत्महत्या करार दे दिया और उसके बाद इन दोनों शवों का जिस प्रकार पोस्टमार्टम हुआ है उससे शक और भी गहरा हो जाता है कि देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदार संस्थाएं अपना दायित्व भली-भांति नहीं निभा रही है ! मीडिया पर इन हत्याओं से जुड़े साक्ष्यों को जिस प्रकार उजागर किया जा रहा है उससे एक आम देशवासी को यह महसूस होता है कि यह हत्याएं सत्ता से जुड़े अपराधियों के द्वारा की गई है और इनके तार ड्रग तथा अन्य प्रकार के माफियाओं से भी जुड़े हुए हैं ! परंतु अभी तक मुंबई पुलिस ने इन दोनों हत्याओं की प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की है तब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की हत्या के समय उपलब्ध साक्ष्यों का क्या हुआ होगा ! और अब इन साक्ष्यों की अनुपस्थिति में क्या इन हत्याओं की जड़ तक पहुंचा जा सकता है ! सरेआम प्रत्यक्षदर्शियों तथा चित्रों में देखा जा सकता है कि सुशांत राजपूत की गर्दन पर चोट के निशान थे और इसी प्रकार दिशा साल यान के शरीर के विभिन्न हिस्सों पर भी चोटों के निशान थे परंतु पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने इनके बारे में कोई निष्कर्ष अपनी रिपोर्टों में नहीं निकाले हैंइस प्रकार सबूतों के साथ हुई हेराफेरी से यदि अपराधियों के विरुद्ध अदालत मैं हत्या का अभियोग चला भी तो हो सकता है इस स्थिति में वे अदालतों से भी बच जाएंगे ! 
 
सुशांत राजपूत के एक सेलिब्रिटी उसके परिवार के प्रभावशाली होने के कारण उसके गृह प्रदेश बिहार की सरकार की सक्रियता के द्वारा इन हत्याओं में सीबीआई जांच के आदेश हुए और सीबीआई ने पूरे 20 दिन तक मुंबई में ही कैंप करके पूरी जांच की परंतु अब सीबीआई भी सबूतों के अभाव में करीब-करीब इसी नतीजे पर पहुंच रही है कि सुशांत राजपूत की मौत एक आत्महत्या ही थी ! इस प्रकार शुरू में जिस प्रकार पूरे देश को आशा थी कि देश की शीर्ष तम जांच संस्था सीबीआई इस केस में सच्चाई कोजरूर सामने लाएगी परंतु सत्ता की घेराबंदी के कारण सीबीआई भी अपने आप को इसकी सच्चाई उजागर करने में असहाय पा रही है ! इस प्रकार खोदा पहाड़ निकली चुहियावाली कहावत इन दोनों हत्याओमैं सच होती दिखाई दे रही है ! क्योंकि हत्याओं की गुत्थी हल ना होने और मीडिया के द्वारा एक आम देशवासी को सारे तथ्य खोल खोल कर बताने से एक आम नागरिक के अंदर देश की कानून व्यवस्था के प्रति निराशा उत्पन्न हो रही है ! वह पहले से भी सोचता था कि देश में प्रभावशाली अपराधी अपराध से बच निकलता है और अब इन हत्याओं में कुछ ना निकलने से उसे पूरा विश्वास हो गया है कि देश की कानून व्यवस्था की नजर में सब नागरिक बराबर नहीं है ! इसलिए एक आम नागरिक अपने आप को अब और ज्यादा असुरक्षितऔर डरा हुआ महसूस कर रहा है ! देश में इससे पहले भी जगह-जगह इसी प्रकार के अपराध होते रहे है और अपराधी सत्ता के नजदीक होने के कारण बच कर निकलते रहे परंतु मुंबई की हत्याओं की तरह उसने पहले कभी इस प्रकार का सचित्र विवरण अपनी टीवी स्क्रीन पर नहीं देखा हैजिसके द्वारा उसके अंदर यह भावना घर कर गई हैकी चाहे कितने भी मजबूत साक्ष्य हो परंतु यदि सत्ता का साथ है तो अपराधी हर हालत में बच निकलेगा ! इस प्रकार संगठित अपराध देश में दिनोंदिन उन्नति करता चला गया ! इसका उदाहरण अभी कुछ समय पहले देश की जनता ने कानपुर में देखा कि किस प्रकार एक संगठित अपराधी ने सरेआम आठ आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया और उसके बाद इन पुलिस वालों के शवों को पेट्रोल डालकर जलाना चाह रहा था ! और इसकी हद तक जब हो गई जब उसने इस पुलिस टीम के मुखिया एक पुलिस उप अधीक्षक के शव के टुकड़े कुल्हाड़ी से कर दिए थे ! यह सब दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि देश में संगठित अपराधी कितने निर्भय हैं और यह अभय दान उन्हें कहां से मिल रहा है ! कानपुर के इस माफिया डॉन के सत्ता में संबंधों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2004 में इसने उत्तर प्रदेश की सरकार के एक राज्य मंत्री दर्जे के राजनीतिक की हत्या का प्रयासएक जनसभा में किया था और जब इस राजनीतिक ने नजदीक के पुलिस थाने में जाकर अपनी जान बचाने की कोशिश की तब उसने 16 पुलिसकर्मियों के सामने इसकी हत्या कर दी ! और व्यवस्था की लाचारी की पराकाष्ठा तक पार हुई जब अदालत में प्रत्यक्षदर्शी पुलिसकर्मियों ने इस हत्याकांड की गवाही देने सेही मना कर दिया ! इस प्रकार विकास दुबे नाम का कुख्यात अपराधी दिनोंदिन और मजबूत होता चला गया और इसके कारण उसने कानपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्र में चारों तरफ अपना आतंक स्थापित करके वहां पर अनैतिक संपत्तियां तथा तरह-तरह के संगठित अपराध करने शुरू कर दिए ! 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के समय भी उसकी मदद उत्तर प्रदेश की पुलिस ही कर रही थी ! क्योंकि इस पुलिस दल की सूचना उसे पहले ही मिल चुकी थी ! और बाद में जांच में सामने आया है कि उत्तर प्रदेश के उच्च स्तर के नौकरशाह तथा पुलिस अधिकारी इस माफिया डॉन को तरह तरह की सहायता उपलब्ध करा रहे थे जिसके कारण इसका कद इतना बढ़ गया था ! 
 
कानून व्यवस्था की इस स्थिति का दुष्प्रभाव इतना भयानक होता हैकी एक आम नागरिक सार्वजनिक स्थान पर खुले रूप से हो रहे अपराधों के प्रति एक प्रकार से निष्क्रिय हो जाता है ! और उसकी राष्ट्रीयता की भावना पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है जैसा कि अक्सर देखने में आता है ! देखा जाता है कि गुंडे महिलाओं के साथ सार्वजनिक स्थानों पर गुंडागर्दी कर रहे होते हैं परंतु ज्यादातर लोग इसकी अनदेखी करते हैं और बाद में कहते हैं कि देखिए क्या जमाना आ गया है एक महिला की इज्जत लूट रही थी और लोग तमाशा देख रहे थे ! परंतु इसके पीछे मूल सच्चाई है कि अपराधों के प्रत्यक्षदर्शी यह महसूस करने लगे हैं कि देश की पुलिस प्रभावशाली लोगों के दबाव में सब रफा-दफा कर देगी और बाद में उन्हें केवल बुराई ही मिलेगी ! और यदि उन्होंने गवाही दी या अपराधी को अपराध करने से रोका तो वे अपराधी उसके भी दुश्मन बन जाएंगे और इसी का जीता जाता उदाहरण यह मुंबई की हत्याएं हैं ! मुंबई देश की आर्थिक तथा मनोरंजन की राजधानी कही जाती है क्योंकि यहां पर देश के मनोरंजन का मुख्य केंद्र फिल्म सिटी स्थित है इसलिए देश का हर देशवासी यह सोच रहा है कि मुंबई एक प्रकार से देश का शोरूम है और यदि यहां पर भी हत्याएं होने पर हत्यारों तक कानून के हाथ नहीं पहुंच सकते हैं तब बिहार तथा देश के अन्य पिछड़े क्षेत्रों में किस प्रकार एक आम नागरिक अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकता है ! 
 
अक्सर जब कोई राष्ट्रीय पर्व होता है या देश पर विपदा आती है तब देश के सत्ताधारी अपनी वाहवाही के लिए देशवासियों से राष्ट्रीयताके जज्बे की आशा रखते हैं और अक्सर नेता देशवासियों का आवाहन करते हैं कि वे राष्ट्र के समर्थन में सामने आए और राष्ट्रीयता की भावना का प्रदर्शन करें ! परंतु वे भूल जाते हैं की राष्ट्रीयता की भावना का निर्माण देश की कानून व्यवस्था न्याय तथा विकास के समान अवसर सबको उपलब्ध होने के बाद ही जागृत होती है ! और यह भावना देश में चारों तरफ न्याय तथा समान अवसर का माहौल होने के कारण दिन प्रतिदिन मजबूत होती चली जाती है ! परंतु जगह-जगह हो रहे संगठित अपराध और इन अपराधों की जांच में मुंबई जैसी खामियां और बड़े-बड़े घोटाले एक आम नागरिक की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं और वह देश के प्रति एक प्रकार से उदासीन हो जाता है ! जबकि विश्व के पश्चिमी देशों और अमेरिका में वहां के राष्ट्रपति से लेकर एक आम नागरिक तक कानून की दृष्टि में समान है ! यदि अमेरिका के राष्ट्रपति क्लिंटन ने कोई अपराध किया है तो उसको भी कानूनी सजा एक सामान्य नागरिक की तरह दी गई ! इटली के प्रधानमंत्री ने यदि अपराध किया तो उसे भी 5 वर्ष का सश्रम कारावास हुआ ! क्या यह हमारे देश में संभव है ! दूसरे विश्व युद्ध में जब जापान तथा जर्मनी ने समर्पण किया था तब उस समय जापान का समर्पण अमेरिकन सेनाओं ने बीच समुंदर में जहाज के ऊपर लिया था ! इसका कारण था की जापानियों के अंदर राष्ट्रीयता की भावना इतनी ऊंची स्तर की थी कि वहां का हर नागरिक एक चलता फिरता बम था और अमेरिकन सेनाओं ने ऐसे देश में घुसने में अपने आप को असुरक्षित महसूस किया ! इसी प्रकार अमेरिका के आम चौराहे पर या कहीं पर भी किसी भी अमेरिकन वासी को भारतीयों की तरह व्यवहार करते नहीं देखा जा सकता ! वह स्वयं खड़े होकर अपराध के विरुद्ध आवाज उठाते हैं क्योंकि वहां की व्यवस्था ने उनके अंदर राष्ट्रीयता की भावना इतनी मजबूत बना दी है कि हर नागरिक अपने आप को सुरक्षित पाकर अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए तैयार है !
 
100 दिन की जांच के बाद मुंबई हत्याकांड! का रुख अब ड्रग से संबंधित अपराधों की तरफ मोड़ दिया गया है जिससे कि देशवासियों का मनोरंजन उसी प्रकार होता रहे जैसा कि पिछले 100 दिन से हो रहा था ! कुछ लोग इसे सोची समझी एक चाल बताते हैं जिसमें देश की ज्वलंत समस्याओं से देशवासियों का ध्यान भटकाने की कोशिश की गई थी! यदि ऐसा है तो यह देश के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है और इस प्रकार एक आम नागरिक का विश्वास देश की कानून व्यवस्था से पूरी तरह उठ जाएगा ! इसलिए इस समय मुंबई कि इन हत्याओं को एक उपयुक्त कारण मानकर देश की राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार को इस प्रकार के कदम उठाने चाहिएजिससे देश की कानून व्यवस्था को लागू करने वाली पुलिस तथा अन्य संबंधित संस्थाएं अपने उत्तरदायित्व का निष्पक्षता से निर्वहन कर सकें ! इसके लिए 2006 में देश की उच्चतम न्यायालय ने पुलिस सुधारों के रूप में देश की सरकारों को निर्देश दिए थे परंतु पुलिस व्यवस्था पर अपना नियंत्रण रखने के कारण देश की ज्यादातर राज्य सरकारों ने इन सुधारों को लागू ही नहीं किया इस कारण कानून का राज स्थापित करने वाली पुलिस अपने आप को असहाय महसूसकर रही है ! इस स्थिति में देश में इस पर एक गहन मंथन होना चाहिए और देश की लोकसभा में एक विशेष अधिवेशन में इस पर विचार करके कानून व्यवस्था की स्थिति को मजबूत करने के लिए इस प्रकार के प्रावधान किए जाएं जिससे कानून व्यवस्था को लागू करने वाली संस्थाएं अपने कर्तव्य का निष्पक्षता पूर्ण निर्वहन कर सकने में सक्षम हो !
 
परंतु अब तक पिछले 100 दिन में केवल यहीं देखने में आया है की छोटे-मोटे राजनीतिक अपने विचार प्रकट कर रहे हैं और किसी प्रभावशाली राजनेता ने अभी तक इन हत्याओं पर कोई ऐसा बयान नहीं दिया है ! जिससे यह आशा की जा सके कि निकट भविष्य में देश के कानून व्यवस्था को मजबूत बनाया जाएगा जिससे संगठित अपराध समाप्त होकर कानून की नजर में सब देशवासी अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें ! इसको देखते हुए जहां सरकारें तरह-तरह के सुधारों के वायदे कर रही हैं वहां उन्हें देश की कानून व्यवस्था को भी नया रूप समय की मांग के अनुसार देने का प्रयास करना चाहिए !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.