अवचेतन मन का महत्व !

NewsBharati    10-Mar-2021   
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मन के दो प्रकार होते हैं चेतन और अवचेतन मन ! मनुष्य चेतन मन से संसार को देखता है और समझता है तथा अवचेतन मन उसकी सोच का पूरा लेखा-जोखा कंप्यूटर की मेमोरी की तरह एकत्रित करता है ! इसके साथ साथ अवचेतन मन के द्वारा ही मनुष्य का व्यक्तित्व और उसका मानसिक स्वास्थ्य नियंत्रित होता है ! मनुष्य अपनी ज्ञानेंद्रियां-- आंख, कान, नाक और त्वचा के द्वारा देखता और सुनता है इस प्रकार ज्ञानेंद्रियां अपनी सूचनाएं मन तक पहुंचाती हैं ! मन इनके आधार पर अपनी सोच बनाता है ! आज के भौतिक युग में मनुष्य की कामनाएं बहुत बढ़ गई हैं जिन की प्राप्ति के लिए वह दिन रात प्रयत्नशील रहता है !

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कभी कभी अपनी कामनाओं को पूर्ण करने के लिए वह अनैतिक कर्म और पाप भी कर डालता है ! जिसके द्वारा उसके चेतन मन में अनजाना भय और अपराध बोध की भावना जागृत होती है ! हालांकि कुछ समय बाद चेतन मन इनको भूल जाता है परंतु यह सब उसके अवचेतन मन में स्थित हो जाती हैं ! जिनसे उसका दिन प्रतिदिन का व्यवहार और उसका मानसिक स्वास्थ्य निर्धारित होता है ! अक्सर संतुष्ट और संयम से रहने वाले मनुष्य का व्यक्तित्व सकारात्मक होता है वहीं पर मोह और कामनाओं से ग्रस्त मनुष्य विचलित नजर आता है ! और यही विचलन उसे उसके अवचेतन मन के द्वारा मानसिक अवसाद से पीड़ित करना शुरू कर देती !बहुत से लोगों को बुरे और डरावने सपने दिखाई देते हैं ! इन सपनों का भी मूल कारण यही अवचेतन मन है ! विश्लेषण से ज्ञात होता है कि हर सपने के बारे में मनुष्य ने अपने चेतन मन में कभी ना कभी सोचा था ! जिसके कारण यह सपने के रूप में अवचेतन मन ने उसे दिखाया ! इस प्रकार देखा जा सकता है की मनुष्य का अवचेतन मन उसकी हर गतिविधि पर चुपचाप नजर बनाए रखता है ! जिसके बारे में एक साधारण मनुष्य नहीं जानता है !
 
इस प्रकार उपरोक्त विवरण से ज्ञात होता है की मनुष्य के सारे मानसिक विकारों का कारण उसकी सोच और उसके द्वारा निर्मित अवचेतन मन ही है ! इसलिए यदि मनुष्य को मानसिक बीमारियों और डरावने सपनों से बचना है तो सर्वप्रथम उसको अपनी सोच को सकारात्मक बनाना होगा ! इसके लिए मनुष्य को नैतिकता का मार्ग अपनाते हुए संतुष्टि की भावना को जागृत करना चाहिए !विश्व की सारी धार्मिक पद्धतियों में मनुष्य की सोच को सकारात्मक बनाने की अलग-अलग विधियां बताई गई हैं परंतु सनातन धर्म मैं महर्षि पतंजलि ने यम और नियम का मार्ग बताया है ! यम--- अहिंसा, सत्य अपरिग्रह असते और ब्रह्मचर्यतथा नियम- निर्मल मन, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणी धान है! इसमें अपरिग्रह से तात्पर्य है आवश्यकता से ज्यादा एकत्रित ना करना और असते चोरी न करना ! निर्मल मन के लिए क्षमा सबसे बड़ा साधन है जिसके द्वारा हम दूसरों के प्रति गिले-शिकवे को मिटाकर मन को निर्मल कर सकते हैं ! मानस के अनुसार भगवान को भी निर्मल मन ही भाता है ! निर्मल मन के बारे में मानस में कहा गया है --- निर्मल मन तेही जन मोहि पावा ! छल छिद्र मोहे कपट न भावा !
 
उपरोक्त के अलावा यहां पर सबसे महत्वपूर्ण है की जीव जब मृत्यु के समय अपना शरीर छोड़ता है तब उसका सूक्ष्म शरीर दूसरे जन्म में उसके साथ जाता है ! इस सूक्ष्म शरीर में जीव की आत्मा और अवचेतन मन दोनों होते हैं ! इस प्रकार अवचेतन मन के द्वारा जीव का अगला जन्म भी प्रभावित होता है ! इसको देखते हुए अपने कल्याण के लिए मनुष्य को अपनी सोच को सकारात्मक बनाते हुए स्वस्थ अवचेतन मन का निर्माण करना चाहिए जिससे उसका यह जीवन और अगला जीवन आनंदमई हो !
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