कोरोना महामारी के द्वारा मानवता के लिए उत्पन्न खतरे को देखते हुए विश्व में जैविक हथियारों के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ के दखल की आवश्यकता

NewsBharati    12-May-2021   
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देश के समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर ब्रिटेन के समाचार पत्र द सन के हवाले से एक खबर छपी है कि 2015 से चीन के रक्षा वैज्ञानिक कोरोना वायरस को जैविक हथियार के रूप में प्रयोग के बारे में विचार कर रहे थे और इसको प्रयोग में लाने के लिए बुहान स्थित प्रयोगशाला में वायरस तैयार किया गया था ! इस तरह का एक दस्तावेज अमेरिकी विदेश विभाग के हाथ लगा है ! इसमें कहा गया है कि 2003 में चीन में सारस नाम की एक महामारी फैली थी जिसमें कोरोना वायरस मौजूद था ! इसी बीमारी के वायरस को चीनी वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के रूप में परिवर्तित करके बुहान प्रयोगशाला में इसे रखा जा रहा था! जहां से यह किसी कारणवश लीक हो गया जिसने पूरे विश्व की मानवता के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है! इस प्रकार देखा जा सकता है की जैविक हथियार कितने विनाशकारी होते हैं और इनकी पहुंच भौगोलिक सीमाओं की परवाह नहीं करती ! इसका तात्पर्य हुआ इनसे पूरे विश्व की मानवता को खतरा उत्पन्न हो जाता है जैसा कि कोरोना में देखने में आ रहा है ! जैविक हथियारों की अनजानी मारक क्षमता के कारण पूरे विश्व में एक अनजाना भय फैल जाता है जिसके कारण जनजीवन ठहर कर सब अस्त-व्यस्त हो जाता है ! इसलिए आवश्यकता है कि शीघ्र अति शीघ्र विश्व में मानवता की सुरक्षा के लिए जैविक हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण लगाया जाना चाहिए !

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लंबे समय से पूरा विश्व रासायनिक जैविक तथा परमाणु हथियारों के व्यापक विनाश को देखते हुए इन पर अंकुश लगाने पर विचार कर रहा है ! इसलिए प्रथम युद्ध के फौरन बाद 1925 में जेनेवा में विचार विमर्श किया गया और जैविक और रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए जेनेवा प्रोटोकॉल के नाम से एक संधि बनाई गई ! इस प्रोटोकॉल में जैविक हथियारों को बनाने तथा रखने पर कोई प्रतिबंध नहीं था इसमें केवल प्रथम प्रयोग पर प्रतिबंध था! ! इस प्रोटोकॉल में इन हथियारों के निर्माण या भंडारण पर ना तो कोई विचार किया गया और ना ही प्रतिबंध लगाया गया और ना ही संदेह की स्थिति में संबंधित देश में जांच का कोई प्रावधान था ! इसलिए यह प्रोटोकॉल जैविक और रसायनिक हथियारों को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही !जिसके परिणाम स्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध में देशों ने जैविक, रसायनिक और परमाणु हथियारों का खुलकर प्रयोग किया ! परंतु जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम के द्वारा हुए महाविनाश को देखते हुए शीघ्र अति शीघ्र राष्ट्र की स्थापना की गई ! जिसमें परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध के प्रावधान किए गए !
 
परंतु राष्ट्र संघ में अभी तक जैविक और रासायनिक हथियारों के बारे में कभी कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया है ! इसको देखते हुए 1969 में इंग्लैंड में जैविक हथियारों को रोकने के लिए विचार-विमर्श शुरू हुआ और 1972 में निर्णय लिए गए जिसमें जैविक हथियारों को बनाने भंडारण करने और इस्तेमाल पर रोक लगाने के प्रावधान किए गए !और 5 अगस्त 1972 को अमेरिका सोवियत संघ और इंग्लैंड तीनों महा शक्तियों ने इन प्रावधानों को स्वीकार करते हुए इसे एक अंतरराष्ट्रीय संधि का नाम दिया गया ! 26 मई 1975 को इसे विधिवत विश्व के 22 देशों ने मान्यता प्रदान की ! इस संधि को विश्व के 183 देशों ने इस समय तक स्वीकार किया हुआ है ! परंतु इस संधि में भी इन जैविक हथियारों के निर्माण भंडारण और प्रथम इस्तेमाल पर रोक की बात तो की गई है परंतु इसमें कहीं पर भी संदेह की स्थिति में संबंधित देश के विरुद्ध जांच का कोई प्रावधान नहीं है ! जिसके द्वारा यह पता लगाया जा सके कि संबंधित देश इस प्रकार की गतिविधियों में लिप्त है या नहीं ! इसी कारण अब तक पूरा शक होने के बावजूद चीन के विरुद्ध जांच के कोई कदम नहीं उठाए गए है !
 
1925 के जेनेवा प्रोटोकॉल और 1972 की इंग्लैंड संधि को लागू करवाने के लिए कोई संस्थागत ढांचा नहीं है जिसके द्वारा दोषी देश के विरुद्ध आर्थिक और सामाजिक प्रतिबंधों के द्वारा उसे इनहथियारों से दूर रखा जा सके ! इसी कारण अब तक चीन के विरुद्ध कोई विधिवत जांच या कार्यवाही का कोई कदम नहीं उठाया जा सका है ! संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आतंकवाद, परमाणु हथियार तथा इसी प्रकार की अन्य मानव विरोधी कार्रवाइयों पर नियंत्रण के प्रावधान है जिनके उल्लंघन पर दोषी देश के विरुद्ध आर्थिक और सामाजिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं ! जैसे आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय फाइनेंसियल टास्क फोर्स आतंकवाद को बढ़ावा और फैलाने वाले देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसे उसकी गलत गतिविधियों से रोक देते है ! जैसा कि आजकल पाकिस्तान के विरुद्ध फाइनैंशल टास्क फोर्स कर रही है ! इंग्लैंड की संधि में केवल यही कहा यही कहा गया है की जैविक हथियारों के निर्माण भंडारण और प्रथम यूज को रोका जाए परंतु इसमें दोषी देश के विरुद्ध किसी प्रकार की आर्थिक या अन्य कार्यवाही का कोई प्रावधान नहीं है ! इसलिए इस संधि को भी 1925 के जेनेवा प्रोटोकॉल की तरह किसी ने गंभीरता से नहीं लिया है ! अब समय आ गया है जब संयुक्त राष्ट्र संघ में कोरोना के महाविनाश को देखते हुए जैविक हथियारों पर गंभीरता से चर्चा की जानी चाहिए ! और इस चर्चा के बाद जैविक हथियारों हत्यारों को रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए जाने चाहिए ! जिनमें संबंधित देश में जांच इत्यादि के प्रावधान हो और एक नियत समय सीमा में इन पर कार्यवाही का भरोसा दिलाया जाना चाहिए ! दोषी पाए जाने पर संबंधित देश का पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा देश पूरी मानवता के लिए एक खतरा बन सकता है !
 
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अब बदलते हुए समय में देशों के बीच में पुराने समय जैसा परंपरागत आमने सामने का युद्ध नहीं होगा ! इसके स्थान पर आर्थिक सामाजिक और कोरोना वायरस जैसा जैविक युद्ध ही लड़ा जाएगा ! जिसमें एक देश दूसरे देश को आसानी से जान माल की बड़ी क्षति पहुंचा सकते हैं ! इसी प्रकार जैविक युद्ध भी दुश्मन देश दूसरे देश में आसानी से फैला सकता है जैसा कि अभी-अभी कोरोना वायरस के रूप में चीन द्वारा किया गया है ! हालांकि इस समय जिस प्रकार चीन में भी कोरोना वायरस के कारण वहां की जनता की मौत हुई है इससे साफ जाहिर होता है की चीन की बुहान प्रयोगशाला से यह वायरस एक एक्सीडेंट के रूप में फैला परंतु यह विचार का विषय है की चीन ने इस वायरस का निर्माण अपनी प्रयोगशाला में किया ! जिस प्रकार हिरोशिमा और नागासाकी के बाद पूरा विश्व परमाणु हथियारों के विरुद्ध खड़ा हुआ था आज वही स्थिति कोरोना वायरस के बाद जैविक हथियारों के विरुद्ध भी है ! विश्व का हर व्यक्ति इसके विरुद्ध कार्यवाही चाहता है ! इसलिए अब समय आ गया है जब संयुक्त राष्ट्र संघ में जैविक हत्यारों को रोकने के लिए विस्तृत चर्चा की जानी चाहिए और इस प्रकार के संस्थागत प्रावधान किए जाने चाहिए जिनसे इन पर रोक लगाई जा सके !
 
सर्वप्रथम जैविक हथियारों के निर्माण भंडारण और प्रयोग पर पूर्ण पाबंदी लगाई जानी चाहिए इसके अतिरिक्त किसी देश के विरुद्ध संदेह होने पर शीघ्र अति शीघ्र जांच के भी प्रावधान होना चाहिए ! जिससे विशेषज्ञों द्वारा यह स्थापित किया जा सके कि संबंधित देश ने इस प्रकार के जैविक हथियार बनाए हैं नहीं ! यदि कोई देश दोषी पाया जाता है उस स्थिति में प्रावधानों के अनुसार उसके खिलाफ सख्त आर्थिक और सामाजिक कार्यवाही की जानी चाहिए ! जिससे दोषी देश दोबारा इस प्रकार की हिम्मत ना कर सके ! संस्थागत ढांचे के अभाव में 1925 का जेनेवा प्रोटोकॉल और 1972 की इंग्लैंड की संधि जिस प्रकार नाकारा साबित हुई है उस प्रकार हमें इन प्रावधानों को संयुक्त राष्ट्र के द्वारा लागू करवा कर इन्हें प्रभावशाली तथा जैविक हथियार जैसे मानवता के दुश्मन और विनाशकारी शक्तियों को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिए ! जैविक हथियारों के महाविनाश को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में महा शक्तियों की बीटो की कार्रवाई पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए अन्यथा जिस प्रकार चीन द्वारा पाकिस्तान को फाइनेंसियल टास्क फोर्स से बचाया जा रहा है उसी प्रकार हो सकता है इसी प्रकार कोई महाशक्ति अपने प्रिय देश को बचाने का प्रयास करें ! इस समय विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले देशों को एकत्रित होकर एक स्वर में जैविक हथियारों के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ में चर्चा करनी चाहिए और इसके लिए शीघ्र अति शीघ्र संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर उसी प्रकार शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए जिस प्रकार 1945 में परमाणु बम के समय की गई थी !
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