पुजारी पढेंगे मंदिर प्रबंधन का पाठ - भारत के बहुसंख्यक-समाज की उन्नति की दिशा में उठाया गया कदम!

अखिल भारतीय संत समिति वह श्री काशी विद्युत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा और दैनिक जागरण की ओर से आयोजित संस्कृति संसद में निर्णय लिया गया कि देवालयों को पूरी तरह आत्मनिर्भर तथा समाज को सही मार्गदर्शन देने के लिए अब पुजारी और धर्मगुरु इन पूजा स्थलों पर अपनी सेवाएं देने से पहले उन्हें त्रैमासिक सर्टिफिकेट व 1 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करके ही धर्म स्थानों में वे अपनी सेवा दे सकते हैं

NewsBharati    13-Jan-2022 14:11:17 PM   
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प्रजातंत्र में संविधान और उसके अनुसार बनाए हुए नियम कानूनों के द्वारा शासन व्यवस्था उस देश के निवासियों के आचरण और रहन सहन को नियंत्रित करती है ! उसी प्रकार उस देश में रहने वाले मनुष्यों के विचारों और उसके दृष्टिकोण को उचित दिशा देने के लिए धार्मिक संस्थान होते हैं ! इनमें काम करने वाले धर्मगुरु श्रद्धालुओं को शास्त्रों और समय के अनुसार जीवन जीने की शिक्षा देते हैं ! परंतु ज्यादातर सनातन धर्म के धर्म स्थानों में वहां पर सेवा करने वाले पुजारी और धर्म गुरु इस धर्म के शास्त्रों और शिक्षाओं की पूरी जानकारी नहीं रखते जिसके कारण अक्सर श्रद्धालुओं को शास्त्रों के अनुसार शिक्षा और मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है !लंबे समय से इसकी कमी महसूस की जा रही थी इसको देखते हुए अखिल भारतीय संत समिति वह श्री काशी विद्युत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा और दैनिक जागरण की ओर से आयोजित संस्कृति संसद में निर्णय लिया गया कि देवालयों को पूरी तरह आत्मनिर्भर तथा समाज को सही मार्गदर्शन देने के लिए अब पुजारी और धर्मगुरु इन पूजा स्थलों पर अपनी सेवाएं देने से पहले उन्हें त्रैमासिक सर्टिफिकेट व 1 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करके ही धर्म स्थानों में वे अपनी सेवा दे सकते हैं ! यह निर्णय उस समय लिया गया जब काशी में आयोजित उपरोक्त संस्कृति संसद में मंदिरों और धर्म संस्थानों की स्वतंत्रता की मांग उठाई गई थी ! इस पर हिंदू धर्म के वरिष्ठ धर्मगुरुओं ने विचार करके यह निर्णय लिया की मंदिरों को स्वतंत्र बनाने के लिए उनको चलाने वाले पुजारी और धर्मगुरुओं को सनातन धर्म के ग्रंथों की पूरी योग्यता और पूजा पद्धति के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए ! जिससे वे मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का सनातन धर्म के विचारों के अनुसार उनका सही मार्गदर्शन कर सकें !
 

Sant samiti 
 
इस प्रशिक्षण के लिए विद्यालय काशी में खोला जा रहा है और इस संस्थान की संबद्धता संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से होगी ! इसकी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी क्योंकि बहुत से धर्म स्थानों की व्यवस्था और वहां के पुजारियों की योग्यता को देखते हुए सनातन धर्म के इन पूजा स्थलों की प्रतिष्ठा को ठेस लग रही थी ! अक्सर इन धर्म स्थानों में सनातन धर्म की व्यापक ज्ञान को उचित प्रकार से श्रद्धालुओं को नहीं दिया जा रहा था इसी के साथसाथ बहुत से धर्म स्थानों में वहां के पुजारी स्वयं को अघोषित भगवान के रूप में श्रद्धालुओं से अपनी पूजा करा रहे थे ! इसके अतिरिक्त बहुत से संस्थानों में बेतहाशा धन दौलत एकत्र होने के कारण उसका उपयोग मानव कल्याण के स्थान पर इस धन का उपयोग तरह-तरह के अनैतिक कार्यों के लिए किया जा रहा था जैसा कि अभी कुछ समय पहले ही प्रयागराज में एक धर्म स्थान में वहां के महंत की हत्या इसी प्रकार के षड्यंत्र में कर दी गई ! इसी प्रकार हरियाणा के सिरसा में राम रहीम ने अपने आश्रम में बेतहाशा धन दौलत और स्त्रियों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर रखा हुआ था और उनके साथ तरह-तरह के संबंध बनाकर विश्व के इस सबसे पुरातन और उत्तम सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई ! इस प्रकार की गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय मीडिया पूरे विश्व में नकारात्मक रूप में प्रस्तुत कर रहा है और मीडिया यह दिखाने की कोशिश कर रहा था यह बहुत ही अव्यवस्थित और अंधविश्वासों पर चलने वाला धर्म है !
 
ईसाई धर्म के प्रमुखता दो मार्ग है जिनको कैथोलिक और प्रोटेस्टंट के नाम से पुकारा जाता है ! कैथोलिक का संचालन और इसके पादरियों की नियुक्ति रोम के वेटिकन में स्थित पोप जॉन पौल के द्वारा की जाती है वहीं पर प्रोटेस्टंट का मुख्य केंद्र इंग्लैंड है ! उसमें पादरियों की नियुक्ति इंग्लैंड के महाराजा या महारानी के द्वारा की जाती है ! इन दोनों में नियुक्ति से पहले पादरी की योग्यता अनिवार्य मानी जाती है !इसलिए पश्चिमी देशों में जहां पर ज्यादातर ईसाई धर्म प्रचलित है वहां पर इस धर्म के पूजा स्थलों में व्यवस्था के अनुसार ही पूरी तरह से प्रशिक्षित पादरियों कोनियुक्त किया जाता है !इसलिए गिरजाघरों में पवित्र बाइबल के अनुसार ही श्रद्धालुओं कोउपदेश दिए जाते हैं और यह पादरी गिरजाघर में एकत्रित धन का पूरा हिसाब किताब अपने मुख्यालयों को देते हैं ! जहां से इनका उपयोग जन कल्याण के लिए शिक्षा संस्थानों और अस्पतालों के लिए किया जाता है !इसलिए ईसाई समुदाय के स्कूलों में बच्चों को शिक्षा दिलवाने में हर व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है !
 
परंतु लंबी गुलामी के बाद आजाद हुए देशों में प्रजातंत्र की विवेचना में नागरिक की धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है ! जिसके कारण बहुत से छद्म धर्मगुरु इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हुए इन धर्म स्थानों में अपने बनाए हुए नियम कानूनों के द्वारा पूरे समाज को गलत विचार और जीवन जीने की पद्धति बताते हैं ! इस कारण अंधविश्वासों के साथ-साथ उस धर्म या संप्रदाय की गरिमा को भी ठेस पहुंचाते हैं ! सनातन धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है और विश्व में मनुष्य जाति के शुरू होते ही इस धर्म की भी शुरुआत हुई ! इसलिए इसका नाम सनातन धर्म है, क्योंकि ना इस के आदि और ना ही इसके अंत के बारे मेंकुछ कहा जा सकता है ! इसलिए इसका नाम सनातन धर्म है ! इस धर्म में अध्यात्म का भंडार वेदों पुराणों, गीता और रामचरितमानस के रूप में भरा हुआ है ! इसके धर्म ग्रंथों में कहीं पर भी किसी धर्म या संप्रदाय विशेष का नाम नहीं लिया गया है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश पूरी मानव जाति का कल्याण है ! आज के समाज में जहां चारों तरफ मनुष्य जाति बदलते समय के प्रभाव के कारण तरह-तरह के मानसिक रोगों से पीड़ित है यदि इस समय में सनातन धर्म के ग्रंथों के अनुसार समाज का मार्गदर्शन योग्य धर्मगुरु के द्वारा किया जाए तो ज्यादातर मनुष्य मानसिक बीमारियों से बच सकते हैं ! क्योंकि ज्यादातर मानसिक बीमारियां मनुष्य के गलत सोच, अनैतिक व्यवहार और समाज के गलत स्वरूप के कारण होती है ! यदि इस स्थिति में समाज को उच्च कोटि का आध्यात्मिक ज्ञान सुयोग धर्म गुरुद्वारा मिलना शुरू हो जाएगा तो इससे मानव जाति का कल्याण होगा जिसके कारण समाज का हर प्राणी नैतिकता से व्यवहार करेगा इस प्रकार देश और समाज की उन्नति होगी ! यही सनातन धर्म का मुख्य उद्देश्य है !
 
आजकल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु संरक्षण के लिए बहुत सी बैठक और तरह-तरह विचार विमर्श इसके संरक्षण के लिए नियम कानून बनाए जा रहे हैं जिनमें वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए जल और वायु में प्रदूषण को घटाने की बातें की जा रही है ! परंतु सनातन धर्म में आदि काल से जलवायु संरक्षण के लिए मानव जाति को निर्देश दिए गए ! जलवायु को संरक्षण के लिए ही नदियों को मां का स्थान दिया है और पूरी प्रकृति को मनुष्य की प्रकृति मां के रूप में बताया गया है ! इसलिए पूरी प्रकृति और इसकी जलवायु के संरक्षण की बातें आदिकाल से सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में बताई गई है ! इस दृष्टि से यदि इन धर्म ग्रंथों की उचित शिक्षा भारतीय समाज को प्राप्त होती है तो समाज का हर व्यक्ति स्वयं ही नदियों को और जलवायु को स्वच्छ रखने की कोशिश करेगा और जगह जगह प्रदूषण पर लगाम लगेगी !
 
सेना एक ऐसी संस्था है जहां पर सैनिकों के हर प्रकार की आवश्यकताओं को खुले रुप में स्वीकार करके उन्हें एक नियम कानून के अनुसार पूरा करने का पूरा प्रबंध किया जाता है ! इसीलिए सैनिकों की आध्यात्मिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सेना में हर धर्म के धर्म गुरुओं का प्रबंध किया जाता है ! सैनिकों की संख्या के अनुसार यह धर्म गुरु-- हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई सभी धर्मों से होते हैं ! इन धर्म गुरुओं की सेना में नियुक्ति के लिए उनकी धार्मिक शिक्षा के मानक तय किए गए हैं ! जिनके अनुसार ही सेना में धर्म ग्रुप के पद पर नियुक्ति होती है ! नियुक्ति के बाद धर्म गुरुओं को पुणे के अंदर सेना के संस्थान में सेना के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है ! जिसके बाद वह सैनिकों की पूरी जीवन प्रणाली और उनसे देश की आशाओं के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करके यह धर्म गुरु सैनिकों को उनके कर्तव्य के अनुसार अध्यात्म के बारे में इस प्रकार शिक्षा देते हैं की सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए सच्चे मन और त्याग की भावना से अपने प्राण तक अर्पित कर देता है ! इसी आध्यात्मिक बल के कारण हमारी भारतीय सेना ने पाकिस्तानी और चीनी सेना के पास आधुनिकतम हथियारों के होने के बावजूद भी उन्हें बुरी तरह से हराया ! 1965 में असल उत्तर और फ्लोरा के मैदानों में भारतीय सैनिकों ने अपने पुराने हत्यारों के साथ द्वारा ही पाकिस्तान के 120 और 60 अमेरिकी आधुनिकतम टँको कोअपने पुराने हथियारों से ही बर्बाद करके उसे करारी हार दी !
 
उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है की संविधान और कानून व्यवस्था के प्रावधानों को शासन तंत्र के द्वारा लागू करने के साथ-साथ देश के हर संप्रदाय के मनुष्यों को उचित प्रकार की आध्यात्मिक शिक्षा उनके धर्म गुरुओं द्वारा दी जानी चाहिए इसके लिए मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में अपनी सेवा देने वाले धर्म गुरुओं के लिए भी शैक्षिक योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए ! यह स्वागतयोग्य है की देश की 80 फीसद हिंदू आबादी को धर्म ग्रंथों में पारंगत धर्म गुरुओं के द्वारा आध्यात्मिक शिक्षा मिलेगी ! इससे उनका स्वयं कल्याण के साथ-साथ वह अपना योगदान देश के कल्याण में भी देंगे ! इससे पूरे देश, समाज और मनुष्य जाति का स्वयं का कल्याण भी होगा !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.