देश में जांच आयोग रूपी मरहम

गुजरात में मोरबी नदी पर घटित हृदय विदारक घटना जिसमें करीब 140 बेकसूर लोग मौत के मुंह में समा गए हैं जिससे पूरे देश की जनता दुखी और आक्रोशित है उसी तरह से जांच आयोग की घोषणा इस की जांच के लिए घोषित कर दी गई है जिससे कि जनता के घांवों पर मरहम लगाया जा सके

NewsBharati    04-Nov-2022 17:10:32 PM   
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अक्सर हमारे देश में मानवीय कारणों से जब कोई बड़ी दुर्घटना या सांप्रदायिक दंगे होते हैं तो सरकारें देश की जनता के आक्रोश और गुस्से को शांत करने के लिए जांच आयोग की घोषणा करती है ! बैसे तो इन जांच आयोग का उद्देश्य यह होना चाहिए कि घटना के दोषियों की पहचान और कमियों का पता लगाना जिन को दूर करके भविष्य के लिए सावधानी बरती जा सके जिससे उसी प्रकार की घटना दोबारा घटित ना हो ! परंतु इन जांचों में अक्सर शासन तंत्र का हाथ और अनदेखी ही सामने आती है जिसके कारण शासन तंत्र इन जांच रिपोर्टों को संवेदनशील बताकर दबा देता है जिससे इन जांचों का असली उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता ! इसी क्रम में अब गुजरात में मोरबी नदी पर घटित हृदय विदारक घटना जिसमें करीब 140 बेकसूर लोग मौत के मुंह में समा गए हैं जिससे पूरे देश की जनता दुखी और आक्रोशित है उसी तरह से जांच आयोग की घोषणा इस की जांच के लिए घोषित कर दी गई है जिससे कि जनता के घांवों पर मरहम लगाया जा सके !

GUjarat Morbi bridge collapse ENQUIRY COMMISSIONS WORKING
 
 
प्रजातंत्र में देश की शासन व्यवस्था जनता केचुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा ही संचालित होती है इसलिए शासन व्यवस्था की कमियों के बारे में भी जनता को जानने का पूरा हक है ! और इन्हीं कमियों को जांच आयोगों द्वारा ढूंढा जाता है! परंतु दुर्भाग्य सेआज तक आजादी के बाद से मानवीय कारणों से घटित दुर्घटनाओं पर गठित जांच आयोग की रिपोर्ट देश की जनता की सूचना के लिए सार्वजनिक नहीं की गई है ! जैसे 1962 में चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र के अक्साई चीन में भारत की 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन ने कब्जा कर लिया था ! 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार क्यों करना पड़ा, इसके बाद 1990 में चार लाख कश्मीरी पंडितों का विस्थापन क्यों हुआ, 1999 में कारगिल की पहाड़ियों में पाकिस्तानी घुसपैठ किस कारण हुई !

देश की आंतरिक सुरक्षा को सीधे-सीधे चुनौती देने के लिए 2013 में मुजफ्फरनगर में इतनी भीषण दंगे तथा 2019 में साइन बाग धरना प्रदर्शन एवं दिल्ली दंगे उस समय हुए जब विश्व की महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति दिल्ली का दौरा कर रहे थे और इसी प्रकार की अनेक घटनाएं देश में यदा-कदा होती रहती है ! जिनके कारण अक्सर जनता में असंतोष और शासन तंत्र के प्रति अविश्वास बढ़ने लगता है इस पर फौरी मरहम लगाने के लिए सरकारें जांच आयोग गठित करती हैं जिनमें संबंधित विषयों के विशेषज्ञ विशेष तौर पर सम्मिलित किए जाते हैं ! परंतु आज तक किसी भी जांच आयोग की रिपोर्ट जनता की सूचना के लिए सार्वजनिक नहीं की गई है ! हां खाना पूर्ति के लिए संबंध विभाग के मंत्रियों ने विधानसभा और लोकसभा में इन रिपोर्टओं पर बयान देखकर खानापूर्ति कर ली थी ! इस प्रकार देखा जा सकता है कि जांच आयोग जनता के आक्रोश और उत्तेजना को शांत करने के लिए गठित किए जाते हैं गलतियों को ढूंढने के लिए नहीं जिनके कारण यह घटनाएं घटित होती हैं !

1962 के युद्ध में चीन ने लद्दाख में अक्साई चीन के 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था जो अब तक उसके कब्जे में है ! इसकी भूमिका तब से बनने लगी थी जब चीन ने 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था ! इसके बाद वह भारत तिब्बत सीमा के पार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने लगा था जिससे भारतीय सेना को साफ-साफ संदेश मिलने लगे थे की चीन भारत के सीमावर्ती क्षेत्र पर कब्जा करने वाला है !

इसको देखते हुए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल थिमैया ने बार-बार रक्षा मंत्री के समय नेता प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मांग की थी कि सेना की तैयारी के लिए उन्हें संसाधन दिए जाएं परंतु उनकी मांग को इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख मौलिक तथा कृष्ण की सलाह पर प्रधानमंत्री द्वारा तुकरा दिया गया था ! इससे खिन्न होकर 1958 मेंजनरल थिमैया नेअपना त्यागपत्र सरकार को सौंप दिया था ! इस समय मौलिक इतने प्रभावशाली हो गए थे कि वह सेना के अग्रिम पंक्ति के अधिकारियों को सीधे-सीधे देने लगे थे ! इसी के द्वारा मलिक ने सूचना एकत्रित करने के लिए सेना को अग्रिम पंक्तिरक्षा प्रणाली अपनाने के लिए आदेश दिए ! इस योजना के लिए सेना बिल्कुल तैयार नहीं थी, क्योंकि इसके अंतर्गत दोनों सेनाओं के बीच में नो मैंस लैंड कहीं जाने वाली जमीन पर सैनिक चौकियां स्थापित की जानी थी !

परंतु मौलिक के दबाव में सेना ने इस पद्धति को अपनाया ! इससे चीनियों को यह साफ-साफ संदेश गया कि भारत आक्रामक मुद्रा में है जबकि इन चौकियों के पास में लड़ने की क्षमता बिल्कुल नहीं थी, और यह केवल एक सूचना एकत्रित करने के लिए मौलिक द्वारा लगाई गई थी क्योंकि इंटेलिजेंस ब्यूरो को केंद्रीय सरकार को दुश्मन की इंटेलिजेंस देनी होती है ! भारतीय सेना के इस प्रकार के बदलते व्यवहार को देखते हुए चीन ने अचानक अक्टूबर 1962 में भारत की सीमाओं पर लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भयंकर हमला कर दिया ! इस समय भारतीय सेना इस हमले के लिए तैयार नहीं थी फिर भी भारतीय सैनिकों ने चीनी हमले का बहादुरी से मुकाबला किया परंतु संसाधनों की कमी के कारण वह चीनी हमले का मुकाबला नहीं कर सकी जिसके कारण भारत को हार का सामना करना पड़ा ! और उसका एक बड़ा भूभाग जिसे अक्साई चीन के नाम से पुकारा जाता है वह चीनी कब्जे में चला गया !

इस युद्ध के बाद पूरे देश का मनोबल गिर गया था इसको देखते हुए तत्कालीन सरकार ने लेफ्टिनेंट जनरल हेंडरसन बुटबॉक्स की अध्यक्षता में जांच कमेटी नियुक्त की जिसके ब्रिगेडियर पीएस भगत सदस्य थे ! इस कमेटी को निर्देश थे कि वह यह पता लगाएं कि किन कारणों से भारतीय सेना की हार हुई है ! इस कमेटी ने सरहदों पर जाकर के और दिल्ली में भारत चीन सीमा से संबंधित सारे रिकॉर्ड को छानबीन के बाद यह पाया कि पिछले काफी समय से चीनी हमले की आशंका थी ! परंतु रक्षा मुख्यालय के नौकरशाहों ने इन संकेतों की अनदेखी की तथा मौलिक जैसे लोगों ने सेना की कार्यप्रणाली में दखल दिया जिस कारण सेना की कमान में अव्यवस्था फैली और भारत को हार का सामना करना पड़ा ! इस रिपोर्ट मैं दिए गए तथ्यों को देखते हुए रक्षा मंत्रालय के नौकरशाहों और तत्कालीन रक्षा मंत्री ने इस रिपोर्ट को अति गोपनीय श्रेणी में डाल दिया जिसके कारण से यह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है हालांकि इसको सार्वजनिक करने के लिए बार-बार भारत की लोकसभा में मांग उठती रही है !

 जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी उस समय स्वर्गीय अरुण जेटली ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए पार्लियामेंट में मांग की थी जिसे सरकार ने गोपनीय करार देते हुए सार्वजनिक नहीं किया था ! परंतु यही अरुण जेटली जब देश के रक्षा मंत्री बने तब विपक्ष ने यही मांग उठाई कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए तब अरुण नेहरू ने स्वयं पुरानी सरकार का दिया हुआ जवाब दोबारा दोहरा दिया और इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया ! इसका एक ही कारण था कि देश की नौकरशाही और राजनीतिक नेतृत्व इस युद्ध की हार का प्रमुख कारण थे !अभी कुछ समय पहले इंग्लैंड के एक न्यायालय में वहां के एक प्रसिद्ध पत्रकार ने एक याचिका डाली है जिसमें उसने मांग की है कि भारत में किए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार से संबंधित फाइलें सार्वजनिक की जानी चाहिए क्योंकि उसके अनुसार भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए किए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार में इंग्लैंड की भूमिका भी थी !

अबइसको देखते हुए भारत में भी ब्लूस्टार से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक किए जाने की मांग उठ रही है ! क्योंकि इन फाइलों से यह पता चल सकता है कि वह क्या कारण थे जिनकी वजह से देश की आंतरिक सुरक्षा में इतना बड़ा ऑपरेशन करना पड़ा और सिखों के सबसे धार्मिक स्थान स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सेना को टँको और तोपखाने के साथ वहां पर प्रवेश करना पड़ा ! जिसके कारण पूरे देश में हिंदू सिखो में तनाव उत्पन्न हुआ तथा इन दोनों संप्रदायों में मनमुटाव पैदा करने की कोशिश की गई ! ऑपरेशन ब्लू स्टार की तरह ही 2013 में मुजफ्फरनगर में बहुत बड़े रूप में सांप्रदायिक दंगे हुए जिनके कारण पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 10000 करोड़ की निजी और पब्लिक संपत्ति का नुकसान हुआ और 50000 लोग अपने घरों से विस्थापित हुए ! इसके कारणों की जांच के लिए भी जस्टिस सहाय जांच आयोग गठित किया गया था परंतु इसमें नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों की पूरी भागीदारी और कमियां देखते हुए यह रिपोर्ट अभी तक भी सार्वजनिक नहीं की गई है !

प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अनुसार देश के शासन तंत्र की बागडोर राजनीतिज्ञों जो जनता के प्रतिनिधि के हाथों में होती है इन राजनीतिज्ञों की देखरेख और निर्देशों पर नौकरशाह शासन तंत्र को चलाते हैं इसलिए ज्यादातर दुखद घटनाओं में शासन तंत्र में बैठे हुए नौकरशाहों की नाकामी और भ्रष्टाचार सामने आता है जिसके तार सत्तारूढ़ राजनीतिक से भी जुड़े होते हैं ! इसलिए दोनों अपनी कमियों को जनता से छुपाने के लिए रिपोर्टों को सार्वजनिक नहीं होने देते ! 1962 के युद्ध में भारत की हार में मुख्य भूमिका तत्कालीन रक्षा मंत्री मेनन और आईबी प्रमुख मौलिक तथा रक्षा मंत्रालय के बाबुओं की पाई गई थी जिसमें उन्होंने सेना प्रमुख कि चीन के हमले के बारे में चेतावनी और इससे निपटने के लिए सुझावों को नहीं माना था !ऑपरेशन ब्लू स्टार की भूमिका केवल कुछ राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रची गई थी जिसके कारण यह मसला इतना विकराल हो गया किइस को नियंत्रित करने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसा आप्रेशन सेना को करना पड़ा !इसी राजनीतिक चक्रव्यूह में भिंडरावाले जैसे आतंकवादी देश में पैदा हो गई जिन्होंने पंजाब में पाकिस्तान की शह आतंकवाद फैलाया इन्होंने पंजाब को भारत से अलग करने के सपने भी देखें !

परंतु पंजाब के लोगों की राष्ट्रवादी भावनाओं के कारण इस पाकिस्तान की चाल पर भी काबू पाया गया और आखिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के द्वारा पंजाब के आतंकवाद को पूरी तरह से दफन कर दिया गया ! परंतु इसके असली कारणों का पूरा लेखा-जोखा भारत की जनता के सामने पेश नहीं किया गया है ! अक्सर सरकारें जांच आयोगों को अपनी जांच को काफी देर से पूरा करने देती हैं !इसमें जानबूझकर इसलिए देरी की जाती जिससेजनता पुरानी घटना के बारे में भूल जाए और इसी बीच में कोई नई घटित घटना के बारे में सोचने लगे ! जैसे कि 1962 युद्ध के बाद 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हो गया था ! इसी प्रकार सांप्रदायिक दंगों के बाद भी देश में अन्य तरह की प्राकृतिक और सांप्रदायिक घटना घट जाती है और जनता पुराने दंगों को भूल जाती है !

उपरोक्त विवरण से यह साफ हो जाता है की जनता के धन पर जो जांच आयोग गठित किए गए उनके द्वारा पाए गए तथ्यों का पूरा प्रयोग देश का शासन तंत्र नहीं करता है ! यदि ऐसा किया जाता तो आज देश में मोरबी जैसी दुखद घटना दोबारा गठित ना होती ! क्योंकि इससे पहले भी कई पुल इसी प्रकार से गिर चुके हैं जिनमें इन योजनाओं का ज्यादातर धन भ्रष्टाचार के द्वारा संबंधित नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के पास पहुंच गया था ! इसलिए सरकारी योजनाओं पर काम करने वाले ठेकेदार या कंपनियां इस कमीशन खोरी के बाद जो धन बसता है उसमें से थोड़े से धन से इन योजनाओं को मानकों से बहुत नीचे पूरा करते हैं ! इसी प्रकार मोरबी नदी के इस पुल की भी पूरी तरह से ओवरहालिंग कुछ ही समय पहले एक एक प्रसिद्ध कंपनी के द्वारा की गई थी !

परंतु अब मीडिया में आया है कि उस कंपनी ने केवल दिखावे के लिए थोड़ा कार्य किया है बाकी उसका पूरा ढांचा जंग लगे तारों से ही छोड़ दिया गया था ! क्योंकि पुल 140 साल पुराना है इसलिए कमजोर ढांचे के कारण यह मरम्मत के बाद केवल 4 दिन में ही धराशाई हो गया ! दिखावा करने के लिए गुजरात सरकार ने कुछ सुरक्षा गार्डों तथा निम्न श्रेणी के कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया है मगर मुख्य आरोपी अभी भी खुले घूम रहे हैं और घूमते रहेंगे !

अब समय आ गया है कि जब सरकारों को अपनी कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाना होगा जिसके द्वारा देश की जनता सरकार की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए अपने विचार रख सके और यह तभी संभव है जब सरकारें पूरी सूचना ईमानदारी के साथ देश की जनता के साथ साझा करेगी
 
 

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.