सीमा पर भारत और चीन सैनिकों के बीच बार-बार झड़पों में लाठी-डंडे के प्रयोग के कारण रक्षा तैयारियों की कमी के लिए सरकार को घेरने के प्रयास में विपक्ष

इस पर भारत के विपक्षी दल देश की जनता को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत सरकार देश की रक्षा तैयारियों और सेना के लिए हथियारों के लिए प्रयास नहीं कर रही है जबकि सच्चाई यह है की भारत चीन के बीच 1993 की संधि के अनुसार इस क्षेत्र में दोनों देश के सैनिक बिना हथियारो के ही गस्त करेंगे और एक दूसरे से मिलेंगे ! परंतु इस सब को जानते हुए भी आजकल देश के ज्यादातर राजनीतिक दल भारतीय सेना को कमजोर स्थिति में दिखाने के लिए लोकसभा में बहस की मांग कर रहे हैं !

NewsBharati    23-Dec-2022 11:23:16 AM   
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जून 2019 में लद्दाख के गलवान में और अभी कुछ दिन पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारत और चीन सैनिकों के बीच झड़पओ में लाठी-डंडों का प्रयोग किया गया ! इनको देखकर पूरा देश यह आश्चर्यचकित है कि आखिर आज के आधुनिक युग में जहां तरह-तरह के घातक हथियार उपलब्ध है वहां पर मध्यकालीन हथियार लाठी-डंडों का क्यों प्रयोग हो रहा है ! इस पर भारत के विपक्षी दल देश की जनता को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत सरकार देश की रक्षा तैयारियों और सेना के लिए हथियारों के लिए प्रयास नहीं कर रही है जबकि सच्चाई यह है की भारत चीन के बीच 1993 की संधि के अनुसार इस क्षेत्र में दोनों देश के सैनिक बिना हथियारो के ही गस्त करेंगे और एक दूसरे से मिलेंगे ! परंतु इस सब को जानते हुए भी आजकल देश के ज्यादातर राजनीतिक दल भारतीय सेना को कमजोर स्थिति में दिखाने के लिए लोकसभा में बहस की मांग कर रहे हैं !
 
Tawang Clash
 
 
जिससे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की तरह ये सेना के लिए पिटाई जैसे शब्दों का प्रयोग करके इसे मौजूदा सरकार की कमी के रूप में देश के सामने प्रस्तुत कर सकें ! परंतु उन्हें यह पता नहीं है कि इस को हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान और चीन अपनी विजय के रूप में लेकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं ! इस सबसे हमारे सैनिकों का मनोबल गिर सकता है ! यही कुछ भारत दवारा पकिस्तान के विरुद्ध की गई सर्जिकल स्ट्राइक के समय कांग्रेस के नेताओं ने किया था जब उन्होंने इस सर्जिकल स्ट्राइक को झूठा करार देने की कोशिश की थी ! जबकि पाकिस्तान ने स्वयं इस सच्चाई को स्वीकार किया था !और इस स्ट्राइक का ही परिणाम है कि जम्मू कश्मीर क्षेत्र में आतंकियों की घुसपैठ कम हो रही है और आतंकी घटनाओं में भी काफी कमी आई है ! क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा भारतीय सेना ने सीमा से लंबे क्षेत्र में स्थित लांच पेड़ो और कैंपों को सीमा के पास के क्षेत्रों से समाप्त कर दिया था ! परंतु फिर भी कुछ कांग्रेसी नेता इस सर्जिकल स्ट्राइक को भी शक की नजर से देख रहे हैं ! अब यही हाल यह लोग चीन के साथ गलवानो झड़प के बारे में भी कर रहे हैं लोकसभा में बहस की मांग कर रहे है !
 
मई 2019 में चीनी सेना ने लद्दाख के गलवान तथा पैंगोंग झील के आसपास नो मैंस लैंड कहे जाने वाले क्षेत्र में अपने सैनिक कैंप स्थापित करने शुरू कर दिए थे ! इनके द्वारा चीन उस क्षेत्र की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा करके उस क्षेत्र पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रहा था ! इसका भारतीय सेना ने विरोध किया और इस को सुलझाने के लिए दोनों सेनाओं ने गलवान में बातचीत के लिए फ्लैग मीटिंग का आयोजन किया ! इसके लिए 19 जून 2019 में गलवान में दोनों सेनाओं के दल बातचीत के लिए एकत्रित हुए ! इस मीटिंग के समय 1993 की संधि के अनुसार भारतीय सैनिक निहत्थे थे वहीं पर इस संधि का उल्लंघन करते हुए चीनी सैनिक अपनी धोखा देने की आदत के अनुसार अपने साथ छुपाकर कटीले तार लगे हुए लाठी-डंडे लेकर आए हुए थे ! दोनों देशों के दलों में बातचीत शुरू हुई इसके दौरान अचानक चीनी सैनिकों ने भारतीय सेना के दल पर इन लाठी-डंडों से प्रहार शुरू कर दिया ! इसके बाद फौरन भारतीय सेना के बिहार बटालियन के जवानों ने चीनी सैनिकों के लाठी-डंडों को छीन कर इनसे वापस चीनी सैनिकों पर प्रहार किए और उन्हें वहां से बुरी तरह से खदेड़ दिया ! जहां इस मुठभेड़ में इस बटालियन के कमान अधिकारी और 18 जवान शहीद हुए थे वहीं पर चीनी सेना के 4 अधिकारी और उनके 108 सैनिक मारे गए थे !इसी तरह से चीन अपनी आदतों के अनुसार भारतीय सीमा में घुसपैठ करता रहता है और चुपके से भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने का प्रयास करता रहता है ! इसके लिए ही अभी कुछ समय पहले चीन के एक बड़े सैनिक दल ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में घुसपैठ की कोशिश की ! इसको देखते हुए भारतीय सैनिक तैयारी करके लाठी-डंडों के साथ चीनी सैनिकों के मुकाबले के लिए आगे आए ! इस बार भी दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हुई और भारतीय सैनिकों ने लाठी-डंडों के प्रयोग से ही चीनी सैनिकों को वहां से खदेड़ दिया !
 
गलवान और तवांग में झड़पों में लाठी-डंडों के प्रयोग को देखकर अक्सर देशवासी यह सोच रहे हैं कि आखिर इस युग में लाठी-डंडे जैसे मध्यकालीन हथियार का प्रयोग क्यों हो रहा है ! परंतु उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है ! उसका सच यह है की 1962 के युद्ध के बाद भी चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश करती रही ! इसके लिए 1967 में चीनी सेना ने भारत के मुख्य भाग को उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर को कब्जे में करने के लिए सिक्किम के नाथूला में हमला किया ! जिसका करारा जवाब भारतीय सेना ने जनरल सगत सिंह की कमांड में देकर चीनी सेना को बुरी तरह से हराया और पीछे खदेड़ दिया ! इसके बाद 1986 में चीनी सेना ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश के सॉन्गद्रोङ्ग छु क्षेत्र में हेलीपैड बनाने की कोशिश की ! इस बार भी भारतीय सेना ने जनरल सुंदर जी की कमांड में चीनी सेना को वहां से खदेड़ा ! इस सब के बाद दोनों देशों के बीच डिप्लोमेटिक लेवल पर बातचीत शुरू हुई और तय हुआ की इन झड़पों को रोकने के लिए दोनों देशों के उच्च स्तरीय दल बातचीत करके इसका हल निकालेंगे ! दोनों देशों के बीच यह बातचीत 1988 में शुरू हुई और इस बातचीत से 1993 में यह तय किया गया कि दोनों देशों के बीच मैक मोहन रेखा के आसपास जहां दोनों देशों के सैनिक पोजीशन संभाले हुए हैं उसी को वास्तविक नियंत्रण रेखा ( एल ए सी ) का नाम दिया जाएगा ! इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि चीन 1916 में निर्धारित मैक मोहन रेखा को मान्यता प्रदान नहीं कर रहा था ! इसके अलावा इस मीटिंग में दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के लिए और भी प्रावधान किए गए जिनमें यह तय किया गया की सीमा के आसपास दोनों देशों की सेना बगैर हथियार के पेट्रोलिंग करेंगी ! इसी के परिणाम स्वरूप गलवान में भारतीय सैनिक बगैर के गए थे और चीनी सैनिकों के द्वारा इस संधि के उल्लंघन करके चीनी सैनिक लाठी-डंडों के साथ यहां पर आए थे ! परंतु भारतीय सैनिकों ने उनके ही लाठी-डंडों को उनसे छीन कर चीनी सैनिकों को जवाब दिया और यहां पर विजय प्राप्त की ! भारतीय सैनिकों की इस वीरता की सराहना करते हुए भारत के विपक्षी दल उन्हें सीमा पर कमजोर स्थिति में दिखाने का प्रयास कर रहे हैं इससे भारतीय सैनिकों का मनोबल प्रभावित हो सकता है !
 
भारत चीन के बीच विवाद 1950 के दशक से ही शुरू हो गया था जब चीन में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आया और माओ वहां के राष्ट्रपति बने थे !माओ ने सत्ता में आते ही अपनी विस्तार वादी नीतियों के द्वारा चीन के पड़ोसी देशों की भूमियों पर कब्जा करना शुरू कर दिया ! इसी के द्वारा 1955 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया इसके कारण जो सीमा पहले भारत तिब्बत के बीच में शांतिपूर्ण थी वहां पर चीनी सैनिकों ने घुसपैठ के प्रयास शुरू कर दिए क्योंकि चीन पहले से ही मैक मोहन रेखा को मान्यता प्रदान नहीं कर रहा था ! दुर्भाग्य से 1954 में चीन को खुश करने के लिए तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ शांति के लिए पंचशील समझौता कर लिया था इसी के कारण भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों को इस घुसपैठ को रोकने में असफल रहते थे क्योंकि उन्हें चीनी सेना के साथ किसी प्रकार की झड़पों के लिए मना किया गया था ! पंचशील समझौते के कारण भारत सरकार आश्वस्त थी की चीन भारत के विरुद्ध कोई आक्रमक कार्रवाई नहीं करेगा इसी विश्वास के कारणन भारत चीन सीमा पर ना तो पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम किए थे और ना ही इस क्षेत्र के लिए संचार व्यवस्था को सुधारा था ! जिसका परिणाम था की लद्दाख और नेफा में सैनिक सहायता को पहुंचने में कई कई दिन लग जाते थे ! शुरू से ही चीन की नजर भारत के अक्साई चीन क्षेत्र पर थी इसलिए भारत की रक्षा क्षेत्र में कमजोर स्थिति को देखते हुए चीनी सेना ने अक्टूबर 1962 में अचानक भारत पर हमला कर दिया जिसमें मुख्य हमले लद्दाख के रेजांगला और अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में हुआ था ! इस युद्ध में दुर्भाग्य से रक्षा तैयारियों की कमी के कारण भारतीय सेना को हार का मुंह देखना पड़ा और चीन ने 38000 वर्ग किलोमीटर अक्साई चीन क्षेत्र पर कब्जा कर लिया ! इतनी बड़ी हार के बाद भारत के रक्षा मंत्रालय ने एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी इस हार के कारण पता लगाने के लिए गठित की जिसमें सेना के लेफ्टिनेंट जनरल हेंडरसन ब्रुक्स इसके चेयरमैन तथा तत्कालीन ब्रिगेडियर भगत इसके मेंबर थे ! इस कमेटी ने सीमा पर जाकर स्वयं स्थिति का आकलन करके और इससे संबंधित रक्षा मंत्रालय और सेना मुख्यालय के दस्तावेजों का परीक्षण करके एक रिपोर्ट तैयार की इस रिपोर्ट में इस कमेटी ने पाया की हार का मुख्य कारण योजनाबद्ध तरीके से चीनी सीमा पर रक्षा तैयारियों का ना होना तथा भारत सरकार के कुछ नौकरशाहों का सेना के सीमा पर कार्यों में सीधा दखल !इसमें खासकर आईबी प्रमुख बीएन मौलिक इत्यादि प्रमुख थे !इस प्रकार की रिपोर्ट को देखते हुए भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को अति गोपनीय श्रेणी में डाल कर इसको सार्वजनिक नहीं किया जो अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है ! इसके कुछ अंश एक ऑस्ट्रेलिया के पत्रकार ने सोशल मीडिया पर प्रकाशित किए हैं जिनसे यह सब पता लगा है ! रिपोर्ट के इस हिस्से से यह साफ हो जाता है की 1962 में चीन के हाथों भारत की इतनी बड़ी हार के लिए उस समय की भारत सरकार पूरी तरह जिम्मेदार थी !
 
चीन की आक्रामक प्रवृत्ति को देखते हुए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल थिमैया ने बार-बार प्रधानमंत्री नेहरु से रक्षा तैयारियों के लिए आग्रह किया परंतु बार-बार उनके इस आग्रह को नेहरू जी ने ठुकरा दिया था जिससे निराश होकर 1958 मैं अपना त्यागपत्र भारत सरकार को सौंप दिया था ! इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की सेना पूरे समय जागरूक थी पर भारत सरकार ने उसका साथ नहीं दिया ! 1962 के बाद भी चीन की घुसपैठ लगातार चलती रही और भारत की सेना इसका भरपूर जवाब देती रही और यह गर्व के साथ कहा जा सकता है कि भारतीय सेना 1962 के बाद से आज तक चीनी सेना के सामने मजबूती से खड़ी हैर और चीन को उसके इरादों में सफल नहीं होने दिया ! 1967 में चीनी सेना ने भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जा करने के लिए सिक्किम के नाथूला पर हमला कर दिया था जिसका शक्तिशाली जवाब भारतीय सेना ने जनरल सगत सिंह की कमान में दिया इसमें चीन को करारी हार का मुंह देखना पड़ा !इसके बाद 1986 में चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में हेलीपैड बनाने का प्रयास किया जिसको सेना ने सुंदर जी की कमान में नाकाम कर दिया !इसके बाद जनरल सुंदर जी ने भारत सरकार को भारत चीन सीमा पर संचार माध्यमों को सुधारने के लिए और सेना को मजबूत बनाने के लिए अपने प्रस्ताव प्रस्तुत किए ! इन प्रस्तावों पर भारत सरकार ने अपनी स्वीकृति प्रदान की और उसके बाद से भारत चीन सीमा को सड़कों और पुलों के द्वारा देश के मुख्य हिस्से से अच्छी प्रकार जोड़ दिया गया है ! अपनी सेना की आक्रामक क्षमता बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में दो नई स्ट्राइक कोर खड़ी की गई हैं जिनका मुख्य कार्य दुश्मन के क्षेत्र में घुसकर उसके संवेदनशील स्थानों पर कब्जा करना होता है जिससे दुश्मन अपनी हार मानने के लिए विवश हो जाए !इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने अपनी वायु सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए आधुनिकतम एयर डिफेंस सिस्टम रूस और इजराइल से खरीदे हैं जिनसे सीमाओं पर वायु सुरक्षा को पूर्णता है सुरक्षित किया जा सके ! इसके लिए अभी कुछ समय पहले भारत सरकार ने फ्रांस से आधुनिकतम राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं जिनसे चीन घबराया हुआ है विमानों को बनाया जा सके ! इसके साथ साथ भारत चीन सीमा के पास 5 हवाई जहाज उतरने के लिए एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड बनाए गए है जिनमें लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी और अरुणाचल प्रदेश में हासीमारा प्रमुख है ! इसी का परिणाम है चीन अब भारतीय सीमा पर बहुत सावधान है और पहले की तरह बार बार घुसपैठ की कोशिश नहीं कर रहा है और अभी गलवान और तवांग में जिस प्रकार भारतीय सेना ने चीनी सेना को खदेड़ा है और दक्षिणी चीन सागर में चीन को समुद्र में भी घेरने के लिए विश्व की महाशक्ति अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर कुयाद रक्षा प्रणाली का का निर्माण किया है, उससे भारत की गिनती विश्व में महाशक्ति के रूप में होने लगी है !
 
इस सब का पूरा ज्ञान हमारे देश के विपक्षी दलों को है परंतु वह सरकार को अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए घेरने के लिए चीन के समक्ष भारत की रक्षा तैयारियों की कमी का मुद्दा उठाकर देशवासियों को भ्रमित करना चाह रही हैं !उपरोक्त रक्षा तैयारियों का पूरा ब्यौरा देशवासियों की सूचना के लिए उपलब्ध है ! और इसके साथ साथ भारत को अपनी सेना पर गर्व करना चाहिए 1962 से लेकर आज तक चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध हमारी सेना ने हमेशा विजय ही प्राप्त की है ! और ऐसी सेना को पूरे देश की शाबाशी मिलनी चाहिए और देश को उस पर गर्व करते उसके मनोबल को बढ़ाना चाहिए ना कि पिटाई जैसे शब्दों का प्रयोग करके उसको उसकी नजरों में गिराने का प्रयास करना !
 
 

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.