देश में न्यायपालिका को विफल बनाती कार्यपालिका

न्याय व्यवस्था के सुचारू रूप से न चल पाने के कारण अक्सर देश के बहुत कम नागरिक न्यायालय तक पहुंचते हैं यह विचार देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमण के थे ! प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश की इन भावनाओं के पीछे का मुख्य कारण है न्याय मिलने में देरी और इसके कारण वादी का वर्षों तक न्यायालययो के चक्कर लगाकर परेशान होना !

NewsBharati    01-Aug-2022 09:41:30 AM   
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30 जुलाई को दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से आयोजित अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि देश में जीवन जीने की सुगमता जितना ही महत्वपूर्ण है सुगम न्याय भी ! न्याय व्यवस्था के सुचारू रूप से न चल पाने के कारण अक्सर देश के बहुत कम नागरिक न्यायालय तक पहुंचते हैं यह विचार देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमण के थे ! प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश की इन भावनाओं के पीछे का मुख्य कारण है न्याय मिलने में देरी और इसके कारण वादी का वर्षों तक न्यायालययो के चक्कर लगाकर परेशान होना ! व्यवस्था कि इस स्थिति से देश के निवासी व्यथित और दुखी है, इसका एक उदाहरण अभी कुछ दिन पहले अजमेर की एक पॉस्को अदालत में उस समय देखने में आया जब एक महिला न्याय व्यवस्था की देरी के कारण दुखी होकर – न्यायालय के न्यायाधीश महोदय और वहां पर उपस्थित वकीलों और पुलिस वालों पर चिल्ला रही थी, और उस महिला की व्यथा ऐसी थी जिसके कारण इसमें ना तो अवमानना का मुकदमा उस महिला के खिलाफ बना और ना ही और कोई कानूनी कार्रवाई इस महिला के विरुद्ध की जा सकी !
 
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क्योंकि इसका मुख्य कारण था महिला का सामूहिक बलात्कार 22 सितंबर 1992 को हुआ था और अभी 2022 तक इसके मुकदमे की सुनवाई के प्रारंभिक स्तर तक ही पहुंचना ! इस कारण महिला को बार-बार अदालत में अपराधियों की पहचान के लिए बुलाया जा रहा है जिससे इस महिला को उन पुरानी कड़वी यादों को याद करने के लिए मजबूर किया जाता है, इसके साथ साथ जिस बुरी घटना को भूल कर वह जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती है वह हर बार उसके सामने खड़ी हो जाती है ! इसी के साथ इस महिला के पोते पोती भी है जो महिला को इसके बारे में पूछ कर शर्मिंदा करते रहते हैं ~! जिसके कारण उसे और अधिक गिलानी और घृणा स्वयं के साथ होती है ! इस प्रकरण में यह महिला अकेली नहीं है इसी में अपराधियों ने इसी प्रकार का घृणित अपराध उस समय 22 महिलाओं के साथ किया इसके बावजूद भी अभी तक अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं ! क्योंकि अपराधी अजमेर के एक प्रसिद्ध धार्मिक संस्थान से जुड़े हुए बताए जाते हैं ! न्याय में देरी का यह पहला मामला नहीं है इस समय देश के कानून मंत्री के अनुसार देश में 4 करोड़ 33 लाख मुकदमे लंबे समय से न्याय के इंतजार में लंबित है ! न्याय की देरी के कुछ बहुचर्चित मामले इस प्रकार हैं- दिल्ली के उपहार सिनेमा अग्निकांड में न्याय मिलने में पूरे 18 साल लगे जबकि इस कांड के दोषी सिनेमा हॉल के मालिक सबके सामने थे !
 
भूत पूर्व रेल मंत्री एल एन मिश्रा की बम ब्लास्ट में हुई हत्या के मामले में न्याय होने में पूरे 30 साल लगे, दिल्ली के सिख विरोधी दंगे 1984 में हुए परंतु अब पूरे 38 साल बाद इस पर मुकदमा जलाने की तैयारी की जा रही है और इसके बाद न्याय कब आएगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है ! देश में आर्थिक अपराधों को उजागर करने के लिए अक्सर ईडी के छापे डाले जाते हैं जैसा कि आजकल कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के नेता पार्थो चटर्जी के यहां चल रहा है ! छापे पड़ते हैं तो इनकी खबरों को मीडिया में रोजाना सुर्खियों में दिखाया जाता है देश की जनता में इन छापों में बरामद धन को देखकर सनसनी पैदा होती है, कुछ समय के लिए मीडिया के द्वारा जनता का मनोरंजन होता है और टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ जाती है ! परंतु कुछ समय बाद इन छापों को भुला दिया जाता है और आंकड़ों के अनुसार केवल 5 परसेंट अपराधियों को ही सजा मिल पाती है ! अक्सर न्याय में देरी के लिए जजों और को ही दोषी ठहराया जाता है, इससे दुखी होकर देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्रीमान वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा है कि केवल जजों को इसके लिए दोषी ठहराना बंद करें ! इससे सिद्ध होता है कि इस प्रकार की व्यवस्था से खुद न्यायपालिका भी दुखी है , क्योंकि अदालतें तभी न्याय दे पाती है जब कार्यपालिका उनके सामने अपराधों के साक्ष्य प्रस्तुत करती है ! परंतु अक्सर विभिन्न प्रकार के राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार के कारण देश की कार्यपालिका के मुख्य अंग पुलिस और इसकी सहायक संस्थाएं बाहुबली अपराधियों को बचाने के लिए इनके अपराधों के साक्ष्य अदालतों के सामने लंबे समय तक प्रस्तुत नहीं नहीं करते हैं ! अपराधी लंबे समय तक व्यवस्था की इस स्थिति के कारण अपनी अपराधिक गतिविधियों को चलाते रहते हैं जैसा कि मुंबई जैसे महानगर में अंडरवर्ल्ड और कानपुर में विकास दुबे लंबे समय तक अपनी गतिविधियों को लगातार चलाता रहा !

शहरी क्षेत्रों में तो मीडिया कार्यपालिका की लापरवाही और कमियों को उजागर करता रहता है परंतु देश के देहाती क्षेत्रों में अव्यवस्था, दबंगई तथा वोट बैंक की राजनीति के कारण अक्सर एक-दूसरे की कृषि भूमियों पर अतिक्रमण होता रहता है ! इसके अलावा वहां के निवासियों की आवश्यक सेवाओं के लिए गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों और रास्तों के लिए निर्धारित भूमि पर अवैध कब्ज़ो के कारण आए दिन यहां पर तनाव और झगड़े होते रहते हैं, और इसके लिए जिम्मेवार सरकारी कर्मी जैसे पटवारी लेखपाल जिनकी जिम्मेदारी देहातों की भूमि की रखरखाव की होती है वह इसके मूकदर्शक बने होते हैं ! इसके बाद जो कार्य कार्यपालिका के द्वारा स्वत ही करना चाहिए उसके लिए प्रभावित क्षेत्र वासी जिले के न्यायालय की शरण में जाते हैं ! जहां पर इन विवादों के केसो के निपटारे में 20 से 25 साल आराम से लग जाते हैं ! इस दौरान में अतिक्रमण करने वाले दबंग मुकदमा दायर करने वाले लोगों पर तरह तरह के दबाव और प्रताड़ना के द्वारा उन्हें इन मुकदमों को वापस लेने के लिए परेशान करते हैं ! अक्सर छोटे-छोटे मुकदमों को लंबा खींचने में वकीलों का भी बहुत बड़ा हाथ होता है इसमें वे फीस के लालच में मुकदमों में तारीख पर तारीख डलवा ते रहते हैं ! इस प्रकार यह देहाती लोग अपने कीमती समय और धन को इन मुकदमों पर खर्च करते रहते हैं जबकि इसके लिए वह चिलचिलाती धूप और सर्दी में दिन रात काम करके इस धन को कमाते हैं ! इन मुकदमों के कारण देहातों में आए दिन झगड़े और हत्याएं होती रहती हैं जिनके कारण भी यह विवाद अदालतों में पहुंचते हैं ! इस प्रकार देखा जा सकता है कि न्याय व्यवस्था के सुचारू रूप से ना चलने के कारण देहातों का वातावरण काफी अशांत और तनावपूर्ण हो गया है ! देहातों से शहरों की तरफ पलायन का एक कारण देहातों में बढ़ता हुआ यह तनाव और दबंगई भी है !

न्याय व्यवस्था की इस स्थिति के लिए केवल कार्यपालिका ही जिम्मेदार नहीं है, परंतु इसके लिए देश में 800 साल की गुलामी जिसके कारण अभी तक देश में दासता की भावना देखी जा सकती है यह भावना भी उतनी ही दोषी है ! इस भावना के कारण अक्सर देश के निवासी अन्याय के साथ भी समझौता करके अपना जीवन व्यतीत करते रहते हैं ! आजादी के समय देश के नागरिकों को उचित न्याय दिलाने के लिए देश के संविधान और न्याय व्यवस्था को उदारवादी स्वरूप दिया गया था जिसमें साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए और दोषी को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पर्याप्त मौके और समय देने का प्रावधान किया गया है ! परंतु देश का दुर्भाग्य है की इस प्रावधान का भी अपराधियों और कार्यपालिका के निम्न स्तर के कर्मियों ने जमकर दुरुपयोग किया है ! जिसके कारण संबंधित पुलिस और रेवेन्यू कर्मी अपनी जिम्मेवारी को भ्रष्टाचार और दबावों के कारण पूरी तरह से नहीं निभाते हैं और अपराधों की जांच और इसमें साक्ष्य प्रस्तुत करने में लंबा लंबा समय लेते हैं ! यदि संबंधित कर्मी अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निभाए तो आजकल की तरह अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाने की नौबत नहीं आएगी ! अगस्त महीने में नोएडा की बहु चर्चित सुपरटेक की 28 मंजिला इमारत को विस्फोट के द्वारा गिराने का निश्चय किया गया है, यहां पर यह प्रश्न उठता ह कि इस बिल्डिंग के निर्माण में पूरे 5 वर्ष लगे जिसको संबंधित

प्राधिकरण कर्मी इसअवैध निर्माण को मुक दर्शक बनकर देखते रहे क्या इस गैर कानूनी निर्माण के लिए प्राधिकरण के उन कर्मियों को भी उतना ही दोषी नहीं मानना चाहिए ! इसी प्रकार निचली अदालतों में पहुंचने वाले मुकदमों में रेवेन्यू और पुलिस विभाग के भी उन कर्मचारियों को उतना ही दोषी माना जाना चाहिए जितना की एक अपराधी होता है, क्योंकि इन अपराधों को रोकना इन कर्मियों की प्रमुख जिम्मेदारी होती है !

आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद अब समय आ गया है जब देश के आधारभूत ढांचे के साथ-साथ देश की न्याय व्यवस्था को भी इस प्रकार सुधारा जाए जिससे एक आम नागरिक को समय से न्याय मिल सके ! इसके लिए सर्वप्रथम देश की व्यवस्था में ऐसे प्रावधान किए जाने चाहिए जिनके द्वारा अपराधों पर लगाम लगाई जा सके ! इसके लिए जनता के स्तर पर काम करने वाले कार्यपालिका के कर्मियों को जिम्मेदार बनाना होगा, जिनमें जिलों के रेवेन्यू और पुलिस विभाग के कर्मी आते हैं ! यदि कोई अपराध उनके कार्यक्षेत्र में होता है तो इसके लिए इन कर्मियों को भी इस अपराध के लिए उतना ही दोषी ठहराया जाना चाहिए जितना की एक अपराधी होता है ! इस प्रकार इन कर्मियों के अंदर जिम्मेवारी की भावना मजबूत होगी और यह अपराधों पर पहले ही लगाम लगा देंगे ! इसी के साथ न्याय प्रणाली के नियम कानूनों में जिन प्रावधानों को उदारता की दृष्टि से लागू किया गया था उनमें इस प्रकार के बदलाव किए जाने चाहिए जिनसे कोई इन नियम कानूनों का दुरुपयोग ना किया जा सके ! प्रधानमंत्री ने उपरोक्त सम्मेलन में अपने उद्बोधन यह भी कहा है की आज का युग सूचना का युग है और इस युग में सूचना की तकनीक के द्वारा वह सब कार्य किए जा सकते हैं जिन्हें पहले न्यायालय के कर्मी स्वयं करते थे और इस तकनीक से काफी समय की भी बचत हो सकती है ! इसलिए न्यायालय की प्रणाली को आधुनिक बनाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग भी अदालतों मैं किया जाना चाहिए ! न्याय व्यवस्था में आधारभूत सुधार करने के लिए के देश के बुद्धिजीवियों और न्यायबिदों की एक समिति गठित की जानी चाहिए जो प्रणाली के नियम कानूनों में उचित बदलाव की सलाह सरकार को दें जिसके द्वारा प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त किया जा सके !

यहां पर प्रसिद्ध समाजशास्त्री चाणक्य केउपदेश उपयुक्त नजर आते हैं जिनमें चाणक्य ने कहा है कि जिस समाज की न्याय प्रणाली असंवेदनशील और भ्रष्ट है तो उस समाज के निवासी भी भ्रष्ट हो जाएंगे ! इस प्रकार उस समाज का शीघ्र विनाश जरूर होता है ! अब समय आ गया है जब हम दासता की मानसिकता से बाहर निकले व देश में मनु और चाणक्य कि विकसित न्याय प्रणाली को लागू करें ! क्योंकि मौजूदा न्याय प्रणाली की उपेक्षा और विदेशी ओपनिवेशक न्याय प्रणाली से चिपके रहना राष्ट्रीय हितों और संविधान के लिए घातक है!!

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.