कर्म फल से मुक्ति

NewsBharati    27-Oct-2023 17:49:13 PM   
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मानस में दिया गया है कि --- कर्म प्रधान विश्व कर रखा !जो जस करही त्तसही फल चाखा !! इसके अनुसार पूरा विश्व कर्म के सिद्धांत के अनुसार चलता है ! जिसमें जीव के हर करम का फल उसे भोगन! हीं पड़ता है चाहे करोड़ों वर्ष क्यों ना बीत जाए ! इस सिद्धांत का पालन करते हुए भगवान श्री राम वनवास गए तथा उन्हें बंदरों की सहायता लेनी पड़ी क्योकि उन्होंने एक बार नारद जी को बंदर का रूप देखकर उन्हें विवाह से रोका था ! जिसके परिणाम स्वरुप नारद ने उन्हें श्राप दिया कि बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे ! इससे यह सिद्ध हो जाता है की कर्म फल हर प्राणी को भोगना ही पड़ता है ! कर्मफल तीन प्रकार के होते हैं !

karma

पहले के अनुसार मनुष्य पूर्व जन्म के कर्म फलों के अनुसार अपना अगला जन्म पता है ! यदि पूर्व जन्म में इसकी वृद्धि और कर्मपशु जैसे थे तो उसे पशु योनि मिलती है ! इसी के अनुसार उसके कर्मों के आधार पर उसे मनुष्य योनि में परिवार तथा मां-बाप इत्यादि मिलते हैं इसकोप्रारब्ध भी कहा जाता है ! कर्म फल का दूसरा प्रकार है संचित कर्म ! इसमें पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार ही उसकी मनोवृति और विचार बनते हैं जो उसे इस जन्म में कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं !और आखिर मेंआगामी कर्मफल आता हैं जो इस जन्म के किया जा रहे हैं कर्मों के आधार पर होगा !

प्रारब्ध को बदला नहीं जा सकता इसलिए मनुष्य को सहनशीलता के साथअपने प्रारब्ध को स्वीकार कर लेना चाहिए ! मनुष्य एक ऐसा प्राणी हैजिसको विवेक प्राप्त है इसलिए संचित कर्मों के फल को पूरा करने के लिए मनुष्य को कर्म योग का मार्ग अपनाना चाहिए ! यह निष्काम कर्म का मार्ग हैजिसमें मनुष्य हर जीव में ईश्वर को देखते हुएअपना कर्म करता है और कर्मफल कोईश्वर को समर्पित करता है !इस प्रकार वह संचित कर्मफल से मुक्ति पाता हुआआगामी कर्मों के फल से भी मुक्त हो जाता है !

ईश्वर प्राप्ति के लिए अध्यात्म के अनुसारज्ञान,भक्ति,तथा कर्म योग निर्धारित हैं ! निष्काम कर्म को कर्म योग माना जाता है !जिस प्रकार भक्ति के द्वारा भगवान की पूजा की जाती है उसी प्रकार कर्म योगीअपने कर्म फल को भगवान को अर्पण करके अपनी श्रद्धा प्रकट करता है ! इसके द्वारा मनुष्य आगामी कर्म फल से मुक्त होकरसंचित कर्म फल पर भी विजय प्राप्त कर लेता है ! क्योंकि संचित कर्म पूर्व जन्म के कर्म फल केअनुसार बने उसके विचारों के द्वारा किए जाते हैं ! इसके द्वारा वहअपनी दुसित मनोवृति पर विजय प्राप्त कर लेता है !

गीता में भी कर्म योगी को सर्वश्रेष्ठ माना गया है ! क्योंकि नियत कर्म कर्म हर मनुष्य को परम आवश्यक हैं ! नियत कर्म न करने से मनुष्यअपनी अपनी ईश्वर द्वारा दी हुई जिम्मेदारियां से भागने की कोशिश करता है जो ईश्वर को पसंद नहीं है ! इसलिए कर्म योगके द्वारा भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है ! इसलिए हर गृहस्ती कोअपने परिवार का पालन पोषण कर्म योगी की तरह करते हुए उसेसमाज काअंग बनाना चाहिए !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.