अपराध बोध और इसके परिणाम

NewsBharati    21-Aug-2025 12:40:20 PM   
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संसार में कर्म दो प्रकार के होते हैं जिन्हें नैतिक और अनैतिक कर्मों के नाम से पुकारा जाता है !अनैतिक कर्म पाप और अपराध की श्रेणी में आते हैं ! इनके भी दो प्रकार हैं, पहले अपनी नैतिक जिम्मेदारी को ना निभाते हुए पाप कर्मों को मुक दर्शक बनकर देखना जैसे हस्तिनापुर की सभा में द्रोपदी के चीर हरण के समय परिवार के सबसे बड़े बुजुर्ग और मुखिया भीष्म पितामह का मूकदर्शक बनकर उसको देखना जबकि उन्हें परिवार में इस प्रकार के अनैतिक कर्म को रोकने की जिम्मेदारी के अनुसार रोकना चाहिए था !

karma

दूसरा प्रकृति के गुडों - राजसिक व तामसिक के प्रभाव में अपने स्वार्थ या इंद्रिय पूर्ति के लिए दूसरों की संपत्ति या अधिकारों को छिनेने के लिए शक्ति का प्रयोग करते हुए पाप कर्म करना ! यह सब मनुष्य प्रकृति के गुडों के प्रभाव में कर लेता है परंतु जीवन में एक समय ऐसा भी आता है जब वह अपने विवेक के द्वारा अपने कर्मों की विवेचना करता है ! इस प्रकार जब वह पाता है कि उसने अपनी स्वार्थ पूर्ति और इंद्रियों की तृप्ति के लिए पाप किया है तो, इसके परिणाम स्वरूपउसके अंदर अपराध बोध जागृत होता है जिसको शांत करने के लिए उस समय उसे कोई मार्ग दिखाई नहीं देता !

 इसी अपराध बोध की भावना के साथ उसका अंत समय आ जाता है ! गीता में भगवान ने स्वयं कहा है जीवन के आखिरी क्षणों में प्राणी की जो मनोदशा होती है उसी के अनुसार उसे अच्छे या बुरे का अनुभव होता है और प्राणी कोउसके अनुसार हीअगला जन्म प्राप्त होता है ! इसी सत्य के कारण भीष्म पितामह अपने जीवन के आखिरी क्षणों में पूरे 6 महीने शस्त्र सैया पर पड़े रहे और बाडों की चुभन का दर्द झेलते रहे ! इसका तात्पर्य है कि अपराध बोध ही बाडों की चुभन के समान है जिसे मनुष्य अपने सबसे नाजुक तथा संवेदनशील समय में महसूस करता है !


संसार में जीवों की 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि सबसे उत्तम यानी मानी जाती है ! क्योंकि केवल इस योनि में ही उसको विवेक प्राप्त होता है जिसके द्वारा वह अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करते हुए शुभ या अच्छे कर्म कर सकता है जिनके परिणाम स्वरूप वह भवसागर से पार होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है !इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जटायू जिसने पक्षी होते हुए भी सीता हरण जैसे पाप के विरुद्ध आवाज उठाते हुए रावण को इसे रोकने के लिए युद्ध के लिए ललकारा जिसमें उसे अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी ! जिसके लिए उसे मोक्ष भगवान राम ने स्वयं प्रदान किया ! पाप कर्मों को मूक दर्शक बनकर देखने के कारण भीष्म पितामह अपने आखिरी समय में पूरे 6 महीने तक शस्त्र सैया पर पड़े रहे इसके बावजूद भीउन्हें जटायु जैसी मुक्ति प्राप्त नहीं हुई !

इसलिए भगवान ने स्वयं रामचरितमानस में कहा है कि कर्म प्रधान विश्व कर रखा जो जस करें तहिसि फल चाखा !इसको देखते हुए मनुष्य कोअपनी सर्वोत्तम योनि काउपयोगअपने कर्मों के आधार पर मोक्ष प्राप्ति के लिए करना चाहिए अन्यथा वह दोबारा से 84 लाख योनियों के भवसागर में पड़ जाएगा !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.