मोक्ष प्राप्ति की योग्यता

NewsBharati    24-May-2023 14:50:16 PM   
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भगवान ने गीता में बताया है कि मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं जिसके फलस्वरूप वह देवताओं की पूजा करते हैं ! निसंदेह इस संसार में मनुष्य को कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है ! माया रूपी संसार में मनुष्य क्षणिक वस्तुओं यथा - संपत्ति, परिवार तथा भोग की सामग्री के लिए हर समय प्रयासरत रहता है और इन्हें प्राप्त करने के लिए वह देवताओं या संसार के शक्तिशाली व्यक्तियों की पूजा करता है !
 

मोक्ष प्राप्ति की योग्यता 

जिनसे उसे क्षणिक सुख प्राप्त भी हो जाता है परंतु यह सुख क्षणिक होता है ! इसलिए इसे खोने के डर से वह हर समय इसे अपने पास बनाए रखने के लिए प्रयास करता रहता है ! जिससे उसके अंदर लोभ और मोह की भावना दिन प्रतिदिन प्रबल होती रहती है जिसके कारण क्रोध जागृत होता है ! क्रोध विवेक को समाप्त करता है जिसके बाद बुद्धि स्वत समाप्त हो जाती है !

इस प्रकार धीरे-धीरे मनुष्य का पतन हो जाता है और यह पतन केवल शरीर का पतन होता है ! परंतु आत्मा तो अजर अमर है और यह आत्मा सूक्ष्म शरीर के रूप में शरीर को छोड़कर नए आश्रय की खोज में निकल पड़ती है जिसमें मन के रूप में पुराने शरीर की यादें उसके साथ होती हैं ! इस प्रकार वह जीवन मरण के चक्कर में पड़ा रहता है !

सकाम कर्मो की इस गति को देखकर विवेकशील मनुष्य को चाहिए कि वह निष्काम कर्म करता हुआ केवल ईश्वर की पूजा स्तुति करें जिसकी प्राप्ति पर ईश्वर का अंश आत्मा अपने संपूर्ण स्वरूप में विलीन होकर परम शांति को प्राप्त होकर जीवन मरण के चक्कर मुक्त हो सके ! मनुष्य संसार में कर्म प्रकृति के गुणों— सत, रज और तम के प्रभावों के अनुसार करता है ! यदि रजोगुण की प्रधानता है तो वह सकाम कर्मों में लिप्त रहता है और तमोगुण में पशु की प्रवृत्ति की तरह केवल उसे इंद्रियों की तृप्ति की ही कामना रहती है ! इसलिए मनुष्य को तमो और रजोगुण से ऊपर उठकर सतोगुण को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ! सतोगुण की प्राप्ति के बाद वह निष्काम कर्म करता हुआ कर्मफल से मुक्त होकर दिन प्रतिदिन निर्मल होता हुआ मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी बनने लगता है ! जिसके बाद उसकी आत्मा अपने पूर्ण स्वरूप ईश्वर में विलीन होने की योग्यता प्राप्त कर लेती है !

जैसा की सर्व विदित है कि संसार की सारी योनियों में केवल मनुष्य को ही विवेक प्राप्त है और इस विवेक का पूर्ण उपयोग करते हुए उसे अपनी आत्मा के परम स्थान ईश्वर को प्राप्त कराने में आत्मा की पूरी सहायता करनी चाहिए ! इसके लिए मनुष्य को चाहिए की गुरु के निर्देशन में अष्टांग योग के द्वारा वह अध्यात्म के मार्ग चले ! जिसके द्वारा संसार के बंधनों से मुक्त होकर उसकी आत्मा परम ब्रह्म में विलीन होने की अधिकारी बन जाती है !

Shivdhan Singh

Service - Appointed as a commissioned officer in the Indian Army in 1971 and retired as a Colonel in 2008! Participated in the Sri Lankan and Kargil War. After retirement, he was appointed by Delhi High Court at the post of Special Metropolis Magistrate Class One till the age of 65 years. This post does not pay any remuneration and is considered as social service!

Independent journalism - Due to the influence of nationalist ideology from the time of college education, special attention was paid to national security! Hence after retirement, he started writing independent articles in Hindi press from 2010 in which the main focus is on national security of the country.