स्मृति शेष पद्मभूषण.. निरागस सुरों से देवत्व प्राप्त पं.जसराज!

NewsBharati    19-Aug-2020 11:17:50 AM
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भक्त को सुरों के निकट जाकर देवत्व की प्राप्ती करते हुए केवल सुना ही गया है पर हमनें साक्षात दर्शन किए उस कलाकार के जिसने निरागस सुरों की भक्ति कर उससे देवत्व प्राप्त किया। पं.जसराज ने अपने सुरों को इतना साध लिया था कि भक्ति आसान हो गई...भक्ति और सुरों के बीच एकाकार का भाव उत्पन्न हो गया और उससे संगीत के उस अमृत तत्व का निर्माण हुआ जिसे हम बारंबार कहते है संगीत परब्रम्ह है।
 
संगीत अवचेतन मन की सभी अवस्थाओं को प्रभावित करता है और अपने सुरों के माध्यम से इस प्रकार की रियाज लगातार करते रहने का नाम ही पं.जसराज है। पंडित जसराज को हम डिवाइन टच वाले कलाकार कहते है और यह महसूस भी होता रहा है। उनसे मुलाकात करने का मौका मिलता रहा है और एक कार्यक्रम के सिलसिले में वे जब इंदौर आए थे तब हवाई अड्डे से लेकर वे जहां पर रुके थे वहां तक का साथ अब भी ज़ेहन में ताजा है।
 
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उनका चिर परिचित अंदाज में जय हो कहना हो या फिर एक छोटे बच्चे जैसी मासूम मुस्कान हो आपको इस देवतुल्य कलाकार के आभामंडल का आकर्षण लगातार उनकी ओर देखने के लिए आकर्षित करता है। उलझे सुलझे बालों का कोई ध्यान नहीं बस वे भले और सुरों से उनका संवाद भला जैसे वे सुरों का अजपा जाप ही कर रहे हो...उनके इस मोहक अंदाज को करीब से जानकर हर कोई धन्य हो जाता था। कार की अपनी गति थी परंतु पंडित जी संगीत के वर्तमान स्वरुप से लेकर असल शास्त्रीय संगीत की बातों के प्रश्नों को बड़े ध्यान से सुनकर कहते है कि संगीत सहज,सरल हो और जिस संगीत की लौ प्रभु भक्ति में लग गई वह अपने आप में डिवाइन हो गया।
 
भारतीय शास्त्रीय संगीत अपने आप में देवतुल्य है...पवित्र है पावन है और जिस संगीत को सुनने भर से आप ध्यानमग्न हो जाते है सिर अपने आप हिलने लगता है तब क्या यह प्रभु भक्ति नहीं तो ओर क्या है ? पंडित जी लगातार बोलते जा रहे थे छोटे बच्चे की मानिंद जैसे मॉय क्लासिकल म्युजिक इज स्ट्रांगेस्ट...जब मैंने धीरे से बताया कि पंडित जी मैं पत्रकार बाद में हू पहले मेरा रिश्ता भारतीय शास्त्रीय संगीत से है तब वे चहक उठे बोले ऐसे लोग बिरले ही है भाई जो संगीत की समझ रखते है और पत्रकारिता भी कर रहे है। अब बात करने में ओर भी मजा आएगा।

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पंडित जी ने ही मेरा इंटरव्यू आरंभ कर दिया फिर तुम क्या बजाते हो ? मैंने कहा पंडित जी अभी वायलिन बजाना सीख रहा हूँ। रियाज किया करों वायलिन बहुत अच्छा वाद्य है गायकी के करीब है। वायलिन की फिंगरिंग तकनीक से लेकर उन्होंने अन्य कई प्रश्न पूछे और इतने में हम कार से उतरे तब वे बोले चलो भीतर चलते है। वे जिन शिष्य के घर पर रुके थे उससे इतने प्रेमपूर्वक मिले जैसे भगवान अपने भक्त से मिल रहा हो...आरंभिक चर्चा करने के बाद उनका ध्यान फिर मेरी ओर गया ...अरे भाई ये पत्रकार है और हां वायलिन बजाते है। आओ भाई ओर बातचीत करे की हो गया तुम्हारा...ये सुनते ही मैं फिर तपाक से पंडित जी के पास पहुंचा। मैंने पूछा पंडित जी आम जनता तक भारतीय शास्त्रीय संगीत कैसे पहुंचे?
 
पंडित जी ने एक बारगी मुझे देखा ओर कहा तुम्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की व्यापकता और सरलता पर कोई शक है ? मैंने कहा नहीं पंडित जी पर आम जनता के लिए कुछ तो लिखना होगा ना...वे बोले भारतीय शास्त्रीय संगीत अनादि काल तक ऐसा ही रहेगा...लोकप्रियता के चढ़ाव उतार से इसे कोई फर्क नहीं पडेगा...मैंने पंडित जी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया पर जाते जाते भी उन्होंने मुझे कहा रियाज किया करों...मैं धन्य था और बाहर आने के बाद तक उनके आभामंडल में निहित आकर्षण को महसूस करता रहा और आज भी उसकी पवित्रता को महसूस करता रहता हूँ।
 
पंडित जसराज जैसे संगीतकार अपने आप में देवपुरुष होते है जो खुद सशरीर चले जाते है परंतु उनके दैवत्व की पवित्रता को हम सुरों के माध्यम से लगातार महसूस करते रहते है।