डॉ.अम्बेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं !

NewsBharati    14-Apr-2021   
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डॉ. अम्बेडकर का पूरा संघर्ष हिंदू समाज और राष्ट्र के सशक्तिकरण का ही था। अम्बेडकर का सपना भारत को महान, सशक्त और स्वावलंबी बनाने का था। डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि में प्रजातंत्र व्यवस्था सर्वोत्तम व्यवस्था है, जिसमें एक मानव एक मूल्य का विचार है। सामाजिक व्यवस्था में हर व्यक्ति का अपना अपना योगदान है, पर राजनीतिक दृष्टि से यह योगदान तभी संभव है जब समाज और विचार दोनों प्रजातांत्रिक हों।
 
संविधान के प्रणेता बाबा साहेब डॉ.भीमरावआंबेडकर की छाया भारतीय राजनीति पर दीर्घ से दीर्घतर होती जा रही है, विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संविधान के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के साथ बाबा साहेब आंबेडकर के प्रति खुद को समर्पित दिखाने की होड़ लगी है। हालांकि यह अप्रिय सचाई है कि आंबेडकर प्रेम में होड़ लगाने वाली अधिकांश पार्टियां स्वाधीनता की शुरुआत से ही उनके प्रति वितृष्णा का भाव रखती रहीं है। किन्तु राजनीतिक परिदृश्य पर कांशीराम के उदय के बाद स्थिति में तेजी से परिवर्तन होने लगा। उनके जनजागरण अभियान के फलस्वरूप जहाँ इतिहासकारों द्वारा उपेक्षित महात्मा फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार रामास्वामी नायकर इत्यादि को इतिहास के पन्नों में योग्य जगह मिलने की शुरुआत हुई, वहीँ डॉ.आंबेडकर की दलित वंचितों में इस तेजी से जगह बनी, कि उनकी उपेक्षा करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए कठिन हो गया। देखते ही देखते ये आंबेडकर की विरासत पर कब्ज़ा करने में एक दूसरे से होड़ लगाने लगे।

Dr Babasaheb Ambedkar new
 
डॉ.आंबेडकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से ‘भारतीय पुनरुत्थानके पांचवे चरण के अगुआ’ के रूप में आदरांजलि दी गई है, मोदी-राज में आगे बढ़कर भाजपा ने और भी बहुत कुछ किया, बाबासाहेब आंबेडकर से जुड़ी चार-पांच जगहें हैं। पहली जगह मऊ है, जहां उनका जन्म हुआ था। वहां आठ-दस साल पहले,एक छोटा सा कमरा था, आज वहां शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने भव्य स्मारक बनाया है। दूसरी जगह है, 26 अलीपुर रोड, जहां बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान लिखा था। अटलजी की सरकार ने निर्णय लिया कि जिस तरह राजघाट को या अन्य जगहों को डेवलप किया गया है उसी तरह 26 अलीपुर रोड को भव्य स्मारक बनायेंगे और बनाया। तीसरी जगह दीक्षा भूमि है जो नागपुर में है, यहाँ लोगों के प्रयास से स्मारक बनाया गया है, चौथी जगह चैत्य भूमि है, दलित इसकी यूपीए सरकार के समय से मांग कर रहे थे। प्रधानमन्त्री मोदी ने 12 एकड़ जमीन ,जो इंदु मिल की थी, राष्ट्रीय स्मारक के लिए दी है और 425 करोड़ रुपये की घोषणा स्मारक बनाने के लिए की। पांचवीं जगह है लन्दन में, जहां तीन मंजिला मकान में बाबासाहेब आंबेडकर ने दो साल रहकर शिक्षा ग्रहण की थी। महाराष्ट्र सरकार और मोदी सरकार ने इसे चार मिलियन पाउंड में ख़रीदा। प्रधानमंत्री वहां गए और उद्घाटन किया।
 
अम्बेडकर का पूरा संघर्ष हिंदू समाज और राष्ट्र के सशक्तिकरण का ही था। अम्बेडकर का सपना भारत को महान, सशक्त और स्वावलंबी बनाने का था। डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि में प्रजातंत्र व्यवस्था सर्वोत्तम व्यवस्था है, जिसमें एक मानव एक मूल्य का विचार है। सामाजिक व्यवस्था में हर व्यक्ति का अपना अपना योगदान है, पर राजनीतिक दृष्टि से यह योगदान तभी संभव है जब समाज और विचार दोनों प्रजातांत्रिक हों। आर्थिक कल्याण के लिए आर्थिक दृष्टि से भी प्रजातंत्र जरूरी है। आज लोकतांत्रिक और आधुनिक दिखाई देने वाला देश, अम्बेडकर के संविधान सभा में किये गए सत्तत वैचारिक संघर्ष और उनके व्यापक दृष्टिकोण का नतीजा है, जो उनकी देखरेख में बनाए गए संविधान में क्रियान्वित हुआ है।
 
भारत के सर्वांगीण विकास और राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण विषय हिंदू समाज का सुधार एवं आत्म-उद्धार है। हिंदू धर्म मानव विकास और ईश्वर की प्राप्ति का स्रोत है। किसी एक पर अंतिम सत्य की मुहर लगाए बिना सभी रूपों में सत्य को स्वीकार करने, मानव-विकास के उच्चतर सोपान पर पहुंचने की गजब की क्षमता है, इस धर्म में! श्रीमद्भगवद्गीता में इस विचार पर जोर दिया गया है कि व्यक्ति की महानता उसके कर्म से सुनिश्रित होती है न कि जन्म से। इसके बावजूद अनेक ऐतिहासिक कारणों से इसमें आई नकारात्मक बुराइयों, ऊंच-नीच की अवधारणा, कुछ जातियों को अछूत समझने की आदत इसका सबसे बड़ा दोष रहा है। यह अनेक सहस्राब्दियों से हिंदू धर्म के जीवन का मार्गदर्शन करने वाले आध्यात्मिक सिंद्धातों के भी प्रतिकूल है।
 
हिंदू समाज ने अपने मूलभूत सिद्धांतों का पुनः पता लगाकर तथा मानवता के अन्य घटकों से सीख कर समय समय पर आत्म सुधार की इच्छा एवं क्षमता दर्शाई है। सैकड़ों सालों से वास्तव में इस दिशा में प्रगति हुई है। इसका श्रेय आधुनिक काल के संतों एवं समाज सुधारकों स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, राजा राममोहन राय, महात्मा ज्योतिबा फुले एवं उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले, नारायण गुरु, गांधीजी और डा. बाबा साहब अम्बेडकर को जाता है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा इससे प्रेरित अनेक संगठन हिंदू एकता एवं हिंदू समाज के पुनरुत्थान के लिए सामाजिक समानता पर जोर दे रहे है। संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहब देवरस कहते थे कि ‘यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है तो इस संसार में अन्य दूसरा कोई पाप हो ही नहीं सकता। वर्तमान दलित समुदाय जो अभी भी हिंदू है अधिकांश उन्हीं साहसी ब्राह्राणें व क्षत्रियों के ही वंशज हैं, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, किंतु विदेशी शासकों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं किया।
 
हिंदू समाज के इस सशक्तिकरण की यात्रा को डॉ. अम्बेडकर ने आगे बढ़ाया, उनका दृष्टिकोण न तो संकुचित था और न ही वे पक्षपाती थे। दलितों को सशक्त करने और उन्हें शिक्षित करने का उनका अभियान एक तरह से हिंदू समाज और राष्ट्र को सशक्त करने का अभियान था। उनके द्वारा उठाए गए सवाल जितने उस समय प्रासंगिक थे, आज भी उतने ही प्रासंगिक है कि अगर समाज का एक बड़ा हिस्सा शक्तिहीन और अशिक्षित रहेगा तो हिंदू समाज और राष्ट्र सशक्त कैसे हो सकता है?
 
वे बार बार सवर्ण हिंदुओं से आग्रह कर रहे थे कि विषमता की दीवारों को गिराओं, तभी हिंदू समाज शक्तिशाली बनेगा। डॉ. अम्बेडकर का मत था कि जहां सभी क्षेत्रों में अन्याय, शोषण एवं उत्पीड़न होगा, वहीं सामाजिक न्याय की धारणा जन्म लेगी। आशा के अनुरूप उतर न मिलने पर उन्होंने 1935 में नासिक में यह घोषणा की, वे हिंदू नहीं रहेंगे। अंग्रेजी सरकार ने भले ही दलित समाज को कुछ कानूनी अधिकार दिए थे, लेकिन अम्बेडकर जानते थे कि यह समस्या कानून की समस्या नहीं है। यह हिंदू समाज के भीतर की समस्या है और इसे हिंदुओं को ही सुलझाना होगा। वे समाज के विभिन्न वर्गो को आपस में जोड़ने का कार्य कर रहे थे।
 
अम्बेडकर ने भले ही हिंदू न रहने की घोषणा कर दी थी। ईसाइयत या इस्लाम से खुला निमंत्रण मिलने के बावजूद उन्होंने इन विदेशी धर्मों में जाना उचित नहीं माना। इसके लिए हम ईसाई या इस्लाम मत के प्रचारकों को दोष नहीं दे सकते क्योंकि वे अपने धर्म का पालन करते है और उनकी मानसिकता जगजाहिर है। लेकिन डॉ. अम्बेडकर का मत था कि धर्मांतरण से राष्ट्र को नुकसान उठाना पड़ता है। विदेशी धर्मों को अपनाने से व्यक्ति अपने देश की परंपरा से टूटता है।
 
वर्तमान समय में देश और दुनिया में ऐसी धारणा बनाई जा रही है कि अम्बेडकर केवल दलितों के नेता थे। उन्होंने केवल दलित उत्थान के लिए कार्य किया यह सही नहीं होगा। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उन्होंने भारत की आत्मा हिंदुत्व के लिए कार्य किया। जब हिंदुओं के लिए एक विधि संहिता बनाने का प्रसंग आया तो सबसे बड़ा सवाल हिंदू को पारिभाषित करने का था। डॉ. अम्बेडकर ने अपनी दूरदृष्टि से इसे ऐसे पारिभाषित किया कि मुसलमान, ईसाई, यहूदी और पारसी को छोड़कर इस देश के सब नागरिक हिंदू हैं, अर्थात विदेशी उद्गम के धर्मों को मानने वाले अहिंदू हैं, बाकी सब हिंदू है। उन्होंने इस परिभाषा से देश की आधारभूत एकता का अद्भुत उदाहरण पेश किया है।
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