राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक-भगवा ध्वज

NewsBharati    21-Aug-2020 19:13:51 PM
Total Views | 49
RSS_1  H x W: 0


भगवा ध्वज है अखिल राष्ट्र गुरू शत शत इसे प्रणाम।
लेकर भगवा ध्येय मार्ग पर बढ़े चलें अविराम।।
सनातन धर्म का पर्याय हिंदुत्व किसी व्यक्ति द्वारा निर्मित नहीं है। इसमें किसी के लिये कोई भेद भाव नहीं है।"सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया: " इस व्याख्या द्वारा सनातन भारत सब के कल्याण की भावना रखता है। नाग पंचमी पर नाग को दूध पिलाने की प्रेरणा देने वाला सनातन धर्म किसी के प्रति द्वेष की भावना रखने की बात कैसे कह सकता है।

संघ की विचारधारा कोई नया आविष्कार न होकर अपने परम पवित्र सनातन हिन्दू धर्म,अपनी पुरातन संस्कृति, अपने स्वयं सिद्ध हिन्दू राष्ट्र और अनादि काल से प्रचलित भगवा ध्वज को ही गुरू माना है।व्यक्ति चाहे जितना भी महान हो तो भी निरंतर अचल और पूर्ण नहीं रह सकता। इसीलिये उस सनातन संस्कृति के प्रतीक भगवा को गुरू माना है जिसमें हमारा इतिहास, परंपरा-राष्ट्र के स्वार्थ त्याग, राष्ट्रीयत्व के सभी मूल तत्वों का समन्वय हुआ है। इस से जो स्फूर्ति हमें प्राप्त होती है वह अन्य किसी भी मानवीय विभूति से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की अपेक्षा श्रेष्ठ है।भगवा रंग और भगवा संस्कृति हमारे सनातन राष्ट्र की पहचान है।मानव इतिहास के पूरे कालखंड में संपूर्ण राष्ट्र जीवन का प्रत्यक्षदर्शी गवाह भगवा ध्वज ही है।

ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन, ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है।इस भगवा ध्वज से स्वयंसेवक ऊर्जा और प्रेरणा ले कर भारत माता को परम वैभव पर पहुंचाने के कर्म यज्ञ में अपनी आहुति डालते हैं। भगवा रंग उगते हुए सूर्य के समान है जो कि ज्ञान और कर्मठता का प्रतीक है। भगवा ध्वज यज्ञ की ज्वाला के अनुरूप होने के कारण त्याग, समर्पण, जन कल्याण की भावना, तप, साधना आदि का आदर्श रखता है। यह समाज हित में सर्वस्व अर्पण करने का प्रतीक है।

स्वामी रामतीर्थ भगवा रंग के बारे में कहते हैं " एक दृष्टि से मृत्यु तथा दूसरी दृष्टि से जन्म ऐसा दोहरा उद्देश्य यह रंग पूरा करता है। " भगवा ध्वज का सत युग से कलयुग का संपूर्ण इतिहास देखने के बाद यह ध्यान में आता है कि हिंदू समाज और भगवा ध्वज एक दूसरे से अलग करना संभव नहीं है।हिंदू राष्ट्र, हिंदू समाज, हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति, हिंदू जीवन पद्दति, हिंदू तत्त्वज्ञान इन सब का भगवा ध्वज से अटूट नाता है। त्याग,वैराग्य, निःस्वार्थ वृति, शौर्य, देश प्रेम ऐसे सब गुणों की प्रेरणा देने का सामर्थ्य भगवा ध्वज में है।भगवा ध्वज महाभारत में अर्जुन के रथ पर भी विराजमान था।भगवा रंग दक्षिण के चोल राजाओं, छत्रपति शिवाजी, गुरू गोविंद सिंह जी और महाराजा रंजीत सिंह जी की पराक्रमी परंपरा और सदा विजयी भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है।

इसमें यदि सम्राट हर्ष और विक्रमादित्य का प्रजा वत्सल राज्य अभिव्यक्त होता है तो व्यास, दधीचि और समर्थ गुरू रामदास से लेकर स्वामी रामतीर्थ, स्वामी दयानंद महाऋषि अरविंद, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद तक का वह आध्यात्मिक तेज भी है जिसने आदि शंकर की वाणी से यह घोषित करवाया कि राष्ट्र को जोड़ते हुए ही धर्म प्रतिष्ठित हो सकता है। इसी पर चलते हुए पंजाब में पृथकवादी ताकतों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दीवार की तरह खड़ा है। मोगा और डबवाली में शाखा में हमला होने पर स्वयंसेवकों का बलिदान हो चाहे पंजाब प्रांत के सह संघचालक ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा जी का बलिदान हो असंख्य बलिदान स्वयंसेवकों द्वारा अपने तपोमार्ग पर चलते हुए दिये गये हैं । भगवा ध्वज से ऊर्जा और नव स्फूर्ति लेकर अखंड भारत का संकल्प लेते हुए सभी में यह आत्म विश्वास भरना होगा कि भारत माता को परम वैभव पर पहुंचाने का अपना सभी का प्रयास शीघ्र ही निकट भविष्य में पूरा होगा।

- सुखदेव वशिष्ठ
स्तम्भकार एवं सदस्य विद्या भारती